एक वृक्ष भी बचा रहे
नरेश सक्सेना
अंतिम समय जब कोई नहीं जायेगा
साथ एक वृक्ष जायेगा
अपनी गौरैयों-गिलहरियों से
बिछुड़कर
साथ जायेगा एक वृक्ष
अग्नि में प्रवेश करेगा वही मुझसे पहले
‘कितनी लकड़ी लगेगी’
श्मशान की टालवाला पूछेगा
ग़रीब से गरीब भी
सात मन तो लेता ही है
लिखता हूं अंतिम इच्छाओं में
कि बिजली के दाहघर में
हो मेरा संस्कार
ताकि मेरे बाद
एक बेटे और एक बेटी के साथ
एक वृक्ष भी बचा रहे संसार में।
दीमकें
दीमकों को
पढ़ना नहीं आता
ये चाट जाती हैं
पूरी किताब
पानी
बहते हुए पानी ने
पत्थरों पर निशान छोड़े हैं
अजीब बात है
पत्थरों ने पानी पर
कोई निशान नहीं छोड़ा।
शिशु
शिशु लोरी के शब्द नहीं
संगीत समझता है
अभी वह अर्थ समझता है
बाद में सीखेगा भाषा।
समझता है सबकी मुस्कान
सभी की अल्ले ले ले ले
तुम्हारे वेद पुराण कुरान
अभी वह व्यर्थ समझता है
अभी वह अर्थ समझता है
समझने में उसको, तुम हो
कितने असमर्थ, समझता है
बाद में सीखेगा भाषा
उसी से है, जो है आशा