For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

शीघ्र निदान से ही मिलेगी रोग से राहत

09:53 AM Feb 21, 2024 IST
शीघ्र निदान से ही मिलेगी रोग से राहत
Advertisement

रजनी अरोड़ा

Advertisement

बॉलीवुड एक्टर आमिर खान की ब्लॉक बस्टर फिल्म दंगल में बबीता फोगाट का किरदार निभाने वाली चाइल्ड एक्ट्रेस सुहानी भटनागर की मौत ने सबको चौंका दिया है। सुहानी केवल 19 वर्ष की थीं। रिपोर्टों के अनुसार, सुहानी डर्माटोमायोसिटिस से पीड़ित थी।
डर्माटोमायोसिटिस एक दुर्लभ सूजन वाली बीमारी है। यह बीमारी आमतौर पर बहुत कम लोगों को होती है यानी 10 लाख में से 3-4 लोगों को होती है। दुनिया भर में केवल पांच से छह लोग ही ऐसे हैं जिनमें इस बीमारी का निदान किया गया है। आमतौर पर डर्माटोमायोसाइटिस बीमारी 40 साल के बाद होती है। लेकिन सुहानी भटनागर को कम उम्र में हुई। संभव है उसकी बीमारी का पता बहुत देर से चला और सुहानी के शरीर को काफी नुकसान हो चुका था। डर्माटोमायोसिटिस का कोई इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों में सुधार की संभावना बनी रहती है। इसलिए लक्षण दिखते ही तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

आटोइम्यून रोग है डर्माटोमायोसाइटिस

जैसा कि इसके नाम से विदित होता है- डर्मा यानी स्किन, मायो यानी मसल्स और साइटिस यानी इन्फेक्शन। डर्माटोमायोसाइटिस बीमारी में स्किन और मसल्स को इन्फेक्शन से नुकसान होता है। इसमें मसल्स और स्किन के साथ दूसरे अंग भी प्रभावित हो सकते हैं। यह आटोइम्यून बीमारी है। इम्यूनिटी खराब हो जाए, तब इन्फेक्शन की चपेट में जल्दी आ सकते हैं। यह आनुवंशिक बीमारी है। यानी यह बीमारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक भी पहुंच सकती है। इसके जीन्स होते हैं, जेनेटिक म्यूटेशन से हो सकती है। त्वचा में ग्रेट कोलेजन डिजीज की कैटेगरी में आती है जिसमें इससे मिलती-जुलती 6 बीमारियां होती हैं जिसमें रुमेटायड, महिलाओं में होने वाली एसएलई बीमारी शामिल हैं।

Advertisement

ये हैं लक्षण

डर्माटोमायोसाइटिस की पहचान मांसपेशियों में कमजोरी और त्वचा पर अलग तरह के दाने से की जा सकती है। शुरू में स्किन रैशेज होते हैं। ये रैश खास तरह के स्किन से उठे हुए रैशेज होते है जिसे वॉयलेट रैश कहा जाता है। कई बार इसे पहचानना भी मुश्किल होता है क्योंकि स्किन पर होने वाले आम रैश दवाई लेने पर ठीक भी हो जाते हैं। डर्माटोमायोसाइटिस बीमारी में स्किन रैश अलग तरह के होते हैं। उंगलियों के जोड़ों, कुहनियों पर होते हैं। इन्हें हेलियोट्रॉप रैश कहा जाता है। गॉटरोम रैश भी होते हैं जिनमें छोटे-छोटे वॉयलेट रंग के दाने निकलते हैं। इसके साथ मसल्स में कमजोरी आ सकती है, मसल्स में क्रैम्प्स आ सकते हैं, निगलने में परेशानी हो सकती है या सांस लेने में परेशानी होती है। मरीज को बहुत थकान रहती है।

किस तरह से होता है असर

डर्माटोमायोसिटिस की वजह से फेफड़े प्रभावित होते हैं। फेफड़ों को कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलाने में सहायक डायफ्राम, पसलियों के आसपास की इंटरकोस्टल मसल्स प्रभावित होती है। इंटरस्टिशियल लंग्स की स्थिति बन सकती है। इसमें लंग्स कठोर लोचदार हो जाते हैं। इससे मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है। ऐसा होने पर शरीर को पूरा वेंटिलेशन नहीं मिल पाता। हाइपोवेंटिलेटिड फेफड़ों में गतिरोध आ सकता है। फेफड़े अपना काम ठीक तरह नहीं कर पाते जिससे उनमें इन्फेक्शन हो जाता है। मरीज को निमोनिया भी हो सकता है, उसे शॉक लगते हैं जिससे मरीज वेंटिलेटर पर चला जाता है। ह़दय की मांसपेशी में सूजन आ सकती है। ठंडे पानी के संपर्क में आने पर पैर की उंगलियां, गाल, नाक और कान पीले पड़ सकते हैं।

इलाज के लिए स्टेरॉयड

ऑटो इम्यून रोग डर्माटोमायोसिटिस का उपचार थोड़ा मुश्किल होता है। जो केवल स्टेरॉयड से किया जा सकता है। स्टेरॉयड, इम्यूनोग्लोबुलिन ई (आईजीई), तेजाथायोपीन जैसी इम्यूनो-सेप्रेसेंट दवाइयां दी जाती हैं। स्टेरॉयड मरीज की स्थिति के हिसाब से काफी कम मात्रा में दिए जाते हैं। कुछ मामलों में स्टेरॉयड से इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है जिस वजह से संक्रमण फैलने की आशंका रहती है। संक्रमण और अतिरिक्त तरल पदार्थ जमा होने के कारण लंग्स डैमेज हो सकते हैं। इलाज के दौरान डॉक्टरों को भी समझदारी से मरीज की हिस्ट्री लेनी चाहिए। स्किन में किसी तरह के असामान्य बदलाव हों, तो उस पर ध्यान दें। यदि दूसरी समस्याएं हों, उन पर भी ध्यान दें। मसल्स के टेस्ट करके मरीज की स्थिति का पता लगाएं।

-दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल के सीनियर फिजीशियन डॉ. मोहसिन वली से बातचीत पर आधारित

Advertisement
Advertisement