स्वास्थ्य सेवाओं का नियमन
हरियाणा सरकार के स्वास्थ्य विभाग की ओर से सरकारी अस्पतालों के कतिपय चिकित्सकों के व्यवहार के नियमन की पहल निस्संदेह रोगियों व उनके परिजनों के लिए राहतकारी साबित होगी। स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा के महानिदेशक की ओर से जारी लिखित हिदायतों में सरकारी अस्पतालों में कार्यरत सिविल सर्जनों को आगाह किया गया है कि वे मरीजों को निजी अस्पतालों में उपचार के लिये बाध्य करने की प्रवृत्ति से बचें। दरअसल, इस तरह के मामलों में साठ से अधिक शिकायतें आई थीं कि डॉक्टर निजी लाभ के लिये मरीजों को निजी अस्पतालों में उपचार करने को बाध्य कर रहे हैं। संस्तुति किये गए अस्पतालों में चिकित्सकों के निहित स्वार्थ भी शामिल हैं। आरोप लगाया गया है कि चिकित्सकों के परिजनों द्वारा निजी अस्पताल चलाए जा रहे हैं, जिनमें इलाज करवाने के लिये मरीजों को बाध्य किया जाता रहा है। विभाग ने राज्य के सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को ऐसे मामलों में जांच करने के निर्देश भी दिये हैं। साथ ही कहा गया कि उन चिकित्सकों की सूची तैयार की जाए जो मरीजों को निजी चिकित्सालयों में उपचार के लिये बाध्य करते हैं। दरअसल, स्वास्थ्य विभाग की आंतरिक जांच रिपोर्ट में भी इस बात का खुलासा हुआ है कि कई सरकारी चिकित्सा निजी प्रैक्टिस भी करते हैं। कतिपय चिकित्सकों पर मरीजों के साथ अनुचित व्यवहार करने के भी आरोप लगे हैं। निश्चिय ही यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग व आम लोग ही उपचार के लिये बड़ी उम्मीद से सरकारी अस्पतालों में जाते हैं। यदि उन्हें यहां भी उचित उपचार व सम्मानजनक व्यवहार न मिले तो फिर वे कहां जाएंगे। हालांकि, यह भी हकीकत है कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक भी भारी दबाव में काम करते हैं क्योंकि सरकारी अस्पतालों में मरीजों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। लेकिन उस अनुपात में चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों की उपलब्धता नहीं है। कमोबेश यही स्थिति अन्य चिकित्सा सुविधाओं की भी है।
लेकिन यहां यह महत्वपूर्ण है कि लोग बड़े विश्वास से सरकारी अस्पतालों में जाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग उनमें ज्यादा होते हैं। भारतीय समाज में डॉक्टरों को दूसरा भगवान कहा जाता है। मरीजों का उनमें गहरा विश्वास होता है। दरअसल, मरीज एक तो बीमारी की त्रासदी से जूझ रहा होता है, जिसमें अच्छे व्यवहार और उपचार की उम्मीद होती है। यदि ऐसे में उसे महसूस हो कि उसके साथ न्याय नहीं हो रहा है तो यह दुखद ही है। ऐसे में स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा के महानिदेशक के निर्देश सकारात्मक पहल ही है। जिससे चिकित्सकों की जवाबदेही तय की जा सकेगी। इतना ही नहीं सरकार की पहल से चिकित्सातंत्र पर मरीजों का भरोसा बढ़ेगा कि सरकार उनकी समस्याओं के प्रति गंभीर है। विश्वास किया जाना चाहिए कि चिकित्सकों द्वारा व्यवस्था में सुधार की दिशा में बेहतर सहयोग मिलेगा। वहीं स्वास्थ्य विभाग द्वारा भी उन कारणों की पड़ताल करनी चाहिए जिसमें कतिपय चिकित्सक अनुचित व्यवहार करते हैं। उनकी समस्याओं को भी सुना जाना चाहिए। साथ ही सरकारी चिकित्सालयों में तमाम चिकित्सा सेवाओं के आधुनिकीकरण, पर्याप्त चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे जहां मरीज व चिकित्सक अनुपात में सुधार हो सके। वहीं यदि अस्पताल में तमाम आधुनिक सुविधाएं व दवाइयां उपलब्ध होंगी, तो मरीजों को निजी चिकित्सालयों की शरण में जाने को मजबूर नहीं किया जा सकेगा। वहीं सरकार को इस पहलू पर विचार करना चाहिए कि भारी-भरकम खर्च करके डॉक्टरी की डिग्री हासिल करने वाले चिकित्सकों के आर्थिक हितों का भी ध्यान रखा जाए। व्यवस्था में उन्हें अतिरिक्त आर्थिक लाभ का विकल्प भी दिया जाना चाहिए, जिससे वे निजी प्रैक्टिस से परहेज करके सरकारी अस्पताल के मरीजों के बेहतर उपचार पर ही ध्यान केंद्रित करें। निस्संदेह, चिकित्सा का क्षेत्र एक बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। चिकित्सक यदि सहज स्थितियों में रहेंगे तो वे बेहतर उपचार में सहायक बन सकते हैं। मरीज के हितों व सम्मान की तो रक्षा होनी चाहिए, लेकिन चिकित्सकों की गरिमा भी प्रभावित नहीं होनी चाहिए।