समय के अंतर्विरोधों से जूझते व्यंग्य
अशोक गौतम
हिंदी में गंभीर व्यंग्य लेखन के आज की तारीख में जो गिने-चुने नाम हैं उनमें से प्रमुख नाम प्रेम जनमेजय का भी है। समकालीन व्यंग्य लेखन की चर्चा के वे एक चर्चित बिंदु जरूर हैं। प्रेम जनमेजय अपने व्यंग्य लेखन के माध्मय से हाशिए पर जाते हिंदी व्यंग्य को हिंदी साहित्य के विमर्श के केंद्र में लाते रहे हैं।
इन दिनों हिंदी व्यंग्य के क्षेत्र में जनमेजय का नया व्यंग्य संग्रह ‘सींग वाले गधे’ खास चर्चा में है। इस व्यंग्य संग्रह ने हिंदी साहित्य के व्यंग्य को एक बार फिर विमर्श के केंद्र में ला खड़ा किया है। व्यंग्य संग्रह में व्यंग्य को लेकर अपनी मान्यता को स्पष्ट करते हुए प्रेम जनमेजय ने ‘अपनी पगडंडियां’में साफ किया है कि मेरा जीवन ऊबड़-खाबड़ रास्तों के बीच अपनी पगडंडी बनाते हुए हुए चलने का है। मैंने कभी राजमार्गों का मोह नहीं पाला। मेरे लेखन की पगडंडियों में अनेक मोड़ वैसे ही हैं जैसे मेरे देश के हर वंचित के जीवन के हैं। व्यंग्य भी तो एक वंचित विधा है।
जब कोई व्यंग्यकार यह घोषित करे कि न तो मैं जन्मजात साहित्यकार हूं, न मेरा जन्म किसी साहित्यकार परिवार में हुआ है, तो यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए कि वह साहित्यकार समाज की विषमताओं की उपज है। उनके साहित्य सृजन में विसंगतियों का प्रखर विरोध है, या वे लिखते ही विसंगतियों का विरोध करने के लिए है। ‘सींगवाले गधे’ में व्यंग्यकार ने अपने हर व्यंग्य में कहीं न कहीं अपने समय की विसंगतियों पर प्रहार की जो कोशिश की है, उसमें वे सफल रहे हैं। इस संग्रह के व्यंग्य कमजोर हाथों की पकड़ के व्यंग्य नहीं हैं। ‘सींगवाले गधे’ के व्यंग्य हंसी मजाक करते नहीं दिखते अपितु वे समाज की विसंगतियों और अपने समय के अंतर्विरोधों के साथ लड़ते दिखते हैं।
समर्पित व्यंग्यकार होने के चलते ‘सींगवाले गधे’ के व्यंग्यों की भाषा शैली पंक्ति-दर-पंक्ति प्रभावित करने वाली है। इस संदर्भ में चाहे सींगवाले गधे हो, या फिर प्रभु बोर हो रहे हैं। वसंत चुनाव लड़ रहा है, हो या फिर बुरा ना मानो साहित्यिक छापे हैं। या फिर अबिगत की गति हो अथवा चुनावी लीला समाप्त आहे। धारदार व्यंग्य के लिए जिस तरह की भाषा शैली, मितभाषिता, मृदुता की सबसे अधिक जरूरत होती है वह इस संग्रह के व्यंग्यों में मजे से देखी जा सकती है।
संग्रह के हर व्यंग्य में से गुजरना व्यंग्य की साख पर विश्वनीयता और पाठकीयता की छाप लगाता है।
पुस्तक : सींगवाले गधे लेखक : प्रेम जनमेजय प्रकाशक : विद्या विहार, नयी दिल्ली पृष्ठ : 176 मूल्य : रु. 400.