राहत का मुआवजा
भारतीय रेलवे की गिनती दुनिया के चौथे बड़े रेल नेटवर्क के रूप में होती है। लेकिन विडंबना यह है कि बुनियादी सुविधाओं व सुरक्षा की आधुनिक तकनीक के अभाव की वजह से छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाओं का सिलसिला लगातार बना रहता है। निस्संदेह आज भी रेल सेवा अन्य परिवहन सुविधाओं के मुकाबले खासी किफायती है। सस्ती सेवा होने के कारण इसे भारत की जीवनवाहिनी कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार करीब सवा करोड़ लोग रोजाना भारतीय रेल सेवा का उपयोग करते हैं। लेकिन दुखद पहलू यह है कि विभिन्न कारणों से करीब तीन सौ छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाएं हर साल होती हैं। जिसमें आधे से अधिक दुर्घटनाएं ट्रेनों के पटरी से उतरने से होती हैं। जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे जाते व घायल होते रहे हैं। इसी साल दो जून को ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे में तीन सौ के करीब लोगों की मौत हुई थी तथा ग्यारह सौ लोग घायल हो गये थे। बहरहाल, देर से ही सही, रेलवे ने रेल दुर्घटनाओं के प्रति संवेदनशील रवैया अख्तियार करते हुए मुआवजे में आशातीत वृद्धि की है। रेलवे के अनुसार यह वृद्धि दस गुना है। पहले जहां रेल हादसे में जान जाने पर पचास हजार की मुआवजा राशि मिलती थी, उसे बढ़ाकर अब पांच लाख रुपये कर दिया गया है। वहीं गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को पच्चीस हजार रुपये की जगह ढाई लाख रुपये दिये जाएंगे। मामूली चोट लगने पर यह राशि पचास हजार होगी। रेलवे का कहना है कि यदि किसी ट्रेन पर आतंकी हमला होता है या ट्रेन में डकैती पड़ती है तो उस सूरत में भी पीड़ितों को मुआवजा दिया जाएगा। रेलवे ने इस बाबत 18 सितंबर को एक सर्कुलर जारी किया था, जिसे इसी दिन से लागू भी कर दिया गया है। बता दें कि इस राशि में एक दशक पहले संशोधन किया गया था।
उल्लेखनीय है कि रेलवे ने अस्पतालों में भर्ती होने वाले यात्रियों को भी राहत देने की घोषणा की है। रेलवे का कहना है कि यदि कोई घायल तीस दिन से अधिक अस्पताल में भर्ती रहता है तो सरकार उसका बिल भरेगी। मरीज की चोट की गंभीरता के हिसाब से उसे खर्च मिलेगा। उसके लिये अलग-अलग राशि निर्धारित की गई है। वहीं डकैती या किसी तरह की हिंसा में घायल व्यक्ति के उपचार के लिये कुछ राशि भी निर्धारित की गई है। दूसरी ओर यदि दुर्घटना रेलवे की गलती से होती है तो भी सहायता राशि दी जाएगी। मसलन यदि रेलवे कर्मचारियों की लापरवाही या अन्य वजह से रेलवे गेट पर एक्सीडेंट होता है तो पीड़ित मुआवजे के हकदार होंगे। वहीं स्पष्ट किया है कि रेलवे स्टेशन पर करंट लगने से मौत होने पर सहायता राशि नहीं मिलेगी। निस्संदेह, यह रेलवे की संवेदनशील व सार्थक पहल है। लेकिन उन कारणों को भी संबोधित करने की जरूरत है जिनकी वजह से अकसर रेल दुर्घटनाएं होती हैं। निस्संदेह, जिस परिवार का व्यक्ति दुर्घटना में मारा जाता है या जीवन भर के लिये अपंग हो जाता है, मुआवजा एक राहतकारी कदम तो हो सकता है, लेकिन क्षति का विकल्प नहीं हो सकता। इस दिशा में गंभीरता से विचार होना चाहिए कि बार-बार रेल दुर्घटनाएं क्यों होती हैं। क्यों बार-बार ट्रेन पटरी से उतरती है। सोचें कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश में भारतीय रेल तंत्र क्या बढ़ती आबादी का बोझ उठाने में सक्षम है। वहीं रेलवे कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और जवाबदेह बनाने की भी जरूरत है। बालासोर समेत बड़ी रेल दुर्घटनाओं में अधिकांशत: मानवीय गलतियां सामने आई हैं। सुरक्षा नियमों का पालन हर हाल में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। कोशिश होनी चाहिए कि रेल यातायात को हादसों से मुक्त बनाया जाये। हादसों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति के साथ उन उन्नत तकनीकों का प्रयोग भी जरूरी है जो हादसों को टाल सकती हैं। रेल मंत्रालय ने मार्च 2022 में जिस सुरक्षा तंत्र ‘कवच’ को स्थापित करने का प्रयास किया था, उसके दायरे में सारे देश के रेल-परिचालन को लाया जाना चाहिए। जिससे कम से कम किसी कारणवश एक ट्रैक पर आमने-सामने आने वाली ट्रेनों की दुर्घटनाओं को टाला जा सके।