For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

उसूलों पर चलने वाले खांटी जननायक का सम्मान

06:33 AM Jan 25, 2024 IST
उसूलों पर चलने वाले खांटी जननायक का सम्मान
Advertisement
वेद विलास उनियाल

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को उनकी सौवीं जयंती से पहले भारत रत्न का ऐलान करके एक सच्चे जननायक का सम्मान किया गया है। भारतीय राजनीति में कर्पूरी ठाकुर का नाम ऐसे राजनेताओं में शुमार रहा, जो उसूलों पर चलने वाले खांटी ईमानदार नेता थे। बिहार की सियासत में एक बार डिप्टी सीएम और दो बार सीएम रहने के बाद भी उन्होंने राजनीतिक जीवन के लिए कुछ मानक बनाए। कर्पूरी ठाकुर सामाजिक न्याय के पुरोधा थे। वंचित वर्ग के उत्थान के लिए उन्होंने कई कदम उठाए।
अपने गुरु डॉ. राम मनोहर लोहिया के आदर्शों पर चलकर उन्होंने पिछड़ों और कमजोर वर्ग को आगे लाने के लिए अथक प्रयास किए। मुख्यमंत्री रहते पिछड़ों और अति पिछड़ों को मुंगेरी लाल आयोग के तहत आरक्षण दिलाने का काम उनके हाथों ही हुआ। वास्तव में भारत रत्न के लिए उनके नाम का ऐलान भारतीय सियासत में नेताओं की उस परंपरा का सम्मान है जिन्होंने समाज के वंचित पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का अथक प्रयास किया। निश्चित तौर पर मधु लिमये, राम सेवक यादव जैसे नेताओं की श्रेणी में कर्पूरी ठाकुर का नाम भी पूरा सम्मान पाता है। एक तरफ जयप्रकाश नारायण, डाॅ. राम मनोहर लोहिया की विरासत को उन्होंने आगे बढ़ाया तो दूसरी ओर अपने दौर के नए युवा समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीज, नीतीश कुमार, लालू यादव, राम विलास पासवान का मार्गदर्शन भी किया। वर्ष 1973 में जेपी आंदोलन से जुड़े नेताओं के लिए वह अग्रज की भूमिका में भी रहे।
नि:संदेह, जन्मशती वर्ष में भारत रत्न दिए जाने के ऐलान के साथ ही उनके नाम-काम पर आज की युवा पीढ़ी का भी ध्यान जाएगा। उसे अहसास होगा कि वास्तव में यह खांटी नेता किन मूल्यों के साथ जिया। अपने विचारों की लड़ाई उन्होंने बिना किसी आडंबर के किस तरह लड़ी। कर्पूरी ठाकुर समस्तीपुर के रहने वाले थे। इनके पिता गोकुल ठाकुर पेशे से नाई थे और कृषि कार्य भी करते थे। उल्लेखनीय है कि 1952 में सोशलिस्ट पार्टी से विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद वह कभी भी चुनाव नहीं हारे। वर्ष 1977 में संसदीय क्षेत्र समस्तीपुर से चुनाव जीते थे। लोकदल नेता के बतौर 1980 में वह बिहार में नेता प्रतिपक्ष चुने गए थे।
आपातकाल के बाद बिहार में सतेंद्र नारायण सिन्हा को पीछे कर उन्होंने जब नेता पद हासिल किया तो उनका लक्ष्य राज्य में पिछड़ों और कमजोर वर्ग को ताकत देने का रहा। जब वह दूसरी बार सीएम बने तो उन्होंने राज्य में पिछड़ा वर्ग को नौकरी में 26 प्रतिशत आरक्षण दिलाया। इसी सरकार में महिलाओं और आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसी सरकार ने मुंगेरीलाल आयोग की सिफारिशों को लागू किया। कर्पूरी ठाकुर की इसी राह पर आगे वीपी सिंह सरकार ने केंद्रीय स्तर पर पिछड़ा आरक्षण लागू किया था।
राजनीति को उन्होंने जनसेवा के रूप में ही लिया। उनकी छवि बेहद ईमानदार नेता के तौर पर रही। वह प्रखर वक्ता थे और संयमित भाषा में अपने राजनीतिक विरोधियों पर बखूबी कटाक्ष करते थे। कर्पूरी ठाकुर की क्षमता को सब महसूस करते थे। डाॅ. लोहिया ने जब 1967 में गैर-कांग्रेसवाद का नारा दिया तो बिहार में भी सत्ता का परिवर्तन हुआ था। ऐसे में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व वाली सरकार में वह उपमुख्यमंत्री बने थे। उनकी जिंदगी का मूल मंत्र था कि जब तक राजनेता जमीनी स्तर पर लोगों से नहीं जुड़ा होगा वह अपने सोचे हुए लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकता। अपने इन्हीं गुणों के चलते वह जननायक वाली भूमिका में दिखे। भारतीय राजनेता के रूप में उन्होंने हिंदी को बढ़ावा देने की लिए भी प्रयास किए। साथ ही किसानों के हित में कदम उठाए।
केंद्र सरकार ने भारत रत्न का ऐलान एक ऐसे नेता के नाम पर किया जो जनसंघ या उससे बनी भाजपा की पृष्ठभूमि या उससे किसी तरह के जुड़ाव के लिए नहीं जाना गया। भारतीय सियासत में दो छोटी समयावधि ऐसी आई है जब समाजवादी धड़ा और दक्षिणपंथी साथ-साथ रहे। इसके अलावा कर्पूरी ठाकुर की सियासत ठेठ समाजवादी आग्रहों के साथ कांग्रेस के विरोध में खड़ी रही। कर्पूरी ठाकुर ने अपने राजनीतिक जीवन में सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रांति दल, जनता पार्टी, लोकदल जैसे कई राजनीतिक दलों में रहते हुए अपनी अलग पहचान बनाई।
दरअसल, भाजपा सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर संदेश देने का प्रयास किया कि पार्टी समाजवादी आग्रहों के साथ वंचितों और पिछड़ों की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं की कद्र करती है।
कर्पूरी ठाकुर जैसे नेता की सौंवी जयंती को इससे बेहतर और किस ढंग से मनाया जा सकता है। एक ऐसे जननायक का सम्मान जिसने दशकों तक राजनीति के शीर्ष में रहकर ईमानदारी और शुचिता को सबसे ज्यादा महत्व दिया।

Advertisement

Advertisement
Advertisement