आस्था संग पर्यावरण धर्म निभाने का संकल्प
सुरेश एस डुग्गर
कोरोना की दो साल की पाबंदियों और धारा 370 हटाने की कवायद के बीच वर्ष 2019 में जिस अमरनाथ यात्रा को आधे में ही समाप्त कर दिया गया था वह इस बार अनूठी दिख रही है। यात्रा में शिकरत करने वाले श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन के पहले एक संकल्प ले रहे हैं। ‘जय शिव ओंकारा, मिटायेंगे कचरा सारा, हम लेते हैं संकल्प, नहीं करेंगे गन्दा बाबा का घर’। श्रद्धालुओं को प्रेरित किया जा रहा है कि आप ये संकल्प लीजिये और आपको आने वाली पीढ़ियों की खुशहाल जिंदगी का वरदान मिलेगा। यात्रा के पहले चरण से ही इसका असर दिखाई देने लगा है।
यह सिर्फ एक संकल्प नहीं एक सोच है, पर्यावरण के प्रति अपना धर्म निभाने की। दरअसल प्रतिवर्ष अमरनाथ यात्रा में 500 टन कचरा निकलता है। ये कचरा यात्रा मार्ग के पूरे पहाड़ी इलाकों में फैलकर जमीन में दब जाता है। इसके असर से पर्यावरण दूषित हो रहा है। डर यह है कि भविष्य में जल निकासी की समस्या का कारण भी यह लापरवाही बन जायेगी। प्लास्टिक और पाॅलीथिन पहाड़ों और नदियों को गन्दा कर रहे हैं । इस वर्ष करीब आठ लाख यात्रियों के अमरनाथ आने की सम्भावना है। ऐसे में कचरा मुक्त यात्रा एक बेहतर प्रयास है। पूरे कचरे को एकत्रित कर रिसाइकल किया जाएगा।
इस बार की अमरनाथ यात्रा कई मायनों में पूरी तरह से अलग है। हर वर्ष की भांति यात्रा पर आतंकी खतरा तो है ही, हवा के रास्ते ड्रोन भी आसमान पर छाने को तैयार हैं। स्टिकी बमों के खतरे के बीच इस बार चार गुणा अधिक सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई है। उम्मीद तो यह है कि इस बार शिरकत करने वाले श्रद्धालु 8 लाख से अधिक हो सकते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश की जनता को इस बार अमरनाथ यात्रा में शामिल होने को प्रेरित कर रहे हैं जिससे 3 हजार करोड़ की आय अर्जित करने की उम्मीद रखी गई है।
वैसे यात्रा को लेकर जो मुद्दे कई सालों से, खासकर 1995 की त्रासदी के बाद से उत्पन्न हुए हैं वे आज भी जिन्दा हैं। अगर अमरनाथ यात्रा को लेकर जो प्रचारित किया जा रहा है उसे गौर से देखें और पढ़ें-सुनें तो 8 लाख से अधिक लोगों को इस यात्रा में शामिल होने की खातिर न्योता दिया गया है। आस भी है प्रशासन को कि इतने लोग अवश्य शामिल होंगे और उनमें से आधों को पर्यटक बना उनके बीच वह कश्मीर की खूबसूरती को भुना पायेगा। इसके लिए अमरनाथ यात्रा पैकेजों को भी बेचने का कार्य जारी है। यह बात अलग है कि सरकार के इन प्रयासों से कई पक्ष नाराज भी हैं।
सच्चाई यही है कि वर्ष 1995 की अमरनाथ त्रासदी से कोई सबक नहीं सीखा गया। तब प्राकृतिक आपदा से 300 अमरनाथ यात्री मौत का ग्रास बन गए थे। उसके बाद भी अक्सर प्राकृतिक आपदा कहर ढहाती रही। आतंकियों का कहर जो बरपता रहा सो अलग। अमरनाथ त्रासदी के उपरांत डा़ नीतिन सेन गुप्ता जांच आयोग की रपट को लागू कर दिया गया। यात्रा में हिस्सा लेने वालों की संख्या 75000 तक निर्धारित करने के साथ-साथ शामिल होने वालों की आयु सीमा भी तय कर दी गई। चिकित्सा प्रमाणपत्र के साथ ही पंजीकरण अनिवार्य कर दिया। मगर यह सब ढकोसले ही साबित हुए।
दरअसल, पर्यावरणीय चिंताओं के बीच इस बार अमरनाथ यात्रा को कचरा मुक्त बनाने की सोच की बुनियाद भी रखी गई है। इसे जम्मू कश्मीर के डिपार्टमेंट आफ रूरल डेवलपमेंट ने रखा है जो इस बार यात्रा को कचरा मुक्त बनाने में जुटा है। इस अभियान का जिम्मा आईएएस अधिकारी और सेक्रेटरी रूरल डेवलपमेंट जम्मू कश्मीर मनदीप कौर ने लिया है। सुश्री कौर के अनुसार इस वर्ष सरकार के मार्गदर्शन में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ और यूएनईपी की ‘ओनली वन अर्थ’ को गाइड लाइंस मानते हुए यह तय किया गया कि बाबा अमरनाथ के निवास और पवित्र गुफा दर्शन के इस आयोजन को पूर्णतः सस्टेनेबल और कचरा मुक्त रखा जाए।
इस अभियान की जिम्मेदारी ‘स्वाहा’ को दी गई है। ‘स्वाहा आईआईटी इंदौर में इन्क्युबेट हुआ है। स्वाहा देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से शुरू हुआ देश का सबसे प्रतिष्ठित साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट स्टार्ट अप है, ये देश के लगभग नौ शहरों में कार्यरत है। युवा आईआईटी के आंत्रप्रेन्योर रोहित अग्रवाल, ज्वलंत शाह और स्टार्ट-अप मैन समीर शर्मा के साथ मिलकर इसे आगे बढ़ा रहे हैं। इन्हें बेस्ट स्टार्टअप स्मार्ट सिटी 2020 अवार्ड और इंटरनेशल सस्टेनेबिलिटी अवार्ड दिया जा चुका है।
स्वाहा अपने सस्टेनेबल सोल्यूशन के तहत अमरनाथ यात्रा मार्ग में पैराबोलिक सोलर कांसेंट्रेटर्स लगाने जा रही है। रूरल डेवेलपमेंट डिपार्टमेंट द्वारा इस अनोखे प्रयोग से आगे आने वाली यात्राओं को पूर्णत: सोलर, सस्टेनेबल और प्रदूषण मुक्त किये जाने की कोशिश है। यह सोलर कांसेंट्रेटर्स पानी उबालने, खाना पकाने, दाल, चावल, आलू, मैगी, चाय , दूध आदि को उबालने और पकाने में सक्षम है। इस बार इनके दो माॅडल्स कम्युनिटी कुकिंग और डोमेस्टिक माॅडल प्रयोग रूप में बेस कैम्पस में इंस्टाल किये गये हैं।
श्रद्धालु काफी खुश हैं। वे कहते थे कि सभी सुरक्षा व्यवस्थाएं बेहतर हैं। हर साल सुरक्षा व्यवस्था में सुधार किया जाता है। दिल्ली की रूपा शर्मा ने कहा कि मैं पहली बार इस तीर्थयात्रा पर जा रही हूं। मैं बहुत रोमांचित हूं। हमने सुना है कि गुफा और गुफा मार्ग अभी भी बर्फ से ढके हैं। यह बहुत ही रोचक होगा। श्रद्धा और कश्मीर घाटी में शांति के कारण प्रत्येक वर्ष तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है। तीर्थयात्रा 11 अगस्त तक जारी रहेगी। समुद्र के सतह से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा के लिए दो मार्ग हैं। एक मार्ग श्रीनगर से लगभग 100 किलोमीटर दूर पहलगाम से है, और दूसरा श्रीनगर से 110 किलोमीटर दूर बालटाल से है। पहलगाम से गुफा का मार्ग पारम्परिक है और यह 45 किलोमीटर लम्बा है, लेकिन इन दिनों तीर्थयात्री बालटाल से जाने वाले मार्ग को वरीयता देते हैं, क्योंकि यह काफी छोटा है। अमरनाथ गुफा में पवित्र बर्फ का शिवलिंग मौजूद होता है, जो स्वाभाविक रूप से निर्मित होता है। तीर्थयात्रियों के लिए यह मुख्य आकर्षण होता है।
बालटाल मार्ग में ठंडी हवाओं के मधुर गीत
कानाें में सीटी की आवाज घोलने वाली ठंडी हवा सफेद ग्लेशियर को काट कर रख देती है तो इंसानी चेहरे की क्या हालत होगी। लेकिन इन सबके बावजूद ठंडी हवा के मधुर गीत जब कानों में तरंग छेड़ते हैं तो यूं लगता है किसी फिल्म का दृश्य आंखों के समक्ष हो। और 15 किमी लम्बा मार्ग 210 मिनटों के भीतर हवाओं के गुनगुनाते गीत व संगीत में ऐसे गुजर जाता है जैसे किसी को कोई खबर न होती हो। इस मार्ग को कश्मीर में आतंकवाद फैलने के 7 साल के बाद अमरनाथ की पवित्र गुफा तक जाने के लिए खोला गया था। हालांकि इस दौरान भी यह मार्ग खुला तो रहा था परंतु नागरिकों को इसके प्रयोग की अनुमति सुरक्षा कारणों से नहीं दी जाती रही थी जो गुफा तक पहुंचने का एकमात्र सबसे छोटा मार्ग माना जाता है। और अब इसके खोलने के बाद यात्रा पर आने वाले इसी मार्ग से गुफा तक जाने और आने को प्राथमिकता देते रहे हैं। आसानी यह है कि वे एक ही दिन में गुफा तक जाकर वापस श्रीनगर लौट सकते हैं। श्रीनगर से बालटाल करीब 100 किमी की दूरी पर है जो एक आकर्षक पर्यटन स्थल भी है।
राष्ट्रीय एकता और अखंडता की प्रतीक यात्रा
‘हर हर महादेव’ और ‘जयकारा वीर बजरंगी’ के नारों के साथ ‘हिन्दुस्तान जिन्दाबाद’, ‘भारत माता की जय’, ‘जिस कश्मीर को खून से सींचा वह कश्मीर हमारा है’ और ‘पाकिस्तान हाय-हाय’ के नारों की गूंज सुनाई दे तो आदमी को चौकन्ना होना ही पड़ता है कि वह किसी धार्मिक यात्रा में भाग ले रहा है या फिर राष्ट्रीय एकता और अखंडता की यात्रा में। पिछले कई वर्षों की ही तरह इस बार भी अमरनाथ यात्रा में भाग लेने वाले इसे धार्मिक दृष्टिकोण से कम और राष्ट्रीय एकता और अखंडता की यात्रा के रूप में ज्यादा ले रहे हैं। दरअसल जब से कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद ने अपने पांव फैलाए हैं तभी से वार्षिक अमरनाथ यात्रा का स्वरूप बदलता गया। यह धार्मिक यात्रा के साथ ही राष्ट्रीय एकता व अखंडता की यात्रा बन गई है जिसमें देश के विभिन्न भागों से भाग लेने वालों के दिलों में देश प्रेम की भावना होती है। उनके मन मस्तिष्क पर छाया रहता है कि वे इस यात्रा को ‘कश्मीर हमारा है’ के मकसद से कर रहे हैं।
प्रकृति के कहर से नाता : अगर यह कहा जाए कि अमरनाथ यात्रा और प्रकृति के कहर का साथ जन्म-जन्म का है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर साल औसतन 100 के करीब श्रद्धालु प्राकृतिक हादसों में जानें कई सालों से गंवा रहे हैं। अमरनाथ यात्रा के अभी तक के ज्ञात इतिहास में दो बड़े हादसों में 400 श्रद्धालु प्रकृति के कोप का शिकार हो चुके हैं। यह बात अलग है कि अब प्रकृति का एक रूप ग्लोबल वार्मिंग के रूप में भी सामने आया था जिसका शिकार पिछले कई सालों से हिमलिंग भी हो रहा है। अमरनाथ यात्रा कब आरंभ हुई थी कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। पर हादसों ने इसे कब से अपने चपेट में लिया है इसको लेकर वर्ष 1969 में बादल फटने के कारण 100 के करीब श्रद्धालुओं की मौत की जानकारी जरूर दस्तावेजों में दर्ज है। यह शायद पहला बड़ा प्राकृतिक हादसा था इसमें शामिल होने वालों के साथ।