उत्सवधर्मिता का संदेश देता ऋतुराज का आगमन
केवल तिवारी
उत्सवधर्मिता। प्रसन्नता। पतझड़। ऋतुराज। नव्यता। जीवनचक्र। समय का बदलाव। आशा और निराशा। हमें इंतजार रहता है खुशियों के आने का। खुशियां मन में प्रसन्नता लाती है। प्रसन्नता आने की। प्रसन्नता नवीनता की। यह नवीनता तभी आएगी या ऊर्जावान मन और तन तभी बना रहेगा जब हमारे जीवन में उत्सवधर्मिता बनेगी। यह उत्सवधर्मिता ही हमें प्रसन्न रखेगी। प्रसन्न रहने के लिए मनसा वाचा, कर्मणा शुद्ध रहने को कहा गया। यह शुद्धता भी प्रसन्नता का ही दूसरा रूप है। चारों ओर नजर दौड़ाइये, ऐसा लगेगा मानो आपको प्रसन्न रहने के लिए कहा जा रहा है। लग रहा है कि अगर उदासी है तो परेशान क्यों? खुशियां भी आएंगी। ऋतुराज का आगमन होने वाला है। पहले भी ऐसी ही ऋतु आई, फिर आगमन हो रहा है। कुछ समय बाद भीषण गर्मी आएगी जो बताएगी कि फिर ऋतुराज आएगा। बदलाव ही नव्यता का संदेश है। युग परिवर्तन हुए। मौसम चक्र बदलता है। रात के बाद दिन आता है। आज के बाद कल आता है।
चलिए जरा प्रकृति के संग चलें जो हमें नव्यता का संदेश देते हैं। शहरों में रहने वाले हैं तो इन दिनों आसपास के ग्रामीण इलाकों की ओर कुछ समय के लिए निकल पड़िये। ग्रामीण इलाकों में ही अगर रहते हों तो चारों ओर नजर घुमाइये। दूर-दूर तक दिखेगी हरियाली और पीला सौंदर्य। सरसों के पीले फूल, सूरजमुखी के फूल और कहीं-कहीं गेंदे के फूल। बड़े-बड़े पेड़ों से खत्म होते पत्ते। ये क्या माजरा है। कहीं हरियाली की इतनी रौनक है, कहीं पेड़ों से पत्ते झर रहे हैं। इनके सथ ही पीले फूल किसी शगुन कार्यक्रम की तरह लगते हैं और कहीं-कहीं पेड़ ठूंठ से दिखने लगे हैं। ये पेड़ों से झड़ते पत्ते समझा रहे हैं कि मौसम चक्र बदलने वाला है। यानी मौसम का संधिकाल आने वाला है। पुनर्निर्माण के लिए तैयार हो जाइये। शरीर पर ध्यान दीजिए। यही ध्यान आने वाले समय के लिए शरीर को स्फूर्तिदायक बनाएगा। नव कोपलों की तरह। पीले सौंदर्य का भी खास महत्व है। दूर-दूर तक दिखने वाला हल्दी रंग आपके मन को स्फूर्तिदायक बनाता है। यह स्फूर्ति, यह उमंग बनी रहेगी, गर कुदरत के इन नजारों को निहारेंगे और इनके संदेशों को समझेंगे। असल में अब ऋतुराज का आगमन होगा। ऋतुराज का मतलब है चारों ओर आनंदित वातावरण। ‘सतरंगी परिधान पहनकर नंदित हुई धरा है, किसके अभिनंदन में आज आंगन हरा-भरा है।’ यह आनंदित वातावरण एक संदेश देता है। भीषण सर्दी के रूप में जीवन के कठिन दौर। इस कठिन दौर के बाद ऊर्जामयी वातावरण। नव पल्लव, नव पुष्प। उसके बाद भी कठिनाई आएगी, एक नये संदेश के लिए। यही तो जीवन चक्र है। हर बार नवीनता। इस नवीनता को बरकरार रखिए। अपने कर्मों में भी और अपने विचारों में भी।
कुछ कहते हैं ठूंठ होते पेड़
नये मौसम से पहले ठूंठ की मानिंद लगने वाले पेड़ भी तो हमें मानो यही सिखा रहे हैं कि नहीं मरने से पहले जीना सीख लें। सब कुछ न्योछावर कर देते हैं पेड़ दूसरों के लिए। ‘वृक्ष कबहुं नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर’ के संदेश की तरह। पत्ते बिखर रहे हैं। ये पत्ते नवसृष्टि का संदेश हैं। पेड़ों पर फिर हरियाली आएगी। पेड़ नयी ताकत के साथ बड़े होंगे। इनका संदेश मानो यही है कि बहार आएगी, लेकिन उसके पहले मुसीबतों से नहीं डरना है।
पीले फूल, शगुन और सुकून
दूर-दूर तक फैले पीले फूल हम सबको जहां सुकून देते हैं, वहीं इसके फायदे ही फायदे हैं। हरियाली के अलग फायदे हैं। ये हरियाली पशु-पक्षियों से लेकर मानव तक सबके लिए अलग-अलग तरीके से लाभदायक है। पशुओं के लिए चारा है। पंछियों के चुगने के लिए इन खेतों में बहुत कुछ है। घोसलों के लिए तैयार होते पेड़ हैं। मनुष्यों के लिए साग-सब्जी के अलावा अब गेहूं की बालियां भी निकलने वाली हैं। अब बात करें पीले सौंदर्य की। सरसों का साग तो है ही, लेकिन अब इनमें फूल और फल आने शुरू हुए हैं। इसके फूल में कई चमत्कारी गुण हैं। जानकार कहते हैं कि सरसों के फूल न सिर्फ दिखने में खूबसूरत होते हैं बल्कि कई समस्याओं का समाधान भी हैं। इनमें एंटीइफ्लेमेटी, एंटी सेप्टिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण मौजूद होते है। साथ ही कई मिनरल्स भी इन पीले रंग से फूलों में पाए जाते हैं। इनसे त्वचा भी निखरती है। फल लगने के बाद सरसों के तेल के गुणों को तो हम सब जानते हैं। तो आइये, कुदरत के इन नजारों को निहारें और इन नजारों का आनंद लेते हुए इनके संदेशों को भी समझें।