अन्न का आदर
छात्रावास में छात्रों को भोजन परोसा गया तो कई छात्रों ने प्लेट में रखी सब्जी को देखकर नाक-भौं सिकोड़ ली। उस दिन बैंगन का भुर्ता बना था। छात्र शोर मचाकर विरोध प्रकट करने लगे। कुछ छात्रों ने जली हुई रोटी के किनारे तोड़े और प्लेट में पानी डालकर प्लेट दूर खिसका दी। तभी बाहर एक व्यक्ति भोजन करने आए छात्रों के जूतों को उठाकर करीने से रख रहा था। शोर बढ़ने पर वह अंदर आया। वह कभी-कभी लड़कों के साथ खाना खाता था। आज उसने लड़कों द्वारा सरकाकर रखी गई जली रोटी के टुकड़े, पानी तथा भुर्ते वाली प्लेट उठाई और उसमें जैसा भी कुछ मिला, उसे मजे से खाने लगा। अब लड़कों से रहा नहीं गया। उन्होंने दूसरी प्लेट सजाने के लिए कहा तो व्यक्ति के हाथ रुक गए और वह बोला, ‘तुम लोगों को मालूम नहीं कि तुम्हारे आसपास की बस्तियों में ऐसे लोग भी रहते हैं जिन्हें यह भी खाने को मिल जाए, जो तुमने फेंका है तो वे भूखे नहीं सोएंगे, किंतु तुम लोगों ने इस खाने को इस लायक भी नहीं छोड़ा कि किसी को दिया जा सके। इसीलिए मैंने सोचा कि यदि मैं ही इसे खा लूं तो कम से कम मेरा खाना तो किसी भूखे को दिया ही जा सकता है।’ अन्न के आदर का संदेश देने वाला यह सामान्य व्यक्ति आगे चलकर भारत का राष्ट्रपति बना, उनका नाम था- डॉ. जाकिर हुसैन।
प्रस्तुति : अंजु अग्निहोत्री