आंखों की रोशनी बरकरार रहेगी नियमित जांच से
डॉ. माजिद अलीम
हमारे देश में अंधेपन की दूसरी सबसे बड़ी वजह ग्लूकोमा या मोतियाबिंद है। पूरी दुनिया में हर साल 45 लाख लोगों की आंखों की रोशनी इस बीमारी के कारण चली जाती है और जिनमें 20 लाख लोग हिंदुस्तानी होते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति कितने लापरवाह हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कम से कम 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा लोग ग्लूकोमा या मोतियाबिंद से पीड़ित हैं। सौ फीसदी ठीक हो जाने वाली यह बीमारी, 90 फीसदी लोगों में तब पता चलती है, जब वह खतरनाक स्टेज तक पहुंच चुकी होती है। मतलब यह कि हम अपने आप से भी इतने उदासीन रहते हैं कि अपनी कोई परवाह ही नहीं करते।
समय पर जांच तो इलाज संभव
अगर समय पर हम अपनी आंखों की जांच कराते रहें, तो ग्लूकोमा के आंखों में पड़ाव डालते ही हम इसे अच्छी तरह से जान-समझ सकते हैं। एक बार पता चल जाए कि हमारी आंखें मोतियाबिंद का शिकार हो रही हैं, तो आसानी से उनका इलाज कराया जा सकता है। ग्लूकोमा या मोतियाबिंद सौ फीसदी ठीक किया जा सकता है। दरअसल यह इंट्राओकुलर प्रेशर होता है, जो ब्लड प्रेशर जैसा ही होता है। यह प्रेशर वास्तव में आंखों पर पड़ने वाला फ्लूएड का दबाव है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह बहुत मामूली बीमारी है। यह खतरनाक बीमारी है अगर एक बार बिगड़ जाएं या इस पर हम ध्यान न दें तो हमारी आंखों की रोशनी हमेशा-हमेशा के लिए जा सकती है। क्योंकि ग्लूकोमा बीमारी आंखों में आये तो हमें दर्द से बेहाल कर देती है। शुरू-शुरू में इसके कोई लक्षण सामने नहीं आते, न ही किसी तरह का दर्द होता है। बस आंखों की बहुत धीरे-धीरे रोशनी कम होती जाती है और हम समझते हैं कि यह सब उम्र बढ़ने आदि के कारण हो रहा है।
रोग के कारण
कुछ लोग इस बीमारी को इतना हल्के से लेते हैं कि वे बीच में ही इसका इलाज छोड़ देते हैं। लेकिन ऐसा करने से यह बेहद खतरनाक हो जाती है और आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाती है। इसलिए ग्लूकोमा या मोतियाबिंद से कतई खिलवाड़ न करें। जानिये इसके लिए कौन सी वजहें सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं : पहली बात, निश्चित रूप से यह बढ़ती उम्र की समस्या है। दूसरे, यह रोग लंबे समय तक तेज धूप में रहने का नतीजा है। वहीं मधुमेह और धूम्रपान भी इसका सबसे बड़ा कारण है। यह भी कि अगर आपके खानपान में लगातार विटामिन,ए,सी और ई की कमी है तो भी मोतियाबिंद होने की आशंका बनी रहती है। ऐसे ही कुछ लोगों की आंखों में जब चोट लग जाती है या संक्रमण हो जाता है तो वे इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। ऐसी लापरवाही भी मोतियाबिंद का कारण बन जाती है।
भारत में प्रभावित लोग
कुछ लोगों के मुताबिक भारत में 90 लाख, तो कुछ लोगों के अनुसार 1 करोड़, 20 लाख लोग मोतियाबिंद से प्रभावित हैं। हर वर्ष 6 से 7 लाख नये मरीज सामने आते हैं और हर साल 20 लाख तक लोग इस मोतियाबिंद के कारण अंधेपन का शिकार हो जाते हैं। वास्तव में भारत में 66 फीसदी अंधत्व का जिम्मेदार मोतियाबिंद है।
बचाव के लिए उपाय
सनग्लास पहनें क्योंकि ये ग्लूकोमा से सुरक्षा प्रदान करते हैं, यूवी-ए और यूवी-बी विकिरण से बचाते हैं। लेकिन आपके सनग्लासेस अच्छी क्वालिटी के हों। वहीं तेज धूप में बाहर निकलने से बचें, जायें भी तो आंखों को धूप के चश्मे और तौलिए से ढककर रखें। साथ ही ऐसा आहार लें जिसमें विटामिन सी, विटामिन ई और विटामिन ए भरपूर हों। रूटीन खानपान में ढेर सारी हरी सब्जियां, गाजर, संतरा, बादाम और मछली भी शामिल करें। जरूरी है कि एंटीऑक्सीडेंट्स का भी सेवन बढ़ाएं।
जब हो डायबिटीज और ब्लडप्रेशर
डायबिटीज और ब्लडप्रेशर होने की स्थिति में भी मोतियाबिंद या ग्लूकोमा के बहुत चांस होते हैं। इसलिए अपने ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें। नियमित जांच कराते रहें। धूम्रपान और शराब का परहेज रखें। यह भी कि 40 की उम्र के बाद हर एक या डेढ़ साल में आंखों की जांच जरूर करवा लें। अगर धुंधलापन, दोहरी दृष्टि या रात में कम दिखने की समस्या है, तो इसकी वजह मोतियाबिंद हो सकता है, इसकी जांच कराएं। अगर आपके कामकाज के तहत जोखिमभरी गतिविधि है जैसे बेल्डिंग करना आदि तो हमेशा सुरक्षित चश्में पहनें।
किसी भी वजह से स्टेराइड जैसी दवाओं का लंबे समय इस्तेमाल न करें। मोतियाबिंद एक गंभीर लेकिन रोकथाम योग्य समस्या है। अगर समय पर और सावधानी बरतकर इसका इलाज करें तो आसानी से उपलब्ध है। ध्यान रखें कि मोतियाबिंद का एकमात्र इलाज सर्जरी है, जिससे धुंधले लैंस को हटाकर उसकी जगह कृत्रिम लैंस लगाया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद करीब 95 फीसदी मरीजों की पूरी दृष्टि वापस आ जाती है।
इ.रि.सें.