सिनेमाई प्रतिभा की गहराई का सम्मान
कैलाश सिंह
कान्स में अप्रत्याशित जीत दर्ज करने के बाद आज पूरा देश पायल कपाड़िया पर गर्व कर रहा है और हर जगह उनकी प्रशंसा हो रही हैं। लेखक, गीतकार व शायर जावेद अख्तर व अभिनेत्री शबाना आज़मी ने उन्हें अपने घर पर डिनर के लिए आमंत्रित किया है ताकि उनकी कामयाबी का जश्न मनाया जा सके। इसके अलावा जश्न मनाने की वजह और भी है कि इस बार कान्स में भारत के एफटीआईआई निर्देशकों की तीन फ़िल्में हैं। मैसम अली की ‘इन रिट्रीट’ की एंट्री है, साथ ही चिदानंदा नायक की फिल्म ‘सनफ्लावर्स वर द फर्स्ट वन्स टू नो’ भी है।
ग्रांड प्रिक्स सम्मान
पायल की पहली फीचर फिल्म ‘आल वी इमेजिन एज़ लाइट’ को कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रतिष्ठित ग्रांड प्रिक्स पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, जोकि कान्स में दूसरा सबसे बड़ा सम्मान है। यह पुरस्कार पाने वाली पायल भारत की पहली फ़िल्मकार हैं। कान्स के कम्पिटीशन सेक्शन में भारत की कोई फिल्म 30 वर्ष बाद मुकाबला कर रही थी। बता दें कि साल 2015 में फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (एफटीआईआई) पुणे के चेयरपर्सन की नियुक्ति के बाद विवाद हुआ था। तब छात्रों के विरोध-प्रदर्शन में पायल कपाड़िया भी सक्रिय थीं, इसलिए उन्हें ट्रोलिंग झेलनी पड़ी व उन पर मुकदमा दायर हुआ था।
एफटीआईआई टीचर्स व छात्रों को दिया श्रेय
अब पुरस्कार मिलने के बाद एफटीआईआई विवाद के बारे में पायल ने इतना तो कहा कि वह ‘उन लोगों की एफटीआईआई की प्रशासनिक परिषद में नियुक्ति के खिलाफ़ था जिनकी फिल्म निर्माण में कोई उपलब्धि नहीं थी ,केवल राजनीतिक कारणों से उन्हें नियुक्त किया था’। लेकिन अपनी सफलता का श्रेय एफटीआईआई के टीचर्स व छात्रों को दिया ।
अन्य तीन भारतीय फिल्में भी कांस में
पायल के अनुसार, ‘यह पुरस्कार पाकर बहुत अच्छा अहसास हो रहा है; क्योंकि हमारी फिल्म के अतिरिक्त भी भारत से बहुत अच्छी फ़िल्में आयी हैं। इस बार कान्स में एफटीआईआई निर्देशकों की तीन फ़िल्में हैं। एफटीआईआई बैचमेट मैसम अली की फिल्म ‘इन रिट्रीट’ कान्स के एसिड साइडबार में भारत की पहली एंट्री है। वहीं एफटीआईआई के छात्र चिदानंदा नायक की फिल्म ‘सनफ्लावर्स वर द फर्स्ट वन्स टू नो’ ने एक सेक्शन में मुख्य प्राइज जीता। यह हमारे और एफटीआईआई के लिए शानदार है।’
अभिनेत्री अनसुइया ने भी मारी बाजी
कोलकाता में जन्मीं अनसुइया सेनगुप्ता ने भी कान्स फेस्टिवल में इतिहास रचा है। वे भारत की पहली अदाकारा हैं जिन्हें फेस्टिवल के अन सर्टेन रिगार्ड सेक्शन में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला है, बुल्गारिया के निदेशक के. बोजनोव की फिल्म ‘द शेमलेस’ में सेक्स वर्कर की भूमिका निभाने के लिए। सेन गुप्ता आर्ट डायरेक्टर हैं और ‘सात उचक्के’, ‘फॉरगेट मी नॉट’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया।
काम आया इंस्टिट्यूट का एक्सपोज़र
पायल को हमेशा से मालूम था कि उन्हें कहां जाना है। बेशक उन्हें स्कॉलरशिप व फॉरेन एक्सचेंज ऑफर नहीं दिया गया था। लेकिन फिर भी उनका मानना है कि एफटीआईआई ने उन्हें बेहतर फ़िल्मकार, बेहतर इंसान और ज़िम्मेदार नागरिक बनाया है। पायल का मानना है कि इंस्टिट्यूट का यह फ़ायदा तो है कि विविध सिनेमाई विचार हासिल होते हैं। वह कहती हैं, ‘एफटीआईआई अच्छी जगह है उन लोगों से मिलने की जो सिनेमा से प्यार करते हैं। मेरे विचारों को दिशा देने में मेरे बैचमेट्स का बड़ा योगदान है। एफटीआईआई में दुनियाभर का सिनेमा देखने का अवसर मिला और इस एक्सपोज़र ने मेरी फिल्म बनाने में मदद की।’
हरदम कैमरे के पीछे
पायल के दो मुख्य गुण संयम व लगन हैं। वह हरदम कैमरे के पीछे रहती हैं। उन्होंने एफटीआईआई में विरोध-प्रदर्शन का फुटेज तैयार किया, जिसे बाद में उन्होंने ‘नाइट ऑफ़ नोइंग नथिंग’ नामक डॉक्यूमेंट्री में बदला, उसे कान्स में 2021 में लओइल डओर से सम्मानित किया गया। साल 2017 में पायल की ‘आफ्टरनून क्लाउड्स’ भी कान्स के एक सेक्शन में थी।
भारत की सिनेमाइ प्रतिभा की अभिव्यक्ति
कान्स के मेन ड्रॉ में भारत की कोई फिल्म 30 साल बाद पहुंची है।सवाल है कि इतना लम्बा समय क्यों लगा? ग्लोबल सिनेमा में बॉलीवुड की पहुंच है और वह भारत की साफ्ट पॉवर भी है। पिछले कुछ वर्षों में भारत के क्षेत्रीय सिनेमा को भी विश्व में स्थान मिला, विशेषकर स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स की वजह से। फलस्वरूप ग्लोबल सहयोग भी बढ़ा है। पायल की फिल्म की सफलता भारत में सिनेमा प्रतिभा की गहराई को भी व्यक्त करता है। - इ.रि.सें.