RIP Zakir Hussain: महज 7 साल की उम्र में शुरु किया था करियर का सफर, फिर भी कॉन्सर्ट से पहले घबरा जाते थे हुसैन साहब
नई दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा)
RIP Zakir Hussain: महज सात साल की उम्र में जाकिर हुसैन ने अपना पहला संगीत कार्यक्रम किया था और छह दशकों से भी ज्यादा समय तक अपनी शानदार प्रतिभा एवं जोश से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करते रहे। बावजूद इसके, जाकिर हुसैन मंच पर जाने से पहले घबरा जाया करते थे और कार्यक्रम की सफलता के लिए वह अपनी ‘‘किस्मत'' का शुक्रिया अदा किया करते थे।
भारत के सबसे प्रसिद्ध संगीतकारों में से एक 73 वर्षीय जाकिर हुसैन का सोमवार सुबह अमेरिका के सैन फ्रांसिस्कों में एक अस्पताल में निधन हो गया। इस साल की शुरुआत में एक साक्षात्कार में हुसैन ने सितारवादक रवि शंकर के हवाले से कहा कि अगर उन्हें घबराहट नहीं होगी तो कार्यक्रम को लेकर उन्हें काफी चिंता रहेगी।
हुसैन ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा था, ‘‘इसका मतलब था कि उनका ध्यान 100 प्रतिशत उस पर नहीं था, इसका मतलब यह था कि वे इसे हल्के में ले रहे थे और आप जानते हैं कि यह सच है। इतने वर्षों में, आप एक ऐसे पड़ाव पर पहुंच जाते हैं जहां आपने एक प्रतिष्ठा बना ली है, आपने अपने लिए एक तरह का दर्जा बना लिया है और जितना अधिक आप ऐसा करते हैं उतनी ही अधिक जिम्मेदारी आपके कंधों पर आ जाती है क्योंकि आपको उस पर खरा उतरना होता है।''
हुसैन ने तबले को पश्चिमी श्रोताओं के बीच अधिक लोकप्रिय बनाया और उसे पहचान दिलाई। वह ‘फ्यूजन ग्रुप' ‘शक्ति' के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने कहा कि कार्यक्रमों में प्रदर्शन के दबाव की तुलना भारत में खेल रही भारतीय क्रिकेट टीम से की जा सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘दिन-ब-दिन घबराहट या थोड़ा तनाव बढ़ता जा रहा है। मेरा मतलब है, भारत में खेल रही भारतीय क्रिकेट टीम को देखें, उन पर दबाव मेहमान टीम पर दबाव से 100 गुना अधिक होता है। मैं सच में अपनी किस्मत का शुक्रगुजार हूं कि कॉन्सर्ट में जाने से पहले मुझे अब भी थोड़ा तनाव या घबराहट महसूस होती है।''
तालवादक ने महज 12 साल की उम्र में ही संगीत कार्यक्रमों को लेकर दौरा करना शुरू कर दिया था। उन्होंने इस वर्ष की शुरुआत में ग्रैमी अवार्ड्स के 66वें संस्करण में तीन ग्रैमी अवार्ड जीते। उन्हें भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संगीतकारों के साथ काम करने, शैलियों को चुनौती देने और ‘‘प्लैनेट ड्रम'' जैसी उत्कृष्ट कृतियां बनाने के लिए जाना जाता है। ‘‘प्लैनेट ड्रम'' अमेरिकी तालवादक मिकी हार्ट के साथ एक विश्व संगीत एल्बम था जिसे 1992 में सर्वश्रेष्ठ विश्व संगीत एल्बम के लिए पहला ग्रैमी पुरस्कार दिया गया था।
उस्ताद अल्लाह रक्खा के बेटे हुसैन ने कहा कि ‘‘सर्व समावेशी संगीत की रचनात्मकता'' उनमें स्वाभाविक रूप से आई, क्योंकि उन्होंने एक महान तबला वादक अल्लाह रक्खा से संगीत सीखा और उनके साथ काम किया, जिन्होंने कुछ फिल्मों के लिए भी संगीत तैयार किया था। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे याद है, जब सात या आठ बरस की उम्र से ही मैं उनके (अपने पिता के) साथ आशा जी या लता जी या रफी के साथ उनके सभी रिकॉर्डिंग सेशन में जाता था और ऑर्केस्ट्रा का हिस्सा होता था... वे मुझे खंजरी या तंबूरा या कुछ और बजाने के लिए देते थे। मैं ऐसे हालात में बड़ा हुआ, जहां संगीत की रचनात्मकता में रहना स्वाभाविक था, जो एकल प्रक्रिया के विपरीत एक सर्व समावेशी प्रक्रिया थी।''
हुसैन ने कहा, ‘‘इसलिए जैसे-जैसे मैं बड़ा हो रहा था, मेरी मानसिकता इस विचार के अनुकूल होती गई कि संगीत, सिर्फ संगीत है, यह न तो भारतीय संगीत है या न ही कोई और संगीत है। इसलिए जब मैंने वास्तव में गैर-भारतीय संगीतकारों के साथ काम करना शुरू किया तो यह एक स्वाभाविक हाथ मिलाने जैसा लगा।'' तबले को लंबे समय से भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक संगत वाद्ययंत्र के रूप में देखा जाता रहा लेकिन समय के साथ यह अपनी उस छवि से बाहर निकलकर संगीत संसार का केंद्र बिंदु बन गया है।
उन्होंने कहा कि यह पंडित रविशंकर, उस्ताद विलायत खान, उस्ताद अली अकबर खान, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान और पंडित बिरजू महाराज जैसे लोगों के साथ उनका काम था, जिससे दर्शकों ने वास्तव में यह नोटिस करना शुरू किया कि ‘‘यह दूसरा व्यक्ति इतना बुरा नहीं है, बल्कि यह भी उतना ही अच्छा है। इस तरह चीजें आगे बढ़ने लगीं''। हुसैन ने कहा, ‘‘इसकी वजह से अगली पीढ़ी के तबला वादकों को एक ‘लॉन्चिंग पैड' मिल गया। क्योंकि चीजें पहले से ही तैयार थीं, लेकिन हमें इसका सबसे बेहतर उपयोग करना था और किस्मत से हम वह ‘ताल' बैठाने में सक्षम रहे।''