For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

घर न ग्रामीण और वोटें मात्र तीन

07:26 AM Dec 12, 2023 IST
घर न ग्रामीण और वोटें मात्र तीन
कैथल के गांव खड़ालवा की गौशाला और शिव मंदिर। -हप्र
Advertisement

ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 11 दिसंबर
कैथल जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां केवल तीन मतदाता हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं लोगों की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति की गोद में बसे गांव खड़ालवा की। कलायत से दक्षिण पूर्व दिशा में करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर बसा है, एक बेचिराग गांव बीड़ खड़ालवा। राजस्व रिकार्ड में गांव खड़ालवा को एक गांव का दर्जा प्राप्त है। इस गांव के नाम पर अलग से बैंक हैं, पटवारी, कक्षा 12वीं तक का एक स्कूल है। एक गौशाला है तथा एक प्राचीन मंदिर है। गांव में कोई घर नहीं है। इस समय गांव की आबादी के नाम पर कुल 4 लोग हैं। वे भी मंदिर में रहने वाले साधु। इनमें मंदिर के मुख्य महंत रघुनाथ गिरी, लाल गिरी जी महाराज, आत्मा गिरी जी महाराज, प्रभात गिरी जी महाराज शामिल हैं। इनमें से फिलहाल तीन मंहतों के ही वोट बने हुए हैं। मंदिर में दिनभर श्रद्धालुओं का जमावड़ा रहता है। गांव में बने राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में गांव मटौर, बड़सिकरी, कमालपुर और कलासर के विद्यार्थी पढ़ने आते हैं।
खड़ालवा गांव में शताब्दियों पुराना शिव मंदिर है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैली है। मंदिर में प्रतिष्ठित स्वयंभू शिवलिंग अद्वितीय है। इस स्थान पर भगवान शिव को पातालेश्वर या खट्वांगेश्वर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर बना शिवलिंग हजारों वर्ष पहले स्वयं प्रकट हुआ था। यह मंदिर एक टीले के ऊपर बना है। मान्यता है कि यहां किसी समय में कोई विकसित संस्कृति रही होगी, जो शकों तथा हूणों के हमलों से तबाह हो गई। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, खट्वांगेश्वर भगवान शिव का संबंध भगवान राम की वंशावली से जुड़ा हुआ है। इक्ष्वाकु वंश में भगवान राम से दस पीढ़ी पूर्व उनके अग्रज हुए हैं परम प्रतापी राजा खड्वांग। देव दानवों के युद्ध में राजा खट्वांग ने देवों की ओर से युद्ध किया तथा दानवों को पराजित किया। जब उन्हें उनके जीवन के तीन ही पल शेष रहने का पता चला तो वे राज-काज त्यागकर इस स्थान पर तपस्या के लिए आ गए थे। बताया जाता है कि भगवान शिव ने कहा था कि इस स्थान पर उनकी पूजा खट्वांगेश्वर के नाम से होगी। समय के साथ सभ्यता लुप्त होती गई, लेकिन इस पौराणिक शिवलिंग का अस्तित्व नहीं मिटा। शिवभक्त महाराजा पटियाला भूपेंद्र सिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। गांव के पटवारी विकास कहते हैं खड़ालवा के नाम से करीब 800 एकड़ भूमि का रकबा है। इस बेचिराग गांव में कोई नहीं रहता है। साधुओं के ही कुछ वोट हैं। मंदिर, गौशाला व स्कूल भी गांव खड़ालवा के नाम से है।

Advertisement

प्राकृतिक आपदा में लुप्त हो गया था गांव

इतिहासकार एवं शिक्षाविद् दलीप सिंह बताते हैं कि दंत कथा है कि यहां महाराजा खडगेश्वर राज करते थे। यह हूण काल का गांव है। यह प्राचीन मंदिर स्थापित किया हुआ है। इसके साथ एक टीला था। इस टीले से कुछ अवशेष व धातु भी मिली है। जो उन्होंने खुद भी देखी है। समय के साथ ये चीजें विलुप्त हो गई हैं। माना जाता है कि किसी समय में यह गांव प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गया था। इसलिए इसे बेचिराग गांव कहते हैं। यह करीब 500 से 700 वर्ष से अधिक पुराना गांव है, लेकिन यहां किसी का घर नहीं है। रिकार्ड में इसे गांव का दर्जा प्राप्त है। यह गांव कुरुक्षेत्र भूमि की 48 कोस भूमि में शामिल है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement