मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
आस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

संत और संपत्ति

06:39 AM Mar 23, 2024 IST

एक धनिक भक्त ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस के चरणों में रुपयों से भरी थैली समर्पित की और बोला, ‘महाराज इन्हें आप सेवा कार्यों में लगाकर मुझे अनुगृहीत करें।’ स्वामी रामकृष्ण ने कहा, ‘आप इस थैली को ले जाइए तथा स्वयं गरीबों की सेवा-सहायता पर रुपये खर्च कर पुण्य के भागी बनें। मुझे संन्यासी को माया के जंजाल में कदापि न फंसाएं।’ भक्त ने जिज्ञासा व्यक्त की, ‘महाराज, आप तो महान विरक्त संत हैं। संत का मन तो तेल की बूंद के समान संसार रूपी समुद्र में भी हमेशा अलग ही रहता है।’ स्वामीजी ने उत्तर दिया, ‘वत्स, शुद्ध तेल भी ज्यादा समय तक पानी के संपर्क से दूषित होकर सड़ने लगता है। इसलिए संन्यासी का धन व संपत्ति से दूर रहने में ही कल्याण है।’ भक्त ने थैली उठाई तथा रुपये एक अनाथ आश्रम को भेंट कर दिए।
प्रस्तुति : मुकेश शर्मा

Advertisement

Advertisement