धार्मिक फिल्म जिसने बनाये कामयाबी के रिकॉर्ड
पंजाबी सिनेमा में धार्मिक फिल्म के निर्माण की पहल साल 1969 में अमृतसर के माहेश्वरी बंधुओं ने की- ‘नानक नाम जहाज है’ से। इसकी पारिवारिक कहानी के ताने-बाने में गुरुओं का अलौकिक संदेश पिरोया गया था। इस फिल्म को दर्शकों का इतना प्रतिसाद मिला कि कामयाबी के रिकॉर्ड आज भी कायम हैं।
भीम राज गर्ग
भारत में सिनेमा का पदार्पण 7 जुलाई, 1896 को हुआ था। दादा साहब फाल्के ने ‘द क्राइस्ट’ फिल्म से प्रेरित होकर वर्ष 1913 में प्रथम भारतीय फीचर फिल्म ‘राजा हरीश चंद्र’ बनाई थी। इसके पश्चात कालिया मर्दन, मोहिनी भस्मासुर, लंका दहन, श्री कृष्ण जन्म, सत्यवान सावित्री जैसी कई पौराणिक मूक फिल्मों का निर्माण किया। टॉकी युग के आगमन के बाद भी धार्मिक व पौराणिक फिल्में बनाने का ट्रेंड जारी रहा। परन्तु पंजाबी फिल्म निर्माताओं ने इस चलन से हटकर वर्ष 1935 में पंजाबी भाषा की प्रथम टॉकी ‘इश्क-ए-पंजाब’ उर्फ मिर्जा साहिबां पंजाब की एक प्रसिद्ध लोक-गाथा ‘मिर्ज़ा साहिबां’ पर आधारित बनाई थी। पंजाबी सिनेमा के प्रारंभिक दौर में केवल तीन धार्मिक पंजाबी फिल्मों ‘पूर्ण भगत’, ‘मतवाली मीरा’ और ‘भगत सूरदास’ का निर्माण कोलकाता में हुआ था, जबकि पंजाब में केवल लोक-गाथाओं और कॉमेडी का बोलबाला रहा।
माहेश्वरी बंधुओं की प्रेरक पहल
पंजाबी सिनेमा में धार्मिक फिल्मों के स्वर्णयुग की शुरुआत अमृतसर के कपड़ा व्यापारी माहेश्वरी बंधुओं ने की थी। वर्ष 1969 में, श्री गुरु नानक देव जी के 500वें प्रकाशोत्सव के अवसर पर राम माहेश्वरी ने गुरु जी के अलौकिक-प्रेरक संदेश ‘लव फॉर ह्यूमेनिटी’ पर आधारित ‘नानक नाम जहाज है’ फिल्म का निर्माण किया। बेकल अमृतसरी द्वारा रचित कहानी श्री दरबार साहिब अमृतसर की पवित्र चार दीवारी में घटित विस्मयजनक घटनाओं पर आधारित थी।
पारिवारिक कथ्य और प्रभावशाली अभिनेता
फिल्म की कहानी दो पग्ग-वट्ट भाइयों गुरमुख सिंह (पृथ्वी राज कपूर) और प्रेम सिंह (सुरेश) के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। गुरुमुख सिंह के घर परिवार में खुशियों का बसेरा था। जैसे ही प्रेम सिंह का विवाह हुआ, दोनों दोस्तों में अविश्वास का अंधेरा छाने लगा। अंत में जब अकाल पुरख की कृपा ने अपना चमत्कार दिखाया तो दोनों परिवार फिर से घी-शक्कर हो गये। फिल्म की प्रभावशाली स्टारकास्ट में पृथ्वीराज कपूर, सोम दत्त, विमी, निशी, सुरेश, डेविड और आईएस जोहर आदि शामिल थे।
रिकॉर्ड कामयाबी और पुरस्कार
राम महेश्वरी ने नैतिकता से परिपूर्ण इस चलचित्र में प्रसिद्ध गुरुद्वारों के भव्य दर्शन करवाए थे। दर्शक टिकट के लिए घंटों प्रतीक्षा करते थे। वे सम्मान स्वरूप सिनेमाहाल में प्रवेश से पूर्व जूते बाहर उतार देते थे। स्क्रीन पर जब भी गुरुद्वारा-दृश्य दिखाई देता, तो श्रद्धालु सिक्के चढ़ाते। ऐसा विस्मयपूर्ण दृश्य पहले कभी देखने को नहीं मिला था। फिल्म ने पंजाब के छह बड़े शहरों में स्वर्ण जयंती मनाई थी, जो कि पंजाबी सिनेमा में आज तक का रिकॉर्ड है। फिल्म को सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय फीचर फिल्म घोषित किया गया और एस. मोहिंदर को सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
धार्मिक फिल्मों का सिलसिला
फिल्म ‘नानक नाम जहाज है’ ने पंजाबी सिनेमा के इतिहास में धार्मिक फिल्मों का एक नया अध्याय लिख डाला। सिख धर्म की परम्पराओं के गौरवशाली पन्नों को फिल्म-रूपांतरण करने की होड़ सी लग गई थी। फिर 1970 के दशक में कई पंजाबी धार्मिक फिल्मों जैसे नानक दुखिया सब संसार, दुख भंजन तेरा नाम, मन जीते जग जीते आदि का निर्माण किया गया। परन्तु ये फिल्में ‘नानक नाम जहाज है’ जैसी सफलता को दोहरा नही पाईं।