सड़क हादसे में घायल मजदूरों को उपचार देने में आनाकानी !
जींद, 8 जनवरी (हप्र)
अगर आप किसी घायल को सड़क से उठाकर उपचार के लिए जींद के सिविल अस्पताल ला रहे हैं, तो उपचार के लिए आपको विधानसभा उपाध्यक्ष या सिविल सर्जन की सिफारिश चाहिए। यह जींद के सिविल अस्पताल का सिस्टम बन गया है। इस सिस्टम के खिलाफ बुधवार को ‘टीम जींद सुधार’ ने आवाज उठाते हुए विधानसभा उपाध्यक्ष, डीसी और स्वास्थ्य मंत्री से सिविल अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड के इस सिस्टम को सुधारने का अनुरोध किया है।
‘टीम जींद सुधार’ के प्रधान प्रवीण सैनी और प्रमुख सदस्य सुनील वशिष्ठ ने बुधवार को बुलाए पत्रकार सम्मेलन में जींद के सिविल अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड में तैनात मेडिकल अफसर की संवेदनहीनता और ड्यूटी के प्रति लापरवाही को उजागर किया। उन्होंने बताया कि मंगलवार रात वह गोहाना से जींद की तरफ नए बने जींद-सोनीपत ग्रीनफील्ड नेशनल हाईवे से आ रहे थे। इस हाईवे के चाबरी गांव के पास बने टोल प्लाजा के पास गलत दिशा से आ रहे वाहन ने एक मारुति ईको को टक्कर मार दी। मारुति ईको में सवार मजदूर जींद जिले के उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र के कहसून गांव के थे। कहसून गांव से भाजपा विधायक देवेंद्र अत्री भी हैं। मारुति ईको को इतनी कड़ी टक्कर मारी गई थी कि उसमें सवार मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गए। घायल मजदूरों में रोहताश, सुशील, सोनू, राजेश और अनिल शामिल हैं। घायलों को सुनील वशिष्ठ ने मारुति ईको को लोहे की रोड से तोड़कर गाड़ी से बाहर निकाला। जब वह जींद के सिविल अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड में घायलों को लेकर पहुंचे तो ड्यूटी पर तैनात मेडिकल ऑफिसर ने घायलों को बिना प्राथमिक चिकित्सा दिए कथित तौर पर सीधे बोल दिया कि घायलों को रोहतक रेफर करना पड़ेगा, जींद के सिविल अस्पताल की एक्स-रे मशीन खराब है, इसलिए यहां उनका उपचार नहीं हो सकता। इन घायलों में दो मजदूरों की टांग पूरी तरह से टूटी हुई थी।
सुनील वशिष्ठ और प्रवीण सैनी ने बताया कि उन्होंने मामला विधानसभा उपाध्यक्ष डॉ. कृष्ण मिड्ढा के नोटिस में लाया। विधानसभा उपाध्यक्ष ने डिप्टी सिविल सर्जन डॉ. पालेराम कटारिया को कॉल की। उसके बाद डॉ. पालेराम कटारिया ने मेडिकल ऑफिसर को कॉल कर घायलों के उपचार के लिए कहा, तब जाकर घायलों का उपचार शुरू हो पाया। सुनील वशिष्ठ ने कहा कि गंभीर घायल दो मजदूरों को मेट्रो अस्पताल में दाखिल करवाया गया है। इनमें एक मजदूर की टूटी टांग से तो इतना खून बह चुका था कि उसे रात में 2 यूनिट ब्लड चढ़ाना पड़ा। अगर एमरजेंसी वार्ड में तैनात मेडिकल अफसर के कहने पर घायलों को रोहतक ले जाया जाता, तो इस मजदूर की रास्ते में मौत हो सकती थी। पूरे मामले में विधानसभा उपाध्यक्ष, डीसी और स्वास्थ्य मंत्री को नोटिस लेते हुए संबंधित मेडिकल अफसर के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, और जींद के सिविल अस्पताल के इस खराब सिस्टम को सुधारना चाहिए।
डिप्टी सिविल सर्जन बोले...
इस मामले में डिप्टी सिविल सर्जन डॉ. पालेराम कटारिया ने कहा कि रात घायलों के उपचार बारे उन्होंने एमओ को निर्देश दे दिए थे कि रेफर करने से पहले घायलों को स्टेबल किया जाए।