मांओं को जुड़वां बच्चों से जुड़े जोखिम
जुड़वां बच्चों को जन्म देना मां के शरीर पर अधिक दबाव डालता है। उनमें हृदय रोग का खतरा अधिक होता है। एक अध्ययन के निष्कर्ष इसकी पुष्टि करते हैं। ऐसी मांओं के हृदय को प्रसव के बाद पहले वर्ष जोखिम रहता है। हालांकि वे सही खानपान और व्यायाम से हृदय रोग का खतरा कम होता है।
नृपेन्द्र अभिषेक नृप
मां बनना किसी भी महिला के लिए एक सुखद अनुभव होता है, लेकिन यह अनुभव शारीरिक और मानसिक रूप से कई चुनौतियों के साथ आता है। विशेष रूप से, जुड़वां बच्चों को जन्म देना मां के शरीर पर अधिक दबाव डालता है। हाल ही में यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जुड़वां बच्चों की माताओं में हृदय रोग का खतरा अधिक होता है, खासकर प्रसव के पहले वर्ष के दौरान। यह शोध अमेरिका के रटगर्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया, जिसमें 2010 से 2020 के बीच 36 मिलियन प्रसवों के डेटा का विश्लेषण किया गया।
अध्ययन के अनुसार, जिन महिलाओं ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया, उनमें हृदय रोग के कारण अस्पताल में भर्ती होने की संभावना अधिक पाई गई। यह जोखिम उन महिलाओं में और अधिक था, जिन्हें गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर या प्रीक्लेम्पसिया की समस्या हुई थी। मुख्य शोधकर्ता डा. रूबी लिन के अनुसार, जुड़वां गर्भावस्था के दौरान मां के हृदय को सामान्य से अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिससे उसकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है।
हृदय रोग का गहरा संबंध
गर्भावस्था के दौरान महिला का हृदय अधिक रक्त पंप करता है, जिससे हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। सामान्य गर्भावस्था में भी यह प्रभाव देखा जाता है, लेकिन जब महिला जुड़वां बच्चों को गर्भ में पाल रही होती है, तो यह प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है। जुड़वां गर्भावस्था में शरीर को अधिक पोषण और ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जिससे रक्त संचार में वृद्धि होती है। यह स्थिति हृदय की धड़कन और रक्तचाप को प्रभावित कर सकती है, जिससे हृदय संबंधी जटिलताएं बढ़ जाती हैं।
अध्ययन के निष्कर्ष
जुड़वां बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं में प्रसव के पहले वर्ष में हृदय रोग से संबंधित समस्याओं का खतरा अधिक था। यह खतरा उन महिलाओं में और अधिक पाया गया, जिन्हें गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप हुआ था। अध्ययन में पाया गया कि एकल गर्भावस्था की तुलना में जुड़वां गर्भावस्था के बाद महिलाओं को हृदय रोग के कारण अस्पताल में भर्ती होने की संभावना अधिक होती है। कार्डियक अरेस्ट या दिल की अन्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
जुड़वां गर्भावस्था के दौरान हृदय पर प्रभाव
रक्त संचार में वृद्धि : जुड़वां गर्भावस्था में शरीर को सामान्य से 40-50 फीसदी अधिक रक्त पंप करना पड़ता है, जिससे हृदय की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। उच्च रक्तचाप का जोखिम : अधिकतर महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है, लेकिन जुड़वां गर्भावस्था में यह समस्या गंभीर हो सकती है। हृदय की धीमी रिकवरी : एकल गर्भावस्था के बाद भी हृदय को सामान्य स्थिति में लौटने में कुछ समय लगता है, लेकिन जुड़वां गर्भावस्था के बाद यह प्रक्रिया अधिक समय ले सकती है। पोस्टपार्टम कार्डियोमायोपैथी: यह एक गंभीर हृदय रोग है, जिसमें प्रसव के बाद हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। हालांकि जुड़वां बच्चों की माताओं में हृदय रोग का खतरा अधिक होता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि यह समस्या सभी महिलाओं में स्थायी रूप से बनी रहे। डॉक्टरों का कहना है कि अगर महिलाएं गर्भावस्था में और प्रसव के बाद सही खान-पान और व्यायाम अपनाएं, तो वे हृदय रोग के खतरे को कम कर सकती हैं।
हृदय रोग से बचाव के उपाय
नियमित स्वास्थ्य जांच : गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद नियमित ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और हृदयगति की जांच करवाएं। असामान्यता महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। संतुलित आहार : जुड़वां गर्भावस्था के दौरान हृदय को स्वस्थ रखने के लिए हरी सब्जियां, फल, साबुत अनाज, कम वसा वाले प्रोटीन और फाइबर युक्त आहार लें। व्यायाम : गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद हल्का व्यायाम करना चाहिये। डॉक्टर की सलाह से योग, टहलने आदि से हृदय स्वस्थ रहता है। तनाव : तनाव हृदय रोग का प्रमुख कारण है। ध्यान, प्राणायाम और सकारात्मक सोच से इसे कम कर सकते हैं। पर्याप्त नींद : नींद की कमी हृदय पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। पर्याप्त नींद लें। वहीं धूम्रपान और शराब से बचें। खासतौर पर, जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान बीपी की समस्या हो, उन्हें प्रसव के बाद भी हृदय की सेहत का ध्यान रखना चाहिए। हालांकि, उचित खान-पान, नियमित व्यायाम और चिकित्सा परामर्श से खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।