एससी वंचित वर्ग को 18 साल बाद मिला न्याय : रोशन लाल
हिसार, 1 अगस्त (हप्र)
सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बैंच ने बुधवार को ईवी चिनैया बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश व अन्य के केस को खारिज करते हुए अनुसूचित जाति में ए व बी वर्गीकरण से वंचित एससी वंचित समाज को करीब 18 साल बाद न्याय दिया है। अब गेंद सरकार के पाले में है और प्रदेश में साल 2006 से बंद इस वर्गीकरण को दोबारा लागू करना चाहिए। शीघ्र ही एससी वंचित समाज का एक प्रतिनिधिमंडल इस मांग को लेकर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से मुलाकात करेगा।
यह बात हरियााणा अनुसूचित जाति वंचित वर्ग एसोसिएशन के प्रधान सेवानिवृत्त एचसीएस अधिकारी रोशन लाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए कही। उन्होंने बताया कि जस्टिस गुरनाम सिंह आयोग की रिपोर्ट के अनुसार एससी समाज को मिलने वाले आरक्षण का 90 प्रतिशत लाभ एक जाति ने उठाया है और बाकी जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित रह गई। इसके बाद साल 1994 में प्रदेश में एससी वर्ग को ए व बी दो वर्गों में बांटकर 20 प्रतिशत आरक्षण को दस-दस प्रतिशत में बांट दिया। एक वर्ग में सिर्फ उस जाति को शामिल किया गया जिसको इस आरक्षण का लाभ सबसे ज्यादा मिला है जबकि दूसरे वर्ग में एससी समाज की आरक्षण का लाभ मिलने से वंचित जातियों को शामिल किया गया।
साल 2005 में ईवी चिनैया बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश व अन्य के केस में सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्गीकरण को असंवैधानिक बताया। इसके बाद साल 2006 में प्रदेश में इस वर्गीकरण को खत्म कर दिया गया। हालांकि पंजाब सरकार ने विधानसभा में एक एक्ट पारित करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी कर दिया था और वहां पर एससी समाज का वर्गीकरण आज भी लागू है।
उन्होंने बताया कि साल 2014 में भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह वादा किया था कि सरकार बनने पर एससी वर्ग का वर्गीकरण फिर से किया जाएगा लेकिन इस मांग को अभी तक माना नहीं किया गया है। हालांकि वर्ष 2020 में शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले की प्रक्रिया में इस वर्गीकरण को लागू कर दिया गया है लेकिन नौकरियों में इसको लागू नहीं किया गया है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार को इस वर्गीकरण को लागू करने में आनाकानी नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह फैसला प्रदेश में आरक्षण बंद किए जाने के खिलाफ दायर की गई याचिका पर ही आया है।