मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

रोशन ख्याल लोगों के जानी दुश्मन

12:49 PM Aug 21, 2021 IST

भागो, दौड़ो, छोड़ो, बचो! तालिबान आया है! जी, कोई प्रलय, कोई जलजला नहीं आया है, न कोई जहरीली गैस फैली है, न कोई महामारी आयी है। न किसी दूसरे देश या किसी दूसरे ग्रह वालों का हमला हुआ है, जैसा कि साइंस फिक्शनों में या अमेरिकी फिल्मों में होता है। फिर भी अफगानिस्तान में भगदड़ मची है। लोग जान बचाने के लिए एयरपोर्ट की तरफ भाग रहे हैं। हवाई जहाजों से लटक रहे हैं, विमानों के पहियों से कुचल कर मर रहे हैं, ऊपर आसमान में पहुंच कर विमानों से टपक रहे हैं। वे आसमान से गिर रहे हैं, लेकिन खजूर में नहीं अटक रहे हैं।

Advertisement

जब हमारे देश का बंटवारा हुआ था तो बताते हैं कि लोग ऐसे ही भागे थे। जब दंगा होता है तो लोग शहर छोड़कर ऐसे ही भागते हैं। जब कोरोना आया था तो हमारे यहां प्रवासी मजदूर ऐसे ही शहर छोड़-छोड़कर भागे थे और कोई रेल की पटरियों पर मरा था तो कोई सड़क किनारे। अब विमान कोई ब्लू लाइन बस तो होता नहीं कि लटककर अपनी मंजिल पहुंच जाओ। अब तो लोग शहरों से गांवों की तरफ जाने वाले टैंपुओं में भी ऐसे नहीं लटकते। यह विमान कोई रेल गाड़ी नहीं है कि संकट के समय छतों पर चढ़ जाओ। फिर भी बेचारे अफगानी अपनी जान बचाने के लिए विमानों से लटक रहे हैं और जान गंवा रहे हैं। वे अपने राष्ट्रपति अशरफ गनी जैसे भाग्यशाली नहीं हैं कि हेलीकॉप्टर में नकदी भर कर भाग जाएं।

साइंस फिक्शनों में तो अमेरिका वाले जान पर खेलकर दुनिया को बचा लेते हैं। लेकिन वे तालिबानों से अफगानिस्तान को नहीं बचा पाए। हालांकि, बीस साल पहले वे उन्हें बचाने के लिए ही अफगानिस्तान आए थे। वैसे ही जैसे वे दूसरे देशों में लोकतंत्र को बचाने पहुंचते हैं। लेकिन वहां से तो वे कुछ न कुछ लेकर जाते हैं-कहीं से तेल और कहीं से खनिज। पर यहां से वे तोहमत लेकर गए हैं। बेइज्जत होकर गए हैं।

Advertisement

लेकिन वैसे नहीं जैसे शायर यार के कूचे से बेआबरू होकर निकला था। लोग उसके इस तरह पीठ दिखाकर भागने की तुलना वियतनाम से उसके भागने से कर रहे हैं। लेकिन यह तुलना कैसे हो सकती है। वियतनाम से तो उन्हें क्रांतिकारियों ने पीट-पीटकर भगाया था। लेकिन यहां से तो वे तालिबानों से गलबहियां करके गए हैं। वियतनाम से उनके भागने पर दुनिया वालों ने जश्न मनाया था। यहां से उनके भागने पर दुनिया वाले उन्हें कोस रहे हैं। लेकिन बेचारे अफगानी तो उन्हें कोस भी नहीं सकते।

जान बची तो कोसेंगे। लेकिन जान बचेगी कैसे-तालिबानों के पास बंदूकें हैं, एके सैंतालिस, छप्पन, कलाश्निकोव, राकेट लांचर हैं। यह किसी बाहरी दुश्मन के लिए नहीं हैं, अपनों के लिए हैं। बराबरी चाहने वाली महिलाओं के लिए, खेलने-कूदने वाले और पढ़ने की इच्छा रखने वाले बच्चों के लिए हैं, रोशन ख्याल लोगों के लिए हैं। उनके दुश्मन तो वहीं हैं।

Advertisement
Tags :
‘लोगोंख्यालदुश्मन