वेतन पुनर्निर्धारण में घोटाला, लगाई 20 करोड़ की चपत
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 21 जून
उत्तरी हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड (यूएचबीवीएन) में वेतन पुनर्निर्धारण के मामले में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। इस मामले को बड़े ही तरीके से अंजाम दिया गया। एकाध नहीं बल्कि 53 अधिकारियों ने नियमों को धता बताते हुए अपने वेतन को नये सिरे से तय कर लिया।
अधिकारियों के स्तर पर भी इस मामले को दबाने की ही कोशिश की जाती रही। बार-बार शिकायतें होने के बाद अब निगम ने 37 अधिकारियों को नोटिस जारी किये हैं।
बड़ी बात यह है कि जिन अधिकारियों को नोटिस जारी किए हैं, उनमें से कई ऐसे हैं, जिन्हें वेतन पुनर्निर्धारण का लाभ मिला ही नहीं।
कैग ने जब इस पूरे मामले का आडिट किया तो 37 में से 26 अधिकारियों के नाम सामने आए, जिनके वेतन में बढ़ोतरी हुई। वहीं, इस मामले का पर्दाफाश करने वाले शिकायतकर्ताओं में शामिल एक का कहना है कि वेतन बढ़ोतरी का फायदा 26 नहीं, बल्कि 53 अधिकारियों को पहुंचा है। निगम के चीफ इंजीनियर (प्रशासनिक) ने अपने लेटर में कहा है कि 26 अधिकारी इसमें शामिल रहे हैं। इनमें अधिकांश सीनियर अकाउंट ऑफिसर शामिल हैं।
इन अधिकारियों को सालाना 1 करोड़ 66 लाख रुपये से अधिक का फायदा हुआ। वहीं, शिकायतकर्ता एई (सेवानिवृत्त) वीके महाजन का कहना है कि वेतन पुनर्निर्धारण का लाभ लेने वाले अधिकारियों की संख्या 53 है। इन्होंने सालाना 2 करोड़ 88 लाख रुपये का लाभ लिया है। सात वर्षों की यह राशि 20 करोड़ रुपये से अधिक बनती है। दरअसल, सुभाष महाजन व 11 अन्य ने वेतन पुनर्निर्धारण को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने पक्ष में फैसला सुनाया।
ऐसे में निगम ने वेतन निर्धारण के लिए कमेटी बनाई और सभी नियमों को जांचा गया। नियमों को देखने के बाद यह साफ हो गया कि ये 12 अधिकारी भी पहली सितंबर, 2015 तक बेनिफिट लेने के पात्र नहीं हैं।
बावजूद इसके इन 12 के अलावा और भी कई अधिकारियों को पहली जनवरी, 1996 से वेतन पुनर्निर्धारण का लाभ दे दिया गया। रोचक बात यह है कि जिस दिन से यह लाभ दिया गया, उस दौरान हरियाणा में बिजली वितरण कंपनियां थी ही नहीं। बिजली बोर्ड के अंतर्गत सभी कर्मचारी आते थे। पहली जुलाई, 1999 को बिजली बोर्ड को भंग करके बिजली कंपनियों का गठन किया गया। ऐसे में निगमों के कर्मचारियों को बोर्ड के समय से लाभ दिया जाना कानूनन किसी भी सूरत में सही नहीं है। इतना ही नहीं, हाईकोर्ट ने भी याचिका दायर करने वाले कर्मचारियों को पहली सितंबर, 2015 से बेनिफिट देने के आदेश दिए थे।
ठंडे बस्ते में डाली विजिलेंस रिपोर्ट
शिकायत के बाद यह मामला एंटी करप्शन ब्यूरो (पहले स्टेट विजिलेंस ब्यूरो) को सौंपा गया। ब्यूरो ने 18 अगस्त, 2021 को इस मामले में अपनी जांच पूरी करके 72 पेज की रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। विजिलेंस ने वेतन निर्धारण करने की प्रक्रिया में शामिल कई अधिकारियों के नाम भी अपनी रिपोर्ट में दिए हैं। बावजूद इसके रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं लिया गया।
इन अधिकारियों को जारी हुए नोटिस
निगम की ओर से 37 अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। इनमें डायरेक्टर (फाइनेंस) अमित देवन, चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर अनुराग, फाइनेंस एडवाइजर/चीफ अकाउंट ऑफिसर नीलम कुमारी व विनय सिंधवानी, चीफ अकाउंट ऑफिसर हीरा लाल, फाइनेंशियल एडवाइजर रचना, सीनियर अकाउंट ऑफिसर तरुण गुप्ता, शमां गोयल व तरसेम लाल गांधी, सीएफओ (सेवानिवृत्त) गिरधारी लाल बंसल, हरबंस लाल सिंगला, दीपक जैन, पवन जायसवाल, शशि भूषण गुप्ता, डीसी अग्रवाल, गार्गी मल्होत्रा, एमएल गुप्ता, आरएल जैन, रामचंद्र गिरधर, देवव्रत शर्मा, केआर गोयल, केआर भोला, पीबीएल गुप्ता, रघुबीर सिंह, धनीराम, ओपी मित्तल, एसके नेगी, एसपी शर्मा, डीएम शर्मा, कुलदीप सिंह सांगवान, एसएल सैनी, बख्शीश सिंह, सुभाष छाबड़ा, जीएस नारंग व एनके भाटिया के नाम शामिल हैं।
अपने स्तर पर ही बढ़ा ली सेलरी
निगम के जिन अधिकारियों को वेतन पुनर्निर्धारण का लाभ मिला है, उनसे जुड़ा केस कभी भी निगम के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स (बीओडी) की मीटिंग में नहीं आया। लाभ बैक-डेट से भी मिला है। बीओडी से अगर परमिशन मिल भी जाती तो इसके बाद यह केस हरियाणा सार्वजनिक उपक्रम ब्यूरो के पास जाना था। ब्यूरो की मंजूरी के बाद ही वेतन पुनर्निर्धारण संभव था। लेकिन निगम के अधिकारियों ने दोनों ही प्रक्रियाओं को दरकिनार किया और अपने हिसाब से ही वेतन को तय कर लिया।