सुरक्षा हो प्राथमिकता
देश का राजनीतिक परिदृश्य आम चुनाव के रंग में रंगता नजर आ रहा है। लगातार नई योजनाओं के शिलान्यास, घोषणाएं और उद्घाटन उसकी बानगी है। निस्संदेह, विकास में तेजी देश की जरूरतों और रोजगार के लिये अपरिहार्य है। सोमवार को प्रधानमंत्री द्वारा दो हजार रेलवे ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास सुखद ही कहा जाना चाहिए। उन्होंने देश में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये इकतालीस हजार करोड़ रुपये से अधिक की करीब दो हजार परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इसमें ‘प्रधानमंत्री अमृत भारत स्टेशन योजना’ के अंतर्गत 553 रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास का शिलान्यास भी शामिल था। देश के 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के इन स्टेशनों पर करीब उन्नीस हजार करोड़ रुपये की लागत से पुनर्विकास किया जाना है। निस्संदेह, देश की बढ़ती आबादी की जरूरतों तथा स्टेशनों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता के चलते यह आवश्यक हो गया है कि रेलवे स्टेशनों को सुविधाजनक बनाया जाए। इसमे दो राय नहीं कि रेल विभाग की खस्ता हालत के लिये सस्ती राजनीति भी जिम्मेदार रही है,जिसकी तरफ प्रधानमंत्री ने इशारा भी किया है। विगत में देखा गया कि गठबंधन सरकारों के दौर में रेल मंत्री का पद हासिल करने के लिए दबाव की राजनीति की जाती थी। जिसका मकसद नेताओं का अपने संसदीय क्षेत्र की जनता के लिए विशेष ट्रेन चलाना और अपने इलाके के अपने समर्थक बेरोजगारों को नियम-कानून ताक पर रखकर रेलवे में भर्ती करना होता था। यह एक हकीकत है कि दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क्स में शुमार होने के बावजूद न तो रेल सेवा की गुणवत्ता बन पायी और न ही आर्थिक रूप से रेलवे मजबूत बन पाया। निस्संदेह, आम लोगों की सुविधा के मद्देनजर रेल के किराये काफी कम हैं। जब भी गुणवत्ता को बनाये रखने के मकसद से रेल के किराये में वृद्धि का प्रस्ताव आता था तो राजनेताओं द्वारा उसे चुनावी मुद्दा बना लिया जाता था। निस्संदेह, गुणवत्ता की रेल सेवा बनाने के लिये यात्रियों के योगदान की भी जरूरत है।
बहरहाल, इसके बावजूद आज देश में सामान्य रेल यात्रा को पूरी तरह सुविधाजनक व सुरक्षित नहीं कहा जा सकता है। आये दिन रेल दुर्घटनाएं और मानवीय चूक की खबरें सामने आती रहती हैं। हाल ही में खबर आई थी कि गत पच्चीस फरवरी को जम्मू के कठुआ रेलवे स्टेशन पर एक मालगाड़ी बिना ड्राइवर के चल पड़ी थी। यह ट्रेन बिना ड्राइवर व गार्ड के साठ किलोमीटर की रफ्तार से चल पड़ी थी। इसे तब रोका जा सका जब यह करीब डेढ़ घंटे का सफर तय करके एक छोटे स्टेशन पर पहुंच चुकी थी। गनीमत यह रही कि इसके रास्ते में कोई दूसरी ट्रेन नहीं आई और एक बड़ा हादसा टल गया। बताते हैं कि कठुआ स्टेशन पर ड्राइवर व गार्ड को बदला जाना था, लेकिन ड्यूटी खत्म कर रहा ड्राइवर मालगाड़ी में हैंड ब्रेक लगाना भूल गया। यद्यपि इस आपराधिक लापरवाही के चलते स्टेशन मास्टर समेत छह अधिकारियों व कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भविष्य में ऐसी कोताही न बरती जाए। निस्संदेह, यह घटना बताती है कि रेलवे की कार्यशैली में बदलाव की आवश्यकता है वहीं चालक और स्टाफ को अधिक सतर्क व जवाबदेह बनाने की जरूरत है। निस्संदेह, रेलवे के ढांचे का विस्तार व आधुनिकीकरण समय की मांग है, लेकिन पहले पुराने रेलवे के ढांचे को सुरक्षित व फुलप्रूफ बनाने की जरूरत है। वहीं रेलवे की पटरियों के रखरखाव के साथ ही रेलवे स्टाफ को इसके परिचालन में अतिरिक्त सावधानी की दरकार है। निस्संदेह, रेल परिचालन में एक छोटी चूक सैकड़ों लोगों के जीवन पर संकट उत्पन्न कर सकती है। इसके साथ ही आवश्यक है कि सर्दी के मौसम में कोहरे की वजह से बाधित होने वाले रेलवे यातायात को सुचारु रूप से चलाने के लिये आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाए। तब सर्दी के मौसम की चरम अवस्था में रेल सेवाओं में विलंब और ट्रेन कैंसिल होने की स्थिति को टाला जा सकेगा। देश की दीर्घकालीन जरूरतों और बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं के अनुरूप रेलवे के ढांचे में व्यापक परिवर्तनों की जरूरत है।