विद्वत्ता का सम्मान
छत्रपति शिवाजी के महाप्रयाण के बाद उनके राजकवि भूषण गहरी निराशा में डूब गये। उन्हें चिंता थी कि महाराजा शिवाजी के बाद राजाश्रय देने वाला शायद ही कोई राजा मिल सकेगा। वे सोचते थे कि क्या कोई ऐसा निर्भीक राजा धरा पर होगा जो अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने की क्षमता रखता हो? उन्हें कालांतर ज्ञात हुआ कि अल्मोड़ा के चंद राजवंश के राजा निर्भीक व मानवीय मूल्यों के सरोकारों को लेकर प्रतिबद्ध हैं। महाकवि भूषण ने चंद राजा के पास उनके राज्य में अपने आने का संदेश दिया। यह समाचार सुनकर चंद राजा प्रसन्न हुए कि छत्रपति शिवाजी के राजकवि अल्मोड़ा पधार रहे हैं। राजा ने राज्य की सीमा में प्रवेश करने पर महाकवि के लिये हीरे-जवाहरात से जड़ित पालकी भिजवाई ताकि उन्हें ससम्मान महल लाया जा सके। बताते हैं जैसे ही पालकी महल के पास पहुंची चंद राजा ने कहार को हटाकर पालकी पर कंधा लगा दिया। यह देखकर उनके दरबारी हैरत में पड़ गए। तब राजा चंद ने कहा कि महाराजा छत्रपति शिवाजी जैसे महान व्यक्तित्व के राजकवि का हमारे राज्य में आगमन सौभाग्य की बात है। ऐसे सरस्वती पुत्र की पालकी को कंधा देना सौभाग्य है। प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा