दुश्वारियों का रास्ता
अमेरिका आदि देशों में सुनहरे सब्जबाग दिखा मोटी रकम वसूलकर युवाओं को जानलेवा अंधी गलियों में धकेलने वाले एजेंटों पर समय रहते कार्रवाई न होना हमारे शासन-प्रशासन की विफलता ही कही जाएगी। मोटी कमाई और चमकीले सपनों का सम्मोहन युवाओं की सोचने-समझने की शक्ति को ही कुंद कर देता है कि वे ऐसा करके अपनी जान भी जोखिम में डाल रहे हैं। दरअसल, डंकी रूट अमेरिका आदि देशों में जाने का एक ऐसा अवैध रास्ता है, जिसमें सीमा नियंत्रण के प्रावधानों को धता बताकर एक लंबी व चक्करदार यात्रा के माध्यम से दूसरे देश ले जाया जाता है। एक दशक से जारी यह गोरखधंधा वर्ष 2023 में तब उजागर हुआ था जब वर्ष 2023 में फ्रांस ने मानव तस्करी के संदेह में दुबई से निकारागुआ जा रहे तीन से अधिक यात्रियों वाले एक चॉर्टर विमान को रोककर उसमें सवार अधिकांश भारतीयों को वापस भारत लौटा दिया था। हाल ही में पंजाब में समाना के चार युवाओं की दर्दनाक कहानी उजागर हुई है, जिन्हें एजेंटों ने मोटी रकम वसूलकर जानलेवा हालातों में धकेल दिया। उनसे दो चरणों में करीब ढाई करोड़ रुपये वसूले गये और घातक परिस्थितियों में धकेल दिया गया। कई दिन जंगलों में उन्हें भूखा रहना पड़ा। फोन व जूते छीन लेने से उन्हें नंगे पैरों पैदल चलना पड़ा। पहले भारतीय एजेंट को प्रति व्यक्ति पैंतीस लाख देकर वे स्पेन पहुंचे, जहां उन्हें लावारिस छोड़ दिया गया। फिर वहां से प्रत्येक युवक ने पच्चीस लाख रुपये चुकाकर अमेरिका जाने की दुर्गम राह पकड़ी। अब इन पीड़ित युवाओं ने हर पंजाबी से अपील की है कि वे कभी भी पश्चिम जाने के लिये अवैध रास्ते को न चुनें। वे खुद को भाग्यवान मानते हैं इस खतरनाक रास्ते में लुटने-पिटने और भूखे रहने के बाद किसी तरह अमेरिका पहुंचे हैं। दरअसल, उनकी बदहाली की वजह वो भ्रष्ट व बेईमान ट्रैवल एजेंट था, जिसने उन्हें मोटी रकम लेकर अमेरिका में कार्य वीजा दिलाने का झांसा दिया था ।
निस्संदेह, युवाओं का धोखेबाज एजेंटों के जाल में फंसना हमारे तंत्र की विफलता ही है। यदि ऐसे एजेंट कानून व्यवस्था के शिकंजे में फंस गये होते तो युवा ठगी के शिकार न बनते। आखिर हम अपने युवाओं को देश में सम्मानजनक रोजगार क्यों नहीं दे पा रहे हैं? वहीं युवा भी धैर्य व कठिन परिश्रम के बजाय रातोंरात अमीर बनने के सपने सजोने लगते हैं। आखिर क्या वजह है कि मां-बाप जमीन बेचकर व अपने गहने-मकान गिरवी रखकर बच्चों को विदेश भेजने को आतुर हैं? यह जानते हुए कि आये दिन तमाम युवा फर्जी एजेंटों के जाल में फंसकर अपना सबकुछ गवांकर देश लौटते हैं। पिछले दिनों दलालों ने देश के युवाओं को सुनहरे सपने दिखाकर युद्धरत रूस की फौज में भर्ती करवा दिया। कई युवाओं के युद्ध में मरने की खबरें भी आई। आखिर सुनहरे सपनों की चकाचौंध में हमारे युवा दलालों के हाथों के खिलौने क्यों बन रहे हैं? अमेरिका जाने के सम्मोहन में अपने जीवन को इस तरह जोखिम में डालना क्या उचित है? भारत अन्य देशों के साथ मिलकर युवाओं को धोखे से विदेश भेजने वाले एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई के लिये क्या कर रहा है? निस्संदेह, विभिन्न महाद्वीपों के राष्ट्रों को शामिल किए बिना दलाली-ठगी करने वाले अंतर्राष्ट्रीय गिरोहों का खातमा संभव नहीं है। एशिया, यूरोप व मध्य अमेरिका तक दलालों के जाल बिछे हैं। अपना कमीशन लेकर वे युवाओं को आगे धकेलते हैं। ऐसे मामले उजागर होने के तुरंत बाद कुछ गिरफ्तारियां इस बड़े संकट का समाधान नहीं है। आपराधिक कृत्यों में लिप्त एजेंट कुछ समय के लिये तो चुप बैठ जाते हैं। कुछ समय बाद वे अपने नापाक खेल में फिर सक्रिय हो जाते हैं। वैसे वे युवा भी कम दोषी नहीं हैं जो वास्तविक स्थिति को जाने बिना शॉर्टकट रास्ते के लिये दलालों को पैसे देने को तैयार हो जाते हैं। दरअसल, विदेश जाने के इच्छुक उम्मीदवारों को आधिकारिक चैनल को दरकिनार करने के खतरों के बारे में भी बताना चाहिए। इसके लिये उन्हें सचेत करने के मकसद से जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। इस लड़ाई में सभी हितधारक भी जिम्मेदार भूमिका निभाएं।