वृक्ष रक्षा को बलिदान
यह उन दिनों की बात है जब थार रेगिस्तान में खेजड़ी के पेड़ों की संख्या बहुत अधिक थी। एक दिन मारवाड़, जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के सैनिक लकड़ी काटने के लिए उस ओर आए, जहां खेजड़ी के पेड़ बहुतायत में थे। अमृता बिश्नोई नामक एक महिला अपनी तीन बेटियों के साथ घर पर थी। उसे जैसे ही यह सूचना मिली कि सैनिक खेजड़ी के पेड़ों को बेरहमी से काट रहे हैं, वह तुरंत उस ओर भागी। एक महिला को देखकर सैनिक चौंक गए। महिला उस पेड़ से लिपट गई, जिसे सैनिक काटने जा रहे थे। यह देखकर क्रोधित सैनिक बोले, ‘अपनी जान को क्यों जोखिम में डाल रही हो?’ यह सुनकर अमृता बिना डरे बोली, ‘यदि किसी व्यक्ति की जान की कीमत पर भी एक पेड़ बचाया जाता है, तो वह सही है। हरियाली रहेगी तो पृथ्वी पर संतुलन बना रहेगा।’ अचानक एक सिपाही ने गुस्से में कुल्हाड़ी चला दी और अमृता की जान चली गई। जब राजा को यह बात पता चली, तो वह दौड़े-दौड़े बिश्नोई परिवार के पास गए। उन्होंने उनसे माफी मांगी और कहा कि आगे से पेड़ों को नहीं काटा जाएगा। वर्ष 1983 में खेजड़ी वृक्ष को राजस्थान का राजकीय वृक्ष घोषित किया गया। अमृता बिश्नोई को भारत के पहले पर्यावरणविद् के नाम से भी जाना जाता है।
प्रस्तुति : रेनू सैनी