जीने का हक
एक बार अपने राज्य में प्राकृतिक आपदाओं से राजा अजातशत्रु खासे विचलित हुए। उन्होंने मंत्री परिषद व राज ज्योतिषी से उपाय पूछा तो उन्हें तंत्र साधना और पशु बलि की सलाह दी गई। राजा ने उपाय की अनुमति दे दी। एक सार्वजनिक स्थान पर एक भैंसे की बलि देने की व्यवस्था हुई। बधिक भी हथियार लेकर तांत्रिक के आदेश की प्रतीक्षा करने लगा। इसी दौरान संयोग से उधर से गौतम बुद्ध गुजर रहे थे। पशु बलि की खबर सुनकर उन्हें दुख पहुंचा। उन्होंने मैदान में भयभीत भैंसे को देखा। महात्मा बुद्ध ने उसके प्राण बचाने का संकल्प लिया और राजा अजातशत्रु के पास पहुंचे। उन्होंने राजा को एक तिनका देकर उसे तोड़ने का आग्रह किया। राजा ने उसे तोड़ दिया। फिर महात्मा बुद्ध ने उसे जोड़ने का आग्रह किया। राजा ने कहा ऐसा संभव नहीं है। महात्मा बुद्ध ने कहा कि हे राजन! आप किसी प्राणी की जान ले तो सकते हैं, मगर उसे फिर से जीवित नहीं कर सकते। महात्मा बुद्ध ने कहा कि राजन, मूक जानवरों की हत्या से आपदाएं बढ़ती हैं, कम नहीं होती। उन्हें भी जीने का अधिकार है। राजा अजातशत्रु महात्मा बुद्ध के तर्कों से बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने तत्काल प्रभाव से राज्य में जीव हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा