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संयम साधना से संकल्प

07:08 AM Jan 30, 2024 IST

एक बार महाराष्ट्र के संत एकनाथजी ने भक्तों के साथ तीर्थ यात्रा पर जाने की योजना बनाई। गांव के ही एक चोर ने भी संत एकनाथ जी के साथ तीर्थयात्रा पर जाने की इच्छा जताई। संत ने उससे रास्ते में चोरी न करने की प्रतिज्ञा कराकर भक्त मंडली के साथ चलने की इजाज़त दे दी। पहली रात को ही यात्रा मंडली को परेशानी का सामना करना पड़ा। सुबह यात्रियों का सामान उलट-पुलट था। हालांकि कोई चोरी नहीं हुई थी। अगली रात को भी यही पुनरावृत्ति हुई। तीसरी रात को कुछ यात्रियों ने दोषी को रंगे हाथ पकड़ लिया। यह वही चोर था, जिसने चोरी न करने की प्रतिज्ञा की थी। चोर को संत जी के सामने पेश किया गया। चोर ने कहा, ‘महाराज, मेरी चोरी की आदत पक गई है। आपको दिये वचन की वजह से मुझे चोरी न करने की अपनी कसम निभानी जरूर पड़ रही है, लेकिन यात्रा मंडली का सामान उलट-पुलट करके मेरा मन बहल जाता है।’ संत एकनाथ ने पल भर के लिए अपनी आंखें बंद की, फिर मंडली भक्तों की ओर मुखातिब होकर कहा, ‘मन को बाहरी दबाव से सीमित मात्रा में ही नियंत्रित किया जा सकता है। पूर्ण सुधार के लिए मन पर नियंत्रण से ही हृदय परिवर्तन सम्भव है। और इसके लिए स्वयं ही ‘संयम साधना’ करनी होती है।’ प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा

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