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सरकार से दरकार

07:33 AM Jun 12, 2024 IST
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गठबंधन धर्म की जरूरतों के मुताबिक, नरेंद्र मोदी सरकार की तीसरी पारी का जंबो मंत्रिमंडल अपरिहार्य था। जाहिरा तौर पर मंत्रिमंडल के गठन में अनुभव,युवा, जातीय समीकरण, गठबंधन के दायित्व और आगामी विधानसभा चुनाव की प्राथमिकताएं स्पष्ट नजर आती हैं। जिसके चलते तीस कैबिनेट मंत्रियों को ताजपोशी हुई है। बहत्तर सदस्यीय मंत्रिमंडल में तीस कैबिनेट मंत्रियों में बिहार को तरजीह देना स्वाभाविक ही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू गठबंधन में एक बड़ा सहयोगी घटक है। वहीं मंत्रिमंडल में बड़े घटक टीडीपी व जद (सेक्यूलर) की भी उपस्थिति है। उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण गड़बड़ाने के बाद चालीस से अधिक ओबीसी, एससी व अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधियों को मंत्रिमंडल में जगह मिली है। मध्यप्रदेश, हरियाणा व कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री भी मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं। दरअसल, महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखंड के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भी इन राज्यों के ज्यादा मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। वहीं दूसरी ओर पंजाब में तेरह सीटों में एक भी प्रत्याशी के सफल न होने के बावजूद 2027 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर नया युवा नेतृत्व तैयार करने की कवायद शुरू की गई है। पूर्व कांग्रेसी सांसद रवनीत सिंह बिट्टू को मंत्रिमंडल में शामिल करना इसी रणनीति का हिस्सा है। कह सकते हैं कि मंत्रिमंडल के गठन में संवेदनशील ढंग से रणनीति को अंजाम दिया गया। विश्वास किया जाना चाहिए कि लंबे चले चुनाव प्रचार अभियान में जो राजनीतिक व सामाजिक तौर पर कथित बांटने की कवायद वोटों के लिए की गई, उस पर अब विराम लगना ही चाहिए। आशा करें कि नई सरकार कार्यभार संभालने के बाद विकास को अपनी प्राथमिकता बनाएगी। जब हम भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की बात करते हैं तो पहली शर्त यही होगी कि कथित तौर पर विभाजनकारी राजनीति से परहेज करके सिर्फ और सिर्फ विकास के मुद्दे पर सरकार अपना ध्यान केंद्रित करे। आरोप-प्रत्यारोपों की राजनीति पर विराम लगाकर मिलजुलकर देश को नई दिशा देने का प्रयास होना चाहिए।
बहरहाल, अब कहा जा रहा है कि आजादी के बाद यह दूसरा अवसर है जब पं. नेहरू की तरह लगातार तीसरी बार भाजपा नीत सरकार बनी है। ऐसे कहने का अर्थ है कि सरकार की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। तब तुलना यह भी की जाएगी कि किस सरकार के कार्यकाल में हकीकत के धरातल पर ज्यादा विकास हुआ। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल पर देश-दुनिया की निगाहें लगी हैं। गठबंधन सरकार को पिछली सरकारों से बेहतर प्रदर्शन करके भी दिखाना होगा। राजग सरकार को स्वीकारना होगा कि यह एक गठबंधन सरकार है। यूं तो पिछली सरकार में भी राजग गठबंधन अस्तित्व में था, लेकिन इस बार पूर्ण बहुमत न मिलने के कारण भाजपा की सहयोगी दलों पर निर्भरता बढ़ गई है। जिसके चलते मोदी सरकार के लिये पिछले कार्यकाल की तरह पार्टी के एजेंडे को लागू करने में खुला हाथ न मिलेगा। जाहिर है कि भाजपा को कई महत्वाकांक्षी मुद्दों मसलन ‘एक देश, एक चुनाव’ व यूनिफॉर्म सिविल कोड आदि के क्रियान्वयन को ठंडे बस्ते में डालना पड़ सकता है। गठबंधन की मजबूरी के साथ ही सरकार को अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत विपक्ष से सामना करना पड़ेगा। निस्संदेह, शासन-प्रशासन का नरेंद्र मोदी के पास लंबा अनुभव है, लेकिन इस बार लचीलेपन का भी सहारा लेना पड़ेगा। हालांकि, राजग में नेतृत्व तय करने व मंत्रिमंडल गठन में सहयोगी दलों का बड़ा दबाव नजर नहीं आया, लेकिन भविष्य की चुनौतियों से इनकार नहीं किया जा सकता। बहरहाल, विकास कार्यों को गति देने में सरकार को दिक्कत नहीं आनी चाहिए। वैसे भी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू विकास के लिये प्रतिबद्ध मुख्यमंत्रियों के रूप में याद किये जाते हैं। कोशिश हो कि राजनीतिक विरोधियों को भी साथ लेकर चला जाए ताकि संसद के पिछले कार्यकाल में पैदा हुआ गतिरोध फिर से न दोहराया जाए। बहरहाल, अब चाहे देश को विकसित राष्ट्र बनाने की बात हो या फिर तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की बात, यह काम गठबंधन के सहयोगी दलों व व विपक्ष के साथ बेहतर सामंजस्य के साथ ही संभव हो सकता है। विकास के बड़े लक्ष्यों को हासिल करने से पहले देश में बेरोजगारी कम करने व समतामूलक विकास की स्थापना मोदी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।

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