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प्रेम, शांति और सद् भाव का धार्मिक अनुष्ठान

07:56 AM Aug 26, 2024 IST
प्रेम  शांति और सद् भाव का धार्मिक अनुष्ठान

राजेंद्र कुमार शर्मा
जन्माष्टमी, कृष्ण जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाने वाला यह पर्व हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है और इसका महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यधिक है।

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श्रीकृष्ण जन्म के निहितार्थ

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में मथुरा के कारागार में माता देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में हुआ था। कंस, मथुरा का अत्याचारी राजा, ने अपने जीवन के भय से बहन देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद कर रखा था। कंस को आकाशवाणी के माध्यम से भविष्यवाणी मिली थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसका संहारक बनेगा। यही कारण था कि उसने देवकी के सात संतानों का वध कर दिया था। लेकिन आठवें पुत्र, श्रीकृष्ण, के जन्म के समय अद्भुत घटनाएं घटीं, जिससे वासुदेव उन्हें यमुना नदी पार कर गोकुल में नंदबाबा और यशोदा के यहां सुरक्षित छोड़ आए। यहीं से श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का आरंभ हुआ, जो भारतीय पौराणिक कथाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा बनीं।

धार्मिक अनुष्ठान

जन्माष्टमी केवल भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा पर्व है जो भगवान की अद्भुत लीलाओं, उनके जीवन के संदेशों और उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म, सत्य, और न्याय की स्थापना का प्रतीक है। श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में जो शिक्षाएं दीं, वे केवल धर्म और अध्यात्म की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला के रूप में भी महत्वपूर्ण हैं। गीता में दिया गया उनका ‘कर्मयोग’ का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है और हमें यह सिखाता है कि कर्म करते हुए फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

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जन्माष्टमी का आयोजन और अनुष्ठान

जन्माष्टमी के दिन व्रत, पूजा, कीर्तन, और विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय, यानी मध्यरात्रि को विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भक्तजन इस दिन उपवास रखते हैं और भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद ही प्रसाद के साथ अपने उपवास को खोलते हैं। विभिन्न मंदिरों में श्रीकृष्ण की प्रतिमा को नए वस्त्र, आभूषणों, और फूलों से सजाया जाता है। माखन-मिश्री से उनका भोग लगाया जाता है, जो उनके बाल्यकाल की लीलाओं का प्रतीक है।

इस बार अद‍्भुत योग

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि को हुआ था। हिंदू पंचांग और ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार, इस बार यह सभी शुभ योग 26 अगस्त को बन रहे हैं। इस प्रकार, कलियुग में द्वापर युग की वही शुभ रात्रि पुनः दोहराई जाने का अवसर भक्तों को मिल रहा है।

वृंदावन और द्वारका में धूम

मथुरा और वृंदावन: उत्तर प्रदेश के ये स्थल भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थली और उनकी बाल लीलाओं के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। द्वारका (गुजरात) उनकी कर्मभूमि रही, जहां से उन्होंने अपना राजकाज चलाया और द्वारका के नजदीक ही बेट द्वारका टापू को अपना निवास स्थान बनाया। दोनों ही जगहों पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी की धूमधाम देखते ही बनती है।

सामाजिक एकता का संदेश

जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक सद्भाव का संदेश भी है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में जाति, वर्ग, और धर्म से ऊपर उठकर समाज के सभी वर्गों को एक समान आदर और प्रेम देने का संदेश दिया। उनकी मित्रता सुदामा जैसे निर्धन ब्राह्मण के साथ, सामाजिक सद्भाव का जीवंत उदाहरण है।

आधुनिक संदर्भ में जन्माष्टमी

वर्तमान समय में, जब समाज विभिन्न समस्याओं और संघर्षों से जूझ रहा है, खासकर युवाओं के लिए, श्रीकृष्ण का जीवन एक आदर्श है। उनका ‘कर्मयोग’ का सिद्धांत, ‘संकल्प और समर्पण’ की भावना और ‘जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण’ आज के तनावपूर्ण और चुनौतीपूर्ण जीवन में एक नई दिशा दिखा सकता है। इसके अलावा, गोवर्धन पूजा के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया और द्रौपदी के मान की रक्षा कर, महिलाओं के प्रति सम्मान का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया गया।
जन्माष्टमी का पर्व न केवल भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का स्मरण है, बल्कि उनके जीवन की शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प भी है। श्रीकृष्ण का जीवन हमें प्रेरित करता है कि हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए समाज में प्रेम, शांति, और सद्भाव का संचार करें। जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में सद्गुणों की स्थापना का एक पवित्र अनुष्ठान है।

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