रोबोट
राजेंद्र कनोजिया
दूर खड़ा रोबोट,
मुझे देख रहा है,
किस हाल में हैं,
हम और हमारा संसार,
सोच रहा है।
रास्ते पर खड़ा रोबोट
मुझे लगातार देख रहा है।
बहुत व्यस्त रहते हैं हम
तेज गति से भागते-भागते
पीछे छूट रहे हैं,
मशीन से भी ज़्यादा तेज होते जा रहे हैं,
रखते हैं एक-एक सेकंड का हिसाब,
पैसे की दोस्ती में
दोस्त को भूले जा रहे हैं
इंसान से कैलकुलेटर बनते जा रहे हैं।
देख रहा रोबोट, दूर खड़ा,
न आपस में प्यार बचा
न रिश्तों में रिश्तेदारी,
घर के हर कोने में लोग तो हैं
परिवार नहीं, किसी को किसी
से अब कोई प्यार नहीं।
कहने को घर है आलीशान,
वहां कोई इंसान नहीं,
बंद हैं चंद सामान।
हम चांद और मंगल पर बसने जा रहे हैं।
हमने ख़ाली कर दी धरती
ख़त्म कर दिये, खनिज जल,
पेड़-पौधे और ऑक्सीजन का भंडार,
खोखली धरती में रहते हैं,
हम सब लाचार।
बीमारी की नई-नई फ़ौज है,
अस्पतालों में वायरस की नई-नई खोज है।
तन और मन से और कमजोर होते जा रहे हैं।
रोबोट सोच रहा है सड़क के किनारे खड़ा,
क्या वो इन आलसी लोगों को और भी
कमजोर, बेकार और आलसी नहीं बना देगा।
बंद हो गया हैं इनका कुछ अच्छा सोचना,
मां, पत्नी, बच्चे और समाज में
एक-दूसरे से मिलना-जुलना।
न ये खुल कर हंसते, बात करते हैं,
न खुले अासमान में बारिश में नहाते हैं,
सूरज की रोशनी से इनका कोई नाता नहीं,
कोई और खुश रहे, ये इनको भाता नहीं।
क़िस्मत के मारे हैं, कितने अधूरे हैं,
तरक़्क़ी की सीढ़ी पर अब भी अकेले हैं।
शायद इनको मेरी नहीं, इन्ही की ज़रूरत है,
ये धरती बीमारी, और लाचारी की गिरफ़्त में है,
इनको मेरी नहीं अपने परिवार की ज़रूरत है, रोबोट ने वहीं खड़े-खड़े
जाते हुए ट्रक से टकरा कर
अपनी जान दे दी।
हम पर एक और हत्या का पाप चढ़ा था,
सामने एक बड़ा ही
काला भविष्य खड़ा था।
सामने एक बड़ा ही काला भविष्य खड़ा था।