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Bihar Voter List Case: सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के समय को लेकर सवाल उठाया

03:21 PM Jul 10, 2025 IST
bihar voter list case  सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के समय को लेकर सवाल उठाया
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नयी दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा)

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Bihar voter list case: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के समय पर सवाल उठाते हुए बृहस्पतिवार को Election Commission से कहा कि आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है। हालांकि, उसने इस दलील को खारिज कर दिया कि आयोग के पास इस कवायद को करने का कोई अधिकार नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है। भारत Election Commission ने इस कवायद को न्यायोचित ठहराया और कहा कि आधार कार्ड ‘‘नागरिकता का प्रमाण'' नहीं है।

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न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण में दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड पर विचार न करने को लेकर सवाल किया और कहा कि Election Commission का किसी व्यक्ति की नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है और यह गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।

Election Commission की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने संविधान के अनुच्छेद 326 का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक मतदाता को भारतीय नागरिक होना चाहिए और "आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है"।

इस बीच, पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की इस दलील को खारिज कर दिया कि Election Commission के पास बिहार में ऐसी किसी कवायद का अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि Election Commission जो कर रहा है वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गयी थी।

याचिकाकर्ताओं की दलीलों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग को तीन प्रश्नों का उत्तर देना होगा, क्योंकि बिहार में SIR की प्रक्रिया ‘‘लोकतंत्र की जड़ से जुड़ी है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है।''

सुप्रीम कोर्ट ने Election Commission से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा कि क्या उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने, अपनायी गयी प्रक्रिया और कब यह पुनरीक्षण किया जा सकता है, उसका अधिकार है।

द्विवेदी ने कहा कि समय के साथ-साथ मतदाता सूची में नामों को शामिल करने या हटाने के लिए उनका पुनरीक्षण आवश्यक होता है और SIR ऐसी ही कवायद है। उन्होंने पूछा कि अगर चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार नहीं है तो फिर यह कौन करेगा?

बहरहाल, Election Commission ने आश्वस्त किया कि किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूचियों के SIR कराने के Election Commission के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई शुरू की। एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की अनुमति दी जा सकती है।

उन्होंने कहा कि समग्र SIR के तहत लगभग 7.9 करोड़ नागरिक आएंगे और यहां तक कि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले के संबंध में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गयी हैं जिनमें प्रमुख याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' है।

राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के अलावा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, शरद पवार नीत राकांपा गुट से सुप्रिया सुले, भाकपा से डी राजा, समाजवादी पार्टी से हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उबाठा) से अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सरफराज अहमद और भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से शीर्ष अदालत का रुख किया है। सभी नेताओं ने बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण के Election Commission के आदेश को चुनौती दी है और इसे रद्द करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।

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