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खनिज दोहन हेतु रूस-चीन ने बदली तालिबान नीति

07:35 AM Jun 19, 2024 IST

पुष्परंजन
वर्ष 2022 में अफ़ग़ान अमीरात सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने जब पहली बार सेंट पीटर्सबर्ग अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंच का दौरा किया, तो यह चर्चा का विषय था कि पुतिन क्या फिर से ग्रेट गेम खेलना चाहते हैं? हालांकि, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आदतन कोई बात सीधे तौर पर स्वीकार नहीं करते, लेकिन उन्होंने कहा कि इस्लामिक अमीरात के साथ संबंध बनाने के लिए यह क़दम ज़रूरी था। मार्च, 2022 में, रूस-अफ़ग़ानिस्तान ने आधिकारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए। कजाकिस्तान 2023 में तालिबान को आतंकवादी संगठनों की सूची से हटाने वाला पहला देश था। विशेषज्ञों का मानना है कि मास्को के इशारे पर ऐसा कुछ हुआ था।
रूस के खेल से पश्चिमी देश अबूझ हों, यह ग़लतफहमी कोई नहीं पालता। इसकी काट के वास्ते संयुक्त अरब अमीरात को हर समय आगे रखा जाता है। मई, 2023 में अफगानिस्तान पर पहली दोहा बैठक हुई थी, जिसकी अध्यक्षता संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने की। लेकिन 18-19 फरवरी, 2024 को दूसरी दोहा बैठक में इस्लामिक अमीरात शर्तें पूरी न होने के कारण शामिल नहीं हुआ। जिसके लिए बैठक हो, और वही अनुपस्थित रहे, तो दोहा-टू का मज़ाक बनना स्वाभाविक था। अब, तीसरी बैठक 30 जून और 1 जुलाई, 2024 को निर्धारित है।
पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र राजनीतिक मामलों के अवर महासचिव रोजमेरी डिकार्लो, कतर के उपविदेश मंत्री, इस्लामिक सहयोग संगठन के एक प्रतिनिधिमंडल और यूरोपीय संघ के विशेष प्रतिनिधि थॉमस निकलसन ने काबुल का दौरा किया था। इससे पहले सुरक्षा परिषद के अनुरोध पर 25 अप्रैल, 2024 को, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने स्वतंत्र मूल्यांकन करने के लिए तुर्की के राजनयिक फरीदुन सिनिरिलियोग्लू को विशेष समन्वयक नियुक्त किया था। लेकिन फरीदुन सिनिरिलियोग्लू ने जो मसौदे दोहा-3 बैठक के लिए तैयार किये, उसमें काफ़ी रद्दोबदल किये जा चुके हैं। यह सब होने के बाद ही अमीरात के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने तीसरी दोहा बैठक में अंतरिम सरकार के प्रतिनिधिमंडल की भागीदारी की घोषणा की है। दोहा-3 बैठक में अमीरात के विदेश मंत्री वित्तीय, बैंकिंग, ड्रग नियंत्रण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर विमर्श के लिए सहमत हैं। अब सवाल यह है कि क्या पश्चिमी देश मान लेंगे कि अफ़ग़ान औरतों को शिक्षा-रोज़गार से दूर रखने का जो जघन्य कर्म अमीरात ने किया, मानवाधिकारों का दमन किया, वो सही है?
रूस ने भी अमीरात पर औरतों के हक़ को लेकर शायद ही कभी दबाव बनाया हो। इस्लामिक अमीरात अक्सर रूसी सुरक्षा सम्मेलनों में साझेदार बना है। 8 फरवरी, 2023 को भारत, ईरान, किर्गिस्तान, चीन, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) ने अफगानिस्तान पर पांचवें बहुपक्षीय सुरक्षा वार्ता के लिए मास्को में मुलाकात की। इसके प्रकारांतर सितंबर, 2023 में चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विशेष प्रतिनिधियों को जुटाकर ‘अफ़गानिस्तान पर मास्को प्रारूप परामर्श’ की पांचवीं बैठक आयोजित की गई थी। बैठक में अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेशमंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने भी भाग लिया था। इतना ही नहीं, रूस-चीन की पहल पर शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाइजेशन संपर्क समूह में भी अफग़ानिस्तान को लाने के प्रयास किये गये।
यह रोचक है कि 29 जनवरी, 2024 को तालिबान प्रशासन ने काबुल में ‘अफ़ग़ानिस्तान क्षेत्रीय सहयोग पहल’ नामक पहली अंतर्राष्ट्रीय बैठक की मेज़बानी की, जिसमें रूस, चीन, ईरान, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, इंडोनेशिया और भारत सहित यूरेशियन क्षेत्र के 11 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। ऐसे में कैसे कह सकते हैं, कि अमीरात शासन को ‘आइसोलेट’ कर दिया गया?
बर्लिन स्थित काउंटर एक्सट्रीमिज्म प्रोजेक्ट (सीईपी) के मध्य-पूर्व विशेषज्ञ, हैंस जैकब शिंडलर का मानना है कि रूस का विदेश मंत्रालय तालिबान को आतंकवादी समूह की सूची से हटाने के बदले में काफी-कुछ उम्मीद कर सकता है। लेकिन ऐसा कहना आसान है, करना मुश्किल। शिंडलर ने कहा, ‘तालिबान हमेशा रियायतें स्वीकार करने के लिए इच्छुक होते हैं, लेकिन जब उन्हें बदले में देने की बात आती है, तो उनके लिए चीजें जटिल हो जाती हैं।’ अफगानिस्तान एनालिस्ट नेटवर्क के सह-संस्थापक थॉमस रुटिग ने भी क्रेमलिन के हालिया प्रयासों को मल्टी टास्क रणनीति के रूप में व्याख्यायित किया, जो इस्लामिक अमीरात को आधिकारिक मान्यता देने की दिशा में बढ़ रही है।
शिंडलर और रुटिग दोनों इस बात पर सहमत हैं कि तालिबान को आतंकवादी संगठन के रूप में सूची से हटाने के बाद अगला कदम उसे वैध राज्य शक्ति के रूप में आधिकारिक मान्यता देना हो सकता है। दोनों की बात कुछ हद तक सही है। ऐसी कवायद दोहा से मास्को तक चल रही है। थोड़ी देर के लिए हम यदि इसे तालिबान नीति की सफ़लता मान भी लें, तो आने वाले समय के लिए यह सुखद संदेश नहीं देता है। तालिबान पहले 1996 और 2001 के बीच अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज़ थे। दो दशक बाद, तालिबान की वापसी का मतलब, इस्लामी कानून की संकीर्ण व्याख्या की बहाली भी रही है। यदि मल्टीपोलर वर्ल्ड अपने कूटनीतिक स्वार्थों की वजह से मानवाधिकारों का हनन, विशेष रूप से महिलाओं-बच्चियों पर व्यापक प्रतिबंध को भी स्वीकार करता है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। क्या भारत को भी अमीरात इसी रूप में सुहाता है?
तालिबान प्रतिबंधित है, दूसरी ओर सेंट पीटर्सबर्ग इकोनाॅमिक फोरम में वह आमंत्रित भी है। रूसी अधिकारियों के अनुसार, ‘पिछले साल दोनों देशों के बीच व्यापार में पांच गुना वृद्धि हुई और यह एक अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया है।’ चीन भी 2023-24 में डेढ़ अरब डाॅलर एक्सपोर्ट के साथ अफग़ानिस्तान में खनिजों का दोहन करता है, तो उसे मान्यता देने न देने का मतलब क्या रह जाता है? यह तो समझ में आ चुका है कि तालिबान से संबंधों को सुदृढ़ करना, चीनी-रूसी विदेश नीति का हिस्सा है।
खनिजों से समृद्ध अफगानिस्तान सबके लिए प्रासंगिक है, जिसका दोहन तभी किया जा सकता है, जब इस देश में शांति लाई जाए, और अधोसंरचना, फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क से लैस किया जाए। मॉस्को, अफगानिस्तान के इन्फ्रा में दिलचस्पी ले, उससे पहले संयुक्त अरब अमीरात वहां अपनी गहरी पैठ बना चुका है। यूएई में तीन लाख से ज़्यादा अफगान रहते हैं। इन दिनों अफग़ानिस्तान को संवारने में यूएई सबसे आगे है। यूएई में अफगान व्यापार परिषद के प्रमुख हाजी ओबैदुल्ला सदर खैल बताते हैं कि अमीराती मुल्क में 200 अस्पताल बनाने, राजमार्ग निर्माण, स्कूली किताबें प्रकाशित करने, अफीम की फसल की जगह केसर उत्पादन में सुधार करने और कालीन उद्योग विकसित करने के लिए हम निरंतर काम कर रहे हैं। लेकिन कड़वा सच यह भी है कि अफग़ानिस्तान में खनिज दोहन की प्रतिस्पर्धा ने दुनियाभर के ताक़तवर देशों को कम्प्रोमाइज़ के कगार पर ला खड़ा किया है!
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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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