गोरक्षा हेतु बलिदान
रतन सिंह शेखावत
ऐतिहासिक किरदारों के साथ ही हम लोग ऐसे किरदारों द्वारा बनायी गयी वास्तुकला के नमूनों पर भी चर्चा पसंद करते हैं। आज हम बात करते हैं खींची महल जायल की और इसके इतिहास की। नागौर जिले के जायल कस्बे में बना यह खुबसूरत महल चौहान वंश की खींची शाखा के शासकों का आवास था। जायल के खींची शासकों में जींदराव खींची का नाम इतिहास में प्रचुरता से मिलता है। जिसका कारण है लोक देवता पाबू जी राठौड़। इनकी चर्चा अनेक ऐतिहासिक संदर्भों में होती है। जींदराव खींची का विवाह कोलूमंड के शासक लोकदेवता पाबूजी राठौड़ की बहन से हुआ था लेकिन कालांतर में चारण देवी देवल की केसर कालमी घोड़ी को लेकर दोनों के मध्य विवाद हो गया था।
दरअसल जींद राव खींची केसर कालमी घोड़ी लेना चाहते थे, पर देवल देवी चारणी ने उन्हें वह घोड़ी देने से मना कर दिया, बाद में देवल चारणी ने वही घोड़ी प्रसिद्ध लोक देवता पाबूजी राठौड़ को दे दी। जनश्रुति है कि केसर कालमी घोड़ी देवल चारणी की गायों की रखवाली करती थी और पाबूजी राठौड़ ने देवल चारनी को उसकी गायों की रक्षा करने का वचन दिया तब देवी देवल चारणी ने उन्हें घोड़ी दे दी। इस घटना से आहत होकर जींद राव खींची देवल चारणी की सारी गायें जबरन जायल ले आये। उस वक्त पाबूजी राठौड़ उमरकोट की राजकुमारी से विवाह करने गए थे, जब उनके फेरे हो रहे थे, उसी समय उन्हें देवी देवल चारणी की गायों की लूट का समाचार मिला। पाबूजी राठौड़ ने फेरे की रस्म भी पूरी नहीं की और गायों की रक्षार्थ शादी के फेरे छोड़ चल दिए। जोधपुर के निकट देचू गांव में पाबूजी राठौड़ और जींद राव खींची के बीच युद्ध हुआ जिसमें पाबूजी राठौड़ और उनके साथी वीरगति को प्राप्त हुए, इस प्रकार पाबूजी राठौड़ ने गायों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
खींची शासकों द्वारा बनाये इस महल की बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इस महल के पास ही रहने वाले एक बुजुर्ग जिनका खींची वंश से नाता रहा है, ने हमें बताया कि यह महल गोवर्धन खींची ने बनाया था। बुजुर्ग ने बताया कि जींदराव खींची के समय जायल क़स्बा वर्तमान जगह से कुछ किलोमीटर दूर था, जो उजड़ जाने के बाद यहां दोबारा बसा। उन बुजुर्ग के अनुसार इस महल से जींदराव खींची का कोई वास्ता नहीं, ये बाद के खींची शासकों द्वारा बनाया गया।
साभार : ज्ञानदर्पण डॉट कॉम