सुधारवादी मसूद की ईरान में ताजपोशी
अरुण नैथानी
पांच दशक से कट्टरपंथियों की गिरफ्त में रहने वाले ईरान के राष्ट्रपति चुनाव में सुधारवादी नेता मसूद पेजेशकियन की जीत ने नई इबारत लिखी है। पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका व इस्राइल के निशाने पर रहने वाला ईरान पहले ही कड़े प्रतिबंधों के चलते आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे में कट्टरपंथी सईद जलील को हराने वाले वाले मसूद पेजेशकियन को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या वे कट्टरपंथियों की खिलाफत करके पूर्व के बजाय पश्चिम से बेहतर रिश्ते बना पाएंगे? इस चुनाव में मसूद ने हिजाब कानून की सख्ती खत्म करने का वादा मतदाताओं से किया है, जिसके चलते बड़ी संख्या में युवाओं के वोट उन्हें मिले। उल्लेखनीय है कि हिजाब विरोधी महसा अमिनी की हिजाब का विरोध करने पर जेल में हुई संदिग्ध मौत के बाद देश में हिंसक प्रदर्शन हुए थे, जिसमें सैकड़ों लोगों के मरने की खबर थी।
बहरहाल, पेशे से सर्जन रहे पेजेशकियन वर्ष 1997 की उदारवादी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। वे राष्ट्रपति हसन रूहानी के समर्थक थे। वर्ष 2015 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिये पश्चिमी देशों से हुई परमाणु संधि के वे सूत्रधार भी रहे हैं। दरअसल, पेशे से चिकित्सक मसूद पेजेशकियन, वर्ष 1994 में एक सड़क दुर्घटना में पत्नी व बेटी की मौत के तीन साल बाद राजनीति में आए। उन्होंने पारिवारिक दबाव के बावजूद दूसरी शादी नहीं की और बच्चों की परवरिश को प्राथमिकता दी।
एक उदारवादी नेता के रूप में पहचान बनाने वाले नेता मसूद पेजेशकियन ने ईरान के लोगों से कहा कि ‘मैं आपको अकेला नहीं छोड़ूंगा, आप भी मुझे अकेला न छोड़ना।’ यही वजह है कि दूसरे चरण में उन्हें पर्याप्त मत मिले और ईरान के हर शहर में उनकी जीत का जश्न मनाया गया। उल्लेखनीय है कि 19 मई को पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में हुई मौत के बाद ईरान में नये सिरे से चुनाव हुए। बहरहाल, मसूद की जीत को ईरान में बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
बहरहाल, मसूद पेजेशकियन ऐसे समय में ईरान के राष्ट्रपति बने हैं जब इस्राइल व हमास के बीच जारी युद्ध के बीच पश्चिम एशिया में भारी तनाव है। ईरान के लिये यह इसलिए मुश्किल का समय है क्योंकि हमास के सिर पर ईरान का हाथ रहा है। वहीं लेबनान में हिजबुल्ला और वैश्विक समुद्री व्यापार के लिये खतरा बने यमन के हूती लड़ाकों को ईरानी समर्थन के आरोप पश्चिमी देश लगाते रहे हैं। वहीं पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते ईरान बड़ा आर्थिक संकट भी झेल रहा है। हालांकि मसूद पश्चिमी देशों से बेहतर संबंध बनाने के पक्षधर हैं और पूर्वी देशों रूस व चीन से सुरक्षित रिश्तों की वकालत करते हैं।
उल्लेखनीय है कि ईरान में वर्ष 1997 से लेकर 2005 तक सुधारवादियों की हुकूमत रही है। अब तक यह होता रहा है कि कोई सुधारवादी यदि राष्ट्रपति पद के चुनाव में नामांकन दर्ज कराता तो कट्टरपंथियों के वर्चस्व वाली हाई प्रोफाइल गार्डियन काउंसिल उसे खारिज कर देती। इससे सुधारवादी कट्टरपंथियों के उम्मीदवारों से मुकाबला नहीं कर पाते। दरअसल, ईरान में कट्टरपंथी सिद्धांतवादी उग्र इस्लामी विचारधारा का समर्थन करते हैं। इसमें ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली खामेनेई की निर्णायक भूमिका रहती है। बेहद ताकतवर इस्लामी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स उनके इशारों पर ही चलती है, जिसके चलते कट्टरपंथियों ने सुनियोजित तरीके से सुधारवादियों को सत्ता से बेदखल कर दिया था। सुधारवादी चुनाव में अनियमितताओं के आरोप लगाते रहे हैं। वर्ष 2009 के विरोधों का आईआरसीजी और इसकी मिलिशिया इकाई बासीज ने बेरहमी से दमन किया था। फिर ईरान में पश्चिम का विरोध, पूरबी देशों का समर्थन, स्वदेशी अर्थव्यवस्था और फिर महिलाओं पर प्रतिबंधों का दौर सामने आया। महसा अमिनी की संदिग्ध मौत के बाद यह उग्र विरोध पूरे ईरान में देखा गया। मानवाधिकार संगठन अनेक किशोरों समेत पांच सौ लोगों के इस दमन में मरने के आरोप लगाते रहे हैं। फिर इंटरनेट पर सेंसरशिप, सामूहिक गिरफ्तारी, मुकदमें व फांसी का दौर ईरान ने देखा, जिससे ईरान के युवाओं में आक्रोश की लहर देखी गई।
बहरहाल, देश में जारी घुटन के बीच सुधारवादी पूर्व राष्ट्रपति मो. खातमी ने चुनावों को लेकर रणनीति बदलने का निर्णय किया और सक्रिय होकर मसूद पेजेशकियन के समर्थन में प्रचार किया। हालांकि, पहले दौर में चुनाव बहिष्कार के चलते सिर्फ चालीस फीसदी मतदान में राष्टपति पद के किसी प्रत्याशी को बहुमत नहीं मिल पाया था। अंतत: दूसरे चरण में मसूद पेजेशकियन राष्ट्रपति चुन लिए गये। अब उन्होंने पश्चिम से बेहतर संबंध बनाकर ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को कम करने का विचार बनाया है। साथ ही सुधारवादी नेताओं का नेटवर्क बनाकर आगे की रणनीति बनानी शुरू की है। इसमें सुधारवादी नेता जवाद जरीफ भी शामिल हैं। जरीफ अकादमिक जगत में सक्रिय रहे हैं। मसूद पेजेश्ाकियन ने अपने घोषणापत्र में घोषणा की थी कि उनकी विदेशी नीति पश्चिम व पूरब से सामंजस्य बनाकर चलने वाली होगी, जिससे देश का आर्थिक संकट खत्म किया जा सके। मकसद यही है कि पश्चिमी देशों से परमाणु मुद्दे पर एक सकारात्मक समझौते तक पहुंचना ताकि आर्थिक प्रतिबंधों को कम किया जा सके। हालांकि, कुछ राजनीतिक पंडित कहते हैं कि ईरान के राजनीतिक तंत्र के पास वह ताकत नहीं कि विदेश नीति का स्वतंत्र संचालन किया जा सके, जिसमें ईरान के सर्वोच्च नेता की भूमिका होती है।