बदलते वक्त के साथ चुनौतियों का दायित्व
प्रो. आर.सी. कुहाड़
भारतीय चिंतन में शिक्षक, आचार्य, गुरु और सद्गुरु का वर्णन लगभग प्रत्येक ग्रंथ में उपलब्ध है। भारत ने ज्ञान के स्रोत वेदों को लिपिबद्ध किया और विश्व को उस ज्ञान से परिचित कराया। हम सदैव कंगूरे की ईंट के गीत गाते हैं नींव की ईंट के गीत कौन गाता है? हम उस बीज को भूल जाते हैं जिसने गलकर इस वृक्ष का निर्माण किया था। वृक्ष का निर्माण बिना बीज के गले नहीं हो सकता। जिन ऋषि- मुनियों ने वेदों व उपनिषदों की रचना की, वह किसी लोभवश नहीं बल्कि सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की धारणा को मन में रखकर उन्होंने उस ज्ञान को लिपिबद्ध किया। उस ज्ञान की चर्चा अपने शिष्यों के साथ की, जिनका वर्णन उपनिषदों में मिलता है। दरअसल, शिक्षक, आचार्य, गुरु और सद्गुरु इन्हीं व्यक्तियों के नाम हैं। जिन्होंने अपने ज्ञान, आचरण, प्राण और चेतना द्वारा अपने परिसर को अनुप्राणित किया है, पुष्पित और पल्लवित किया है।
भारतीय चिंतन में जिस दिन चंद्रमा पूरा निकलता है, उस दिन पूर्णमासी होती है, एक पर्व होता है, त्योहार होता है, कभी उस त्योहार पर रक्षाबंधन होता है, कभी गुरु पर्व होता है, कभी होली होती है और कभी गुरु पूर्णिमा भी मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे जो दर्शन है, वह दर्शन हमें हमारे गुरुओं, आचार्यों और सद्गुरुओं के नमन-वंदन, स्वागत-अभिनंदन करने को प्रेरित करता है। जिसमें हम अपने आचार्यों के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करते हैं।
आज 5 सितंबर है, जिसे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में, शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा और शिक्षक दिवस हम सबको यही प्रेरणा देते हैं कि हमें ज्ञान के स्रोत से जुड़े हुए व्यक्तियों का आदर और सम्मान करना चाहिए। वह सम्मान हमारे चिंतन में, हमारे व्यवहार में, हमारी वाणी में, हमारे कार्यों में परिलक्षित होना चाहिए। जिनके लिए हमारे मन में आदर व सम्मान का भाव होता है, हम उनका कहना मानते हैं। हम जिनका कहना मानते हैं, वह हमारे कार्य व्यवहार का अंग बन जाता है, व्यवहार व्यक्तित्व का दर्पण होता है। हमारे व्यक्तित्व से हमारे शिक्षक, आचार्य द्वारा सिखाई गई शिक्षा ही दिखाई देती है। जहां हमारी भौतिक उपस्थिति नहीं होती है, वहां पर हमारे यह गुण-अवगुण ही हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए हमें शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए।
शिक्षक वह होता है जो जानता है कि बेहतर शिक्षण के लिए मन और मानसिकता का मेल होना आवश्यक है। शिक्षक ज्ञान का मानव कम्प्यूटर/संगम है। शिक्षण संस्थान के निर्माण में शिक्षक का कौशल और दृष्टिकोण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। शिक्षक को भावनाओं से निपटना आना चाहिए। वर्तमान में शिक्षक को डिजिटल शिक्षा के प्रसार से निपटने के लिए शिक्षण और सीखने के डिजिटल तरीकों को सीखने की आवश्यकता है। शिक्षक को स्वयं जागरूक होने और छात्रों में नई शिक्षा पद्धति, गतिविधियों, कार्यक्रमों और मूल्यांकन प्रक्रिया के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। शिक्षक जागरूकता को व्यवहार में बदलने में सक्षम होने चाहिए। यह शिक्षक ही है जो शिक्षण संस्थानों में मूल्य संस्करण लाता है। शिक्षक को कभी भी छात्रों के साथ उनकी जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर व्यवहार नहीं करना चाहिए। एक शिक्षक सभी जातियों, धर्मों और क्षेत्रों से संबंधित होता है, या किसी से भी नहीं। शिक्षक को कभी भी अयोग्य छात्रों की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए और कभी भी स्वार्थी उद्देश्यों के लिए उनका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। शिक्षक को जनता द्वारा कर्मचारी नहीं माना जाना चाहिए। शिक्षक को स्वयं को कर्मचारी नहीं समझना चाहिए क्योंकि शिक्षक ही एकमात्र व्यक्ति है जो राष्ट्र निर्माण में सक्षम है और राष्ट्रीय निर्माण प्रक्रिया में बड़ी भूमिका निभाता है। शिक्षक छात्रों को तार्किक, विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक रूप से सोचने में सक्षम बनाता है। शिक्षक हमें ज्ञान, विचार, अनुसंधान व संसाधनों को साझा करना सिखाते हैं। निस्संदेह, सबसे प्रतिभाशाली दिमाग को शिक्षा के क्षेत्र में आना चाहिए।
पूरे विश्व में इन शिक्षकों द्वारा तैयार किए गए विद्यार्थियों का ही इतिहास दिखाई देता है। कौन नहीं जानता महान दार्शनिक सुकरात को, अरस्तु और प्लेटो को? कौन भूल सकता है चाणक्य को, कुमार जीव को, सर सीवी रमन को, महर्षि अरविंद को, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जी को जिन्होंने आजीवन शिक्षक धर्म निभाया। अध्यापक वो है जिसका ध्येय अध्यापन का हो और जो सदैव नवीन विचारों के लिए अपने आप को तत्पर रखे, और उनको समय, परिस्थिति, देश के अनुरूप विद्यार्थियों तक पहुंचाता रहे। उसे अपने विचारों को कार्य रूप में परिणत करने का भी ध्यान रखना होगा। तभी कक्षाओं में किया गया वार्तालाप समाज की समस्याओं के निराकरण का कारण बनेगा। शिक्षक को अपने कार्य व्यवहार और आचरण से अपने विद्यार्थियों के अंदर समयबद्धता को उनके एक गुण के रूप में विकसित करना होगा। शिक्षक को नए अन्वेषण के लिए निरंतर सीखने रहने की आदत बनानी होगी।
हमारे राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने क्या कहा था : 'यदि देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है और रचनात्मक मस्तिष्कों वाला राष्ट्र बनाना है, तो तीन प्रमुख सामाजिक सदस्य हैं जो बदलाव ला सकते हैं : माता, पिता और शिक्षक। शिक्षक छात्रों को आत्मविश्वासी बनने, तनाव से निपटने, भावनात्मक स्थितियों से निपटने और सबसे बढ़कर राष्ट्र के प्रति प्रेम और ईमानदारी से काम करने में मदद करता है।’
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने दानों में सर्वश्रेष्ठ दान ज्ञानदान को ही कहा है। ज्ञान का दान करने वाला आचार्य होता है, शिक्षक होता है, गुरु होता है, इसलिए आज शिक्षक दिवस पर हम संकल्प लें कि हम शिक्षकों, आचार्यों और गुरुओं को वह सम्मान सदैव देते रहेंगे जो उन्हें दिया जाना चाहिए।
लेखक हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति रहे हैं।