मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

आधुनिक संदर्भों में भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता

07:45 AM Mar 31, 2024 IST
पुस्तक ः भिखारी ठाकुर अनगढ़ हीरा लेखक : तैयब हुसैन प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 199.
Advertisement

राजकिशन नैन

ह‌मारे यहां पहले से ही सामाजिक भेद‌भाव की तरह कला को भी लोक (हेय) और शिष्ट (अभिजात्य) दृष्टि से देखने की रीत रही है। भिखारी ठाकुर जैसे लोक कलाकार को ‘नचनियां-बजनिया’ कहना, शास्त्रीय गीत गाने को ‘गायन’ और नृत्य के कलाकार को ‘नाचने वाला’ कहकर समादृत करना इसी भावना का परिचायक है।
भिखारी ठाकुर इस बात को जानते थे। इसलिए उन्होंने नाच के स्वरूप को बदलकर नचनियों को कलाकार बनाया। इस युक्ति से उनकी ख्याति बढ़ी। भिखारी ठाकुर दुराग्रही लोगों से ताउम्र ‘ठीक बरताव’ की अपेक्षा करते रहे- ‘कहत भिखारी’ हाथ जोरि के ठीक चाहीं बरताव।’ सामंती समाज से तिरस्कृत होने पर कई दफा उन्हें लगता था कि वे नाहक इस पेशे में चले आए- ‘कहे ‘भिखारी’ मन फंसि गइल नाहक नाच का खेला में।’ पर सामंतशाही के तमाम विरोधों को झेलते हुए उन्होंने लोक हेतु नृत्य व गायन कला प्रदर्शन का जो कार्य किया वह वाकई बहुत बड़ा और क़ाबिलियत पूर्ण प्रयास था।
अनपढ़ और असाक्षिक होते हुए भी वे कवि, नाटककार, नाट्‌य निर्देशक, अभिनेता और चिंतक सभी थे। प्रयोगशील रंगकर्मी के नाते उन्होंने लोक नाटकों की अनेक शैलियों का उपयोग अपने अनुसार किया। नृत्य, गीत व अभिनय में अंग संचालन, हाव-भाव, मुख-मुद्रा, लय-ताल और गति आदि का उन्होंने बखूबी निर्वाह किया। इसके लिए उन्होंने प्रसंगानुकूल लोकधुनें भी बरतीं। नाटकों में उन्होंने बिरहा और बारह‌मासा का अद्‌भुत प्रयोग किया। यही नहीं, उन्होंने नौटंकी के मशहूर छंद ‘चौबोला’ को भी बिना दोहा के अपने हिसाब से बरता। कम से कम साधनों में नाटक का मंचन कर देना भिखारी की खास खूबी थी। जन्म से ज़बर न होने पर भी भिखारी ने अपने कर्म, विचारधारा, मेहनत और उच्च दृ‌ष्टिकोण के जरिये खुद को कलावान के तौर पर स्थापित किया।
भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर सन‍् ‌1920 से 1960 तक भोजपुरी लोकमंच के प्रतीक बने रहे। भिखारी ने 29 पुस्तकों की रचना की। इनमें 10 नाटक और बाकी की कृतियां भजन-कीर्तन व गीत-कविता से संबंधित हैं। ‘बिरहा बहार’ (बिदेसिया) भिखारी का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है।
राहुल सांकृत्यायन ने यों ही नहीं कहा था कि ‘क्यों दस-दस, पन्द्रह-पन्द्रह हजार की भीड़ एकत्र होती है भिखारी के नाटकों में दर्शकों की। लगता है इसी में आमजन को रस मिलता है।’ तैयब हुसैन ने ‘भिखारी ठाकुर अनगढ़ हीरा’ नामक अपनी पुस्तक में भिखारी ठाकुर के जीवन और उनके सांस्कृतिक-साहित्यिक अवदान पर जो वैचारिक मंथन किया है, वह सटीक और प्रेरणीय है।

Advertisement

Advertisement
Advertisement