काली घोड़ी का सवार
आग़ाज़बीर
पंजाबी कहानी
‘माना, हम जिन्दगी काट रहे हैं, पर यदि यह अपनी जिन्दगी का पांच फीसदी भी सही दिशा में लगाता तो वह काली घोड़ी पर ही सवार रहता।’ वह कोई नया अध्याय लिखेगी, यह मुझे प्रतीत हो रहा था। उसने लिफाफा उठाया और बड़े इत्मीनान के साथ उसमें से काग़ज़ निकाले। ‘जीतन बाकी सारे गुनाह माफ़, जो मेरे साथ हुआ, उसे कोर्ट-कचहरी माफ़ कर सकती है, मैं नहीं। यह नशे करता है। बेशक ये चिट्टा खाये, काला खाये... टीके लगवाए, अपने शरीर के साथ जो चाहे करे।’ उसने रिपोर्ट के काग़ज़ निकाल कर मुझे थमा दिए, जिन पर डॉक्टर वर्मा ने जांच की तसदीक़ की हुई थी।
‘एक औरत बंदे में बहुत कुछ तलाशती रहती है।’ भाभी ने मेरे ऊपर अखाड़े में कुश्ती लड़ रहे पहलवान की तरह वार किया।
मेरे होंठों पर मुस्कान तैर गई और उधर भाभी ने एक और तीर मुझ पर चला दिया, ‘असली हीरो तो वही होता है जिसको सही टाइम पर एक्जिट कर एंट्री मारने का हुनर आता हो।’
भाभी की चाणक्य नीति मुझे डरा गई, पूरा ड्राइंग रूम घूमता प्रतीत हुआ और मैं सोफे पर बैठा सोचने को मजबूर हो गया।
वह मुझे पानी का गिलास पकड़ाकर मेरे साथ मसखरियां करती रही, पर मुझे उसके बोल फिल्मी से ही लगे, असल जीवन में जिनका मूल्य जीरो है।
भाभी के एटमी कथनों ने मेरे दिमाग के परखच्चे उड़ा दिए। मैंने हिम्मत जुटाकर उसको भरोसे में लेते हुए पूछा, ‘कोई मुश्किल है भाभी?’
‘मुश्किल तो गरीबों को आती है, और मैं तुझे बता दूं, तेरा यह दोस्त तब तक ही किस्मतवाला है, जब तक मैं खड़ी हूं।’ उसका शेरनी जैसा रूप देख मैं हैरान-परेशान हो गया, अचंभित भी।
मैं और अधिक गहराई में जाकर सच की खोज करना चाहता था कि आखिर आज उलटी गंगा क्यों बह रही है?
मैंने भाभी की नज़रों से नज़रें मिलाईं। उसका यह व्यवहार मुझे बैठने नहीं दे रहा था। तभी मेरे मोबाइल की बजी घंटी ने वातावरण में और ज्यादा गंधक घोल दी। मैं कॉल काट कर उसकी बात सुनने लगा।
उसने कुछ ही क्षणों में सब कुछ तबाह कर दिया। भाभी के स्वभाव में आई यह तब्दीली मुझे बहुत अखरी और एकाएक उसका जलवा बदल गया। बिजली के करंट की तरह अचानक आई इस तब्दीली ने उसके कश्मीरी सेब सरीखे रंग-रूप को कुछ और ही कर दिया था।
‘तुम ऐसा क्यों कर रही हो भाभी? ...क्या हो गया? ...खुल कर बताओ। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर हुआ क्या है?’
‘लानत है मुझे अपने आप पर, मैं सात साल से तुम्हारे परिवार के साथ हूं और इन सात सालों में रवि को सिर्फ सात परसेंट ही समझ सकी अब तक।’
‘देख जीतन, मैं मूर्ख तो विश्वास की सीढ़ी पर ही चढ़ी रह जाती, हकीकत और सच छुपा ही रह जाता। आखिर कब तक, तुम सूरज को बादलों तले रख सकते हो। जिस तरह रवि ने मेरे साथ किया, वो तो त्रेतायुग में किसी के साथ न हुआ... ये लिफाफा सब कुछ बताता है।’ भाभी रबनूर ने लिफाफा हवा में लहराया। उसके हाथ में पकड़ा हुआ लिफाफा मुसेवाले के हाथ में पकड़ी एके-47 जैसा लगा।
मैं रवि के बारे में सुन हतप्रभ रह गया। दिल्ली-दक्खिन घूमने वाला सरेआम नंगा हो गया। रवि मेहनती, होशियार और शातिर दिमाग का व्यक्ति था।
यद्यपि अब रवि का बिजनेस निचले ग्राफ पर है, पर भाभी ने रवि के साथ कभी बेवफाई न की। हम महाराजाओं जैसी सोच छोड़ भयभीत-से हिमाचल के शहर चम्बा में आ बैठे।
हम एक साथ पढ़े। मेरी और रवि की दोस्ती बहुत पुरानी थी। पढ़ाई के बाद सारी दुनिया की बारीकियां समझते हुए हमने इकट्ठे ही बिजनेस शुरू किया।
मुझे वे दिन नहीं भूलते जब उसने स्टूडियो में बैठ अपना लोहा मनवाया। चंडीगढ़ जाकर काम किया, बनियों की तरह जट्टों के लड़कों ने काम किया। ग्राहक की हर ज़रूरत पूरी की। जब यह काम अपने पतन की ओर सरकने लगा तो हम दोनों ने एडिटिंग का काम सीख, अपने काम में महारत हासिल कर सबसे ऊंची सीढ़ी पर जा खड़े हुए। बहुत सारे कलाकारों और गायकों को स्टार बनाया। उसने जिसका भी हाथ पकड़ा, उसको पार लगाया। अब वह स्वयं को फन्ने खां समझने लगा। रुपयों से तिजोरियां भरी पड़ी थीं। अब उसको ‘बाहर’ का भुस घड़ गया था। तरह-तरह के व्यंजनों और महंगी गाड़ियों पर अनगिनत रुपये पानी की तरह हर रोज़ बहाये जाते।
मुझे खीझ आती, जब उसकी यारी पुरुषों की अपेक्षा औरतों से ज्यादा होने लगी। वह पबों, होटलों और बीयर-बारों में लड़कियों के साथ जाकर अपने निकम्मे शौक पूरे करता।
मैं जब भी उसे समझाता, ‘हम धरती से जुड़े लोग हैं, रवि। हमें यूं पैर नहीं छोड़ने चाहिए।’ तो उसका सदैव एक ही उत्तर होता, ‘बच्चू, तू अभी इस खेल में बच्चा है।’ मेरे चेहरे पर चुप तन जाती।
चिट्टे और काले नशे ने उसको जकड़ रखा था। अब स्टूडियो के मालिक भी बदल गए थे। उन्होंने बदनाम हुए रवि को बाहर का रास्ता दिखा दिया। मैं भी रवि के साथ चला आया। हम चंडीगढ़ की सड़कों पर आ गए। जब होश आया तो रवि के दिमाग को चढ़ा अमीरी का नशा उतरने लगा। सिर्फ पश्चाताप और आहें ही पल्ले रह गई थीं।
यह चोट खाने के बाद रवि ने दिल्ली की ओर कदम बढ़ा दिए और मैं गांव लौट आया। मुझे जानकर अचरज हुआ कि उसने सोने की लंका दुबारा खड़ी कर ली है। उसने इस धारणा को भी झूठ साबित कर दिया कि खरगोश का शिकार हर बार एक ही बिल से नहीं हो सकता।
उसने नवी महता और दूबे संग यारी गांठ ली, जो मीडिया चैनल लगाने का काम करते थे। पर व्यापार धीमा चल रहा था उनका। रवि पुराना खिलाड़ी था और उसके हाथों में बरकत थी। उसने मुझे भी दुबारा अपने संग जोड़ लिया।
नए मीडिया चैनल लगाने के साथ हमारे दिमाग के भी कई चैनल खुल गए। कुछ ही दिनों में अपनी डीलिंग के कारण हम चैनल लगाने के महारथी बन गए। सवेरे कोलकत्ता, दोपहर मुंबई और शाम को दिल्ली होते। हम काली घोड़ी के शहसवार थे। मंत्रियों के साथ हमारी निकटता थी।
अनेक लड़कियों के साथ धक्के खाने के पश्चात रवि रबनूर का हो गया। बिजनेस में फिसलन बहुत है। इसका कुछ पता नहीं चलता। ऊंट पर बैठे को कुत्ता काटने वाली यह कहावत इस व्यापार में सही बैठती है।
चुनाव हुए, लोकतंत्र के राज में कुर्सी के सूत्रधार बदल गए। नई सरकार बनते ही मीडिया जनता की बजाय एक व्यक्ति के हाथ में आ गया और देनदारी की लकीरें लेनदारी से बड़ी होने लगी। नवी महता और दुबे के रंग-ढंग बदल गए। प्रॉपर्टी और शेयर उनके नाम पर ही थे, ऊपर से नोटबंदी भी आ गई। देखते-देखते सब बिक गया- कारें, कोठियां और सोना भी। कर्जे ने दिमाग को खा लिया।
समय ने फिर दौड़ाया और हम दिल्ली से भागकर हिमाचल के शहर चम्बा में आ छिपे। यहां चार महीनों में हर घड़ी अनोखी और डरावनी बीती।
आज भाभी के तीर सरीखे बोल मेरे सीने में धंस गए। भाभी की मनोदशा शतरंज की चाल समझने के बराबर थी।
‘जीतन, मैं सब कुछ कुर्बान कर आई थी। शक्लों के साथ प्यार थोड़े ही होते हैं। बस, दिल मिला और प्यार हुआ! हर औरत आदमी को एक सीमा तक ही बर्दाश्त कर सकती है, पर यह आदमी तो सारी उम्र ही बेलगाम रहा है।’
‘तूने भी नहीं बताया मुझे, तू तो उसका खासमखास दोस्त है। मुझे तो तुझ पर भी रब जितना यकीन था, जिसे तूने भी आज तोड़ दिया।’
मैं गहरी सोच में उतरता जा रहा था कि विवाह से करीब डेढ़ साल तक तो अच्छी निभ रही थी भाभी की रवि के साथ, पर अब कौन-सी सच्चाइयों के निशान ढूंढ़ रही है। यह असमय भूकंप कहां से आ गया। उसका कतरनों की गुडि़या-सा उधड़ना, आने वाले समय के लिए ख़तरे की घंटी के समान था।
‘माना, हम जिन्दगी काट रहे हैं, पर यदि यह अपनी जिन्दगी का पांच फीसदी भी सही दिशा में लगाता तो वह काली घोड़ी पर ही सवार रहता।’ वह कोई नया अध्याय लिखेगी, यह मुझे प्रतीत हो रहा था। उसने लिफाफा उठाया और बड़े इत्मीनान के साथ उसमें से काग़ज़ निकाले।
‘जीतन… बाकी सारे गुनाह माफ़, जो मेरे साथ हुआ, उसे कोर्ट-कचहरी माफ़ कर सकती है, मैं नहीं। यह नशे करता है। बेशक ये चिट्टा खाये, काला खाये... टीके लगवाए, अपने शरीर के साथ जो चाहे करे।’
उसने रिपोर्ट के काग़ज़ निकाल कर मुझे थमा दिए, जिन पर डॉक्टर वर्मा ने जांच की तसदीक़ की हुई थी।
‘ताकत की बात कहकर यह मेरे भी टीके लगाता रहा। वे ताकत के नहीं थे जीतन, वे नशे के टीके थे…। रिपोर्ट आई है कि मैं एच.आई.वी़ पॉजीटिव हूं।’ वह सिसक-सिसक कर रोने लगी।
भाभी के ये शब्द सुनकर मेरे शरीर में अजीब-सी झुरझुरी दौड़ गई। गुरमन्नत, पायल और सुनीता जैसी कितनी ही लड़कियों के चेहरे जिन्हें मैं भूल चुका था, मेरी आंखों के सामने साकार हो उठे, जो रवि की काली घोड़ी के पैरों तले आकर मारी गई थीं।
अनुवाद : सुभाष नीरव