मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

समय की पोल खोलते व्यंग्य

07:43 AM Apr 21, 2024 IST

पुस्तक : पत्नी की उत्तर- आधुनिकता व्यंग्यकार : पूरन सरमा प्रकाशक : अद्विक पब्लिकेशन, दिल्ली पृष्ठ : 172 मूल्य : रु. 250.

Advertisement

अशोक गौतम

व्यंग्य की चाल सबसे जुदा होती है। पूरन सरमा के व्यंग्य संग्रह ‘पत्नी की उत्तर आधुनिकता’ के व्यंग्यों की चाल-ढाल की तरह। जब विसंगतियां हमारे जीवन में आड़े-तिरछे चलती हों तो उनके विरुद्ध सबको खड़ा करने वाला व्यंग्य सीधा क्यों चले? कैसे चले? स्वभाववश व्यंग्य भले ही आड़ा-तिरछा चलता हो, पर वह बात साफगोई की करता है। अभिव्यक्ति के जितने अधिक खतरे व्यंग्य व्यंग्यकार से उठवाता है, उतनी कोई दूसरी साहित्यिक विधा अपनी विधा के लेखक से नहीं।
व्यंग्यकार पूरन सरमा ने अपने व्यंग्य संग्रह ‘पत्नी की उत्तर आधुनिकता’ में मजे-मजे में ऐसे ही खतरे उठाने का जोखिम लिया है। और यही जोखिम लेखक का सबसे बड़ा पुरस्कार भी होता है। इस संग्रह के व्यंग्य तथाकथित व्यवस्था, चाहे वह सामाजिक हो, पारिवारिक हो, या कि राजनीतिक, व्यंग्यकार हर जगह इन व्यवस्थाओं से उपजी विसंगतियों से खुलकर दो-चार होता साफ-साफ दिखता है। व्यंग्य में आरपार की लड़ाई होने पर चुनौतियां भी सीधी मिलती हैं। लेकिन व्यंग्य लेखन की निर्भीकता हर व्यंग्य को उसके लक्ष्य तक पहुंचा कर ही दम लेती है।
इस परिप्रेक्ष्य में व्यंग्य संग्रह के व्यंग्य चुनाव की पावन बेला में, पहले अकादमी की कहानी लिखो, अथ हाउसिंग बोर्ड कथा, मुझे पुरस्कार मिल जाए तो, श्री घोड़ीवाला का चुनाव अभियान, थोक बंद साहित्यकार, मनसुख लाल को वसंत, साहित्यकर महाकवि व्याकुल जी! भारतीय अवसरवादी पार्टी कतिपय ऐसे व्यंग्य हैं जो अपने समय की पोल हमारे सामने हंसते हुए खोलते हैं। हालांकि, इस संग्रह में अधिकतर व्यंग्य साहित्य से जुड़े सरोकारों पर हैं जो साहित्य के क्षेत्र में दिन ब दिन आ रही विसंगतियों से पाठकों को रूबरू करवाते हैं।

Advertisement

Advertisement