बलि का मद चूर कर किया उद्धार
जितेंद्र अग्रवाल
जब-जब धरती पर पाप व अनाचार चरम सीमा लांघता है तो प्रभु जनकल्याण हेतु धरती पर अवतार लेते हैं। श्रीवामन के रूप में भी भगवान श्रीविष्णु वामन के रूप में अवतरित हुए। जिन्होंने तीन पग दान मांगकर दैत्यराज बलि को दंभ से मुक्त किया।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने देवराज इंद्र को स्वर्ग पर पुन: अधिकार प्रदान करने के लिए वामन अवतार लिया। भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन देव ने भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन जन्म लिया था। इस दिन को वामन द्वादशी के रूप में मनाया जाता है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में भगवान वामन ने अवतार लिया। इस दिन प्रात:काल भक्त श्रीहरि का स्मरण करते हुए विधि-विधान के साथ पूजा कर्म करते हैं। इस दिन अवतरण की कथा व भागवत पुराण का पाठ फलदायी होता है।
कथानुसार जब असुरराज बलि ने अपने तपोबल-पराक्रम से तीनों लोक पर अधिकार कर लिया। तो देवराज इंद्र ने स्वर्ग पर पुन: अधिकार प्राप्ति हेतु विष्णु जी से प्रार्थना की। फिर विष्णु जी ने वामन अवतार लिया। बटुक वामन के रूप में राजा बलि के पास दान मांगने के लिए प्रस्तुत हुए।
वामन अवतार कथा अनुसार देव-दैत्यों के युद्ध में देव पराजित हुए। असुर सेना ने अमरावती पर आक्रमण किया, तब देवता विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यप जी के कहने से माता अदिति पुत्र प्राप्ति के लिये पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं। कालांतर महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ विभिन्न संस्कार करते हैं। पिता से आज्ञा लेकर वामन बलि के पास जाते हैं। राजा बलि नर्मदा तट पर अश्वमेध यज्ञ कर रहे होते हैं।
राजा बलि बड़े पराक्रमी और दानी थे। वे भगवान के बड़े भक्त भी थे, लेकिन बहुत घमंड था। तब वामन अवतार उनके यज्ञ में पहुंच गए। अंत में जब दान देने की बारी आई तो राजा बलि ने वामन से दान मांगने के लिए कहा तब उन्होंने तीन पग जमीन मांग ली। राजा बलि मुस्कुराए और बोले तीन पग जमीन तो बहुत छोटा-सा दान है। कोई बड़ा दान मांग लीजिए।
असुर राजा बलि विष्णु भक्त प्रहलाद के पौत्र थे और अपनी वचनबद्धता तथा दान प्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने इस लीला को भांपकर राजा बलि को दान देने से मना किया। लेकिन राजा बलि अपने वचन पर अडिग रहते हुए वामन देव को तीन पग भूमि दान में देना स्वीकार करते हैं। तब वामन देव ने अपना विराट रूप दिखाते हुए दो पग में ही तीनों लोक की भूमि नाप ली और असुर राज से तीसरा पग रखने के लिए भूमि की मांग की।
राजा बलि ने वचन निभाते हुए वामन देव को तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन देव का पग सिर पर पड़ते ही राजा बलि पाताल लोक में चले गए। राजा बलि द्वारा वचन पालना पर भगवान अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और बलि को पाताललोक का स्वामी बना देते हैं। वामन देव उन्हें पाताल लोक पर अनंत काल तक राज करने आशीर्वाद प्रदान किया। इस तरह वामन देवताओं को पुन: स्वर्ग का अधिकारी बनाते हैं।