मुक्ति की युक्ति
गंगा पार करवाने से पहले जब केवट श्रीराम के चरण धो चुका था तो प्रभु कहते हैं, ‘भाई! अब तो गंगा पार करा दे।’ इस पर केवट कहता है, ‘प्रभु! नियम तो आपको पता ही है कि जो पहले आता है उसे पहले पार उतारा जाता है। इसलिए आप अभी थोड़ा और रुकिये।’ श्रीराम कहते हैं, ‘भाई! यहां तो मेरे सिवा और कोई दिखाई नहीं देता। इस घाट पर तो केवल मैं ही हूं। फिर पहले किसे पार लगाना है?’ केवट बोला, ‘प्रभु! अभी मेरे पूर्वज बैठे हुए हैं, जिनको पार लगाना है।’ केवट झट गंगा जी में उतरकर, प्रभु के चरणामृत से अपने पूर्वजों का तर्पण करता है। फिर केवट ने अपना, अपने परिवार, और सारे कुल का उद्धार करवाया। फिर श्रीराम को नाव में बैठाता है, दूसरे किनारे तक ले जाने से पहले, फिर घुमाकर वापस ले आता है। जब बार-बार केवट ऐसा करता है तो प्रभु पूछते हैं, ‘भाई! बार-बार चक्कर क्यों लगवा रहे हो? मुझे चक्कर आने लगे हैं।’ केवट कहता है, ‘प्रभु! यही तो मैं भी कह रहा हूं। चौरासी लाख योनियों के चक्कर लगाते-लगाते मेरी बुद्धि भी चक्कर खाने लगी है, अब और चक्कर मत लगवाइये।’ भक्त के चातुर्य को देख कर, प्रभु राम भी मुस्करा देते हैं।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा