सार्थक प्रश्नों के जरिये यथार्थ की बानगी
फूलचंद मानव
कुंवर नारायण हमारे समय के बड़े कवियों में से एक हैं। कविता क्रम में इनका शुमार एक बौद्धिक रचनाकार के रूप में हुआ है। कथा, कला, चिंतन-मनन भी, इनके यहां काव्य रचना के साथ चलता रहा है। ‘जिये हुए से ज्यादा’ कृति रचनाकार को पूर्णतः स्वस्थ लेखक के रूप में पाती है। अतीत, वर्तमान और भविष्य में, झांकती कुंवर नारायण की रचनाएं अमिट हैं। इन्हीं आधारों पर कुछ अन्य सुधि लेखक-लेखिकाएं इनसे प्रश्न करती हैं तो उत्तरों में जीवन दर्शन भी प्रकट हो रहा होता है।
हिंदी और अंग्रेजी में पूछे सवालों के जवाब कुंवर नारायण मनोयोग से दे पाये हैं। यही ‘जिये हुए से ज्यादा’ की उपलब्धि है। वंदना राग, मृणाल पांडे, गगन गिल, संध्या सिंह, लताश्री के साथ पूनम सिंह, रेखा सेठी अनामिका आदि के हिंदी या अंग्रेजी में पूछे हुए प्रश्नाें के उत्तर कुंवर नारायण के रचनाकार को बड़ा कर रहे हैं। संगीत, शिक्षा, कला के साथ कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी आदि पर भी यहां खुली चर्चा है। तुलनात्मक अध्ययन से बचकर समकालीन रचनाकारों के नाम न लेकर भी कुंवर जी ने भूमिका निभाई है।
मिट्टी आकाश फूल अपना-पराया? मात्र प्रश्नोत्तरी नहीं, चिंतनधारा के पंच हैं, विचार एक अनुभव है। हालिया और कविता, नया आकर्षण कहां? जीवन की कविता क्लासिक्स, साहित्य और चिंतन, कल्पना जीवन की भाषा के साथ विज्ञान भी काव्यमय है। दिनचर्या से लेकर अरुण संधू, अमरेंद्र त्रिपाठी, नरेश सक्सेना, विजय कुमार, महावीर अग्रवाल, रोहित कौशिक और कालेज के छात्रों तक के सार्थक प्रश्नों को इन्होंने सटीक उत्तर दिया है। अंग्रेजी के 32 पृष्ठ इस प्रश्नोत्तरी को बहुआयामी बना रहे हैं। राजकमल की कृति गंभीर पाठकों में स्थान पाएगी। हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी में रचनाकार समान रूप से मुखर रहा है।
पुस्तक : जिये हुए से ज्यादा : कुंवर नारायण के साथ संवाद संपादक : अपूर्व नारायण प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 232 मूल्य : रु. 545.