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मस्तिष्क आघात में शीघ्र उपचार से ही राहत

09:59 AM Oct 25, 2023 IST
मस्तिष्क आघात में शीघ्र उपचार से ही राहत
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आज के बदलते परिवेश में गतिहीन लाइफ स्टाइल, खान-पान की गलत आदतों के चलते अनेक तरह की बीमारियां बढ़ रही हैं जिनमें से एक है-मस्तिष्क आघात या ब्रेन स्ट्रोक। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत में मस्तिष्क आघात महामारी की तरह सिर उठा रहा है। पहले जहां बुजुर्ग आघात का सामना करते थे, आज के दौर में युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। इसकी बड़ी वजह आघात के प्रति जागरूकता की कमी और तुरंत उपचार न मिलना भी है। एम्स की रिसर्च में भारत में गंभीर बीमारियों से होने वाली मौतों में मस्तिष्क आघात एक बड़ी वजह की पुष्टि हुई है। हर साल इसके करीब 1.85 लाख मामले सामने आते हैं।
दरअसल मस्तिष्क हमारे शरीर को नियंत्रित करने वाला महत्वपूर्ण अंग है। मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को सुचारू रूप से चलाने का काम रक्त धमनियां करती हैं। जिनके माध्यम से ऑक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह हृदय से मस्तिष्क तक और फिर शरीर दूसरे अंगों तक होता रहता है। लेकिन कई बार मस्तिष्क के किसी हिस्से की रक्त धमनियां अवरुद्ध हो जाती हैं या फट जाती हैं। जिसकी वजह से मस्तिष्क में रक्त संचार बाधित हो जाता है और मस्तिष्क आघात हो जाता है। ऑक्सीजन की कमी होने पर मस्तिष्क कोशिकाएं या न्यूरॉन्स धीरे-धीरे नष्ट होने लगते हैं। यथाशीघ्र समुचित उपचार न हो पाने पर शारीरिक-मानसिक समस्याएं होने लगती हैं। व्यक्ति अपाहिज हो सकता है या उसकी जान भी जा सकती है। ऐसे लोगों को स्ट्रोक का खतरा ज्यादा है जिनकी आर्टेरियो-स्क्लेरोसिस यानी बढ़ती उम्र में रक्त संचार करने वाली रक्त वाहनियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। वहीं आरामपरस्त जीवन, पौष्टिक आहार के बजाय फास्ट फूड हाई ब्लड प्रेशर और अल्कोहल का अधिक सेवन भी जोखिम बढ़ाता है।

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ज्यादातर मामले इस्कीमिक आघात के मस्तिष्क आघात मौटे तौर पर दो प्रकार का होता है-पहला इस्कीमिक और दूसरा हैमरेजिक। लगभग 85 प्रतिशत मामले इस्कीमिक और 15 प्रतिशत ब्रेन हेमरेज के होते हैं।
इस्कीमिक आघात : इस्कीमिक आघात का मतलब है मस्तिष्क की रक्त धमनियों का संकरी या अवरुद्ध होना। यह भी तीन तरह का होता है-पहला थ्रॉम्बोटिक यानी रक्त धमनी में वसा के जमाव या प्लाक जमने से ब्लड क्लॉट बनने पर ब्लड सप्लाई में बाधा आती है। दूसरा एम्बोलिक जिसमें ब्लड क्लॉट हृदय की आर्टरीज में बनते हैं और रक्त प्रवाह के साथ मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को ब्लॉक कर देते हैं। तीसरा, ट्रान्जिएंट इस्कीमिक या मिनी स्ट्रोक यानी मस्तिष्क के किसी हिस्से में कुछ सेकंड या मिनट के लिए रक्त संचार न होना जिससे मस्तिष्क ठीक तरह काम नहीं कर पाता है।
हैमरेजिक आघात : मस्तिष्क के अंदर रक्त धमनियों के कमजोर होने या फट जाने पर उनमें से रक्त का रिसाव होने लगता है। निकला हुआ रक्त मस्तिष्क की कोशिकाओं या दूसरी रक्त धमनियों के आसपास जमने लगता है जिससे मस्तिष्क में रक्त संचार अवरुद्ध होने पर मस्तिष्क आघात हो जाता है।

ये है उपचार

मस्तिष्क आघात होने के साढ़े चार घंटे के भीतर यदि मरीज को समुचित उपचार मिलना शुरू हो जाए तो मस्तिष्क की क्षति और संभावित जटिलताओं को कम किया जा सकता है। रिकवरी जल्दी हो सकती है। सबसे पहले सिटी स्कैन, एमआरआई, अल्ट्रा साउंड किया जाता है। रक्त संचार को सुचारू करने की कोशिश की जाती है। ब्रेन स्ट्रोक के उपचार के लिए दो तरीके अपनाए जाते हैं- ओपन और इंडोवैस्कुलर तकनीक या कॉयलिंग। इस्किीमिक स्ट्रोक में बने क्लॉट को हटाने के लिए रक्त वाहिकाओं में क्लॉट बस्टिंग इंजेक्शन दिए जाते हैं। खून पतला करने के लिए टीपीए मेडिसिन दी जाती है। इसके अलावा एंजियोप्लास्टी, कैरोटिड एंडारटेरेक्टॉमी सर्जरी और आल्टर्ड ब्लड फ्लो सर्जरी की जाती है। वहीं हैमरेजिक स्ट्रोक में अमूमन क्लॉट रिमूवल क्रेनियोटोमी सर्जरी की जाती है।
रिहेबलिटेशन थेरेपी - मस्तिष्क आघात झेल चुके मरीज को चलने-फिरने के लिए फिजियोथेरेपिस्ट विभिन्न एक्सरसाइज कराते हैं। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट व स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट भी चलने व बोलने में मदद करते हैं।

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कैसे करें बचाव

संयमित जीवनशैली यानी सोने-जागने, खाने-पीने व व्यायाम आदि का समय नियत करें। डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां हों, तो रेगुलर चेकअप और दवाइयों का सेवन कर कंट्रोल में रखें। रोजाना कम से कम 30 मिनट या सप्ताह में 150 मिनट मॉडरेट इंटेंसिटी में एक्सरसाइज करें। इसमें आप ब्रिस्क वॉक, कार्डियो एक्सरसाइज, ऐरोबिक्स, डांस, स्वीमिंग, साइकलिंग आदि में से कोई एक या ज्यादा चुन सकते हैं। वहीं जरूरी है कि रात को 7-8 घंटे की साउंड स्लीप लें।

लगाएं अंदाजा FAST लक्षणों से

मरीज में यदि ये लक्षण दिखें, तो परिवार या आस-पास के लोगों को उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए-
F – फेस यानी एक तरफ का चेहरा लटक रहा हो या झुका हुआ हो। एक या दोनों आंखों से देखने में दिक्कत होना, धुंधला या काला दिखना
A – आर्म यानी मरीज अपना एक हाथ या दोनों हाथ ऊपर न उठा पा रहा हो। हाथ-पैर में विशेष रूप से शरीर के एक भाग में कमजोरी आ जाना या सुन्न हो जाना, टेढ़ापन आना, चलते समय बैलेंस न बना पाना, लड़खड़ाना।
S – स्पीच यानी बोलने में दिक्कत हो रही हो, या वह अजीब तरीके से बोल रहा हो। बात समझ न आ पा रही हो।
T – टाइम यानी अगर रोगी में इनमें से कोई लक्षण दिखें, तो तुरंत ऐसे अस्पताल में संपर्क करें जहां न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरो सर्जन हों।

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