यकीनी बने अफगान महिलाओं के हकों की बहाली
केएस तोमर
अगस्त, 2021 में तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की सत्ता पर पुनः कब्जा करने के साथ ही, इससे उस देश की महिलाओं का जीवन लगभग अंधकारमय ही हो गया। एक सुनियोजित रणनीति के तहत, तालिबान नेतृत्व ने महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों पर हमला किया है। सत्ता में आने के बाद तालिबान ने वादा किया था कि वह सभी को साथ लेकर अफगानिस्तान पर शासन करेंगे, लेकिन समय के साथ उनका यह वादा झूठा साबित हो गया। एक बार फिर से पुरानी निरंकुश व्यवस्था उभर आई है, जिसमें केवल पुरुष प्रधान व्यवस्था का बोलबाला है और महिलाओं को पीछे धकेल दिया गया है। अब अफगान महिलाओं के अधिकारों का लगातार उल्लंघन हो रहा है। महिला अधिकारों की यह स्थिति अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, खासकर अमेरिका के सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा करती है कि मानवाधिकारों का ढोल पीटने वाला यह ताकतवर राष्ट्र अफगानिस्तान में अपनी नैतिक जिम्मेदारी को कैसे निभाएगा।
अपने आर्थिक, राजनीतिक और व्यावसायिक हितों के कारण चीन और अरब राष्ट्रों ने तालिबान द्वारा महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचारों को नजरअंदाज करना स्वीकार कर लिया है। इन देशों के इस निंदनीय रवैये के कारण विश्व के अन्य देशों द्वारा स्थिति सुधारने के प्रयास कमजोर पड़ गए हैं। समय की मांग है कि चीन और तालिबान समर्थक देश अपना रवैया बदलें और तालिबान पर दबाव डालें कि वह महिलाओं के अधिकारों को बहाल करे और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार मिलें।
हाल ही में तालिबान ने एक नया आदेश जारी किया है। इसके तहत महिलाओं को घर से बाहर निकलते समय अपना चेहरा, सिर और पूरा शरीर ढकना होगा। उन्हें अपनी आवाज पर भी नियंत्रण रखना पड़ेगा; ऊंची आवाज में बात करने की अनुमति नहीं है। महिलाओं के गाने और ऊंची आवाज में कुरान पढ़ना भी निषिद्ध है। पतले और पारदर्शी कपड़े पहनने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। यह भी कि महिलाएं अपने घर में भी इतनी ऊंची आवाज में बात नहीं करें कि उनकी आवाज बाहर सुनाई दे। इन अमानवीय आदेशों के खिलाफ दुनिया के देशों को मूक दर्शक नहीं बनना चाहिए। इन आदेशों का जोरदार विरोध करना चाहिए।
भारत भी इसमें योगदान दे सकता है और उन प्रताड़ित महिलाओं को राजनीतिक शरण प्रदान कर सकता है जो खतरे में हैं। भारत अफगान महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा के लिए धन मुहैया करवा कर तालिबानी आदेशों के प्रति अपना विरोध दर्ज करवा सकता है। भारत क्षेत्रीय समन्वय के माध्यम से तालिबान पर राजनीतिक और नैतिक दबाव बना सकता है क्योंकि अफगानिस्तान की महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण विश्व के लिए महत्वपूर्ण है।
अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों में भी भारी कटौती की गई है। सरकार के फरमानों के कारण अधिकांश व्यावसायिक व रोजगार के अवसर महिलाओं की पहुंच से बाहर हो गए हैं। महिलाएं अब घर की चारदीवारी के भीतर बंद होकर रह गई हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता प्रभावित हुई है। बाजार और कार्यालयों में, जहां पहले महिलाओं की उपस्थिति होती थी, वहां अब केवल पुरुष ही नजर आते हैं। पहनावे पर लगे प्रतिबंधों और चेहरा ढका रहने के कारण महिलाएं अपने ही देश में गुमनाम-सी हो गई हैं।
महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली अफगान महिलाओं को हिंसा का शिकार होना पड़ता है और उनके लिए अब सभी रास्ते बंद हो गए हैं। अधिकांश या तो जेलों में बंद हैं या छुपकर डर के माहौल में जी रही हैं। जिन महिलाओं ने इन नियमों का उल्लंघन किया, उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा है। तालिबानी आतंक केवल शारीरिक दंड तक ही सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं को मानसिक रूप से भी प्रताड़ित किया जा रहा है और कोई उनकी मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहा, जिस कारण नारी शक्ति अफगानिस्तान में असहाय बनकर रह गई है।
यद्यपि अमेरिका और अन्य देशों तथा मानवाधिकार से जुड़े संस्थानों ने तालिबान द्वारा महिलाओं के अधिकारों के दमन की निंदा की है, लेकिन किसी भी स्तर पर ऐसी कार्रवाई नहीं की गई जिसका लाभ इन शोषित महिलाओं को मिल सके। संयुक्त राष्ट्र भी अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन तालिबान के विरोध के कारण सफल नहीं हो पाया है। हालांकि मानवीय आधार पर सहायता दी जा रही है, लेकिन इसे दीर्घकालिक समाधान नहीं कहा जा सकता। तालिबान के दखल के कारण अधिकांश सहायता सामग्री उन लोगों तक नहीं पहुंच रही जिन्हें इसकी सख्त जरूरत है।
इन परिस्थितियों में, विश्व समुदाय को ठोस प्रयास करने होंगे क्योंकि अफगानिस्तान की महिलाओं की लड़ाई दुनिया की सभी महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई है। ऐसे हालात में विश्व चुप नहीं रह सकता जब एक राष्ट्र अपनी आधी आबादी को उनके अधिकारों से वंचित कर रहा हो। कुछ ऐसा सुनिश्चित करना होगा जिससे अफगान महिलाएं आश्वस्त हो सकें कि विश्व उनके साथ है, विरोधियों के साथ नहीं, क्योंकि इन हालात का दूरगामी असर विश्व भर में पड़ेगा।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।