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कहानियों में सामाजिक बदलाव का अक्स

06:27 AM Jan 14, 2024 IST

कमलेश भारतीय

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जयप्रकाश पंडित का तीसरा कथा संग्रह ‘टिकुलिया गोरखपुर की’ की सभी चौदह कहानियां कथारस से सराबोर हैं जो बहुत सुकून देने वाली बात है। आज की बौद्धिक कहानियों जैसी नहीं हैं और न किसी विमर्श से प्रभावित, न किसी वाद से।
‘शीर्षक कथा टिकुलिया गोरखपुर की’ न केवल नाम से आकर्षित करती है बल्कि यह एक नयी तरह की प्रेम कथा है, जो दिल्ली के एक शो रूम में अचानक छूट गये बैग से शुरू होती है और सेल्जगर्ल अनेक तरह की चिट्ठियां लेखक की डायरी में लिखती जाती है। इसके बाद बैग लौटाती है और फिर दोनों आपस में बंध जाते हैं। बीच में रहस्य, रोमांच और नाटक है। ‘बादलों का सागर स्नान’ पति-पत्नी के बीच विश्वास की कथा कहती है तो ‘किरदार’ भी बहुत खूब कहानी है। ‘अंधेरे में गुम आंखें’ सबसे बढि़या प्रेम कहानी जो एक दृष्टिहीन की प्रेम कथा है और अंत में नायिका ठोकर खाकर उसी के साथ लौट आती है। ‘न्याय से आगे’ की नायिका और न्यायाधीश सोनाली और अपराधी अर्जुन वर्मा के बीच प्यार कैसे उमड़ता है, यह भी रोचक और रोमांचक कहानी है। ‘एक नौकर की नौकरी’ राजनीति में छोटे से व्यक्ति के शोषण की कथा है तो ‘होमगार्ड’ में पुलिस विभाग में छोटे कर्मचारी की व्यथा कथा।
‘द्विवीज पत्र’ यानी दो मां और एक बेटे की कथा। कैसे पहली पत्नी दूसरी को स्वीकार कर लेती है और वे खुशी-खुशी एकसाथ रहने लगते हैं। ‘कबाड़ी’ में सख्त नायक भी प्यार में पड़ जाता है। कबाड़ी भी किसी की जान बचाने आगे आता है। ‘फूंकनी’ एक मां है जो अपने बेटे कनबुच्चा के खो जाने से परेशान है और कैसे कनबुच्चा को गांव वाले बंधुआ मजदूरी से फैक्टरी वाले से छुड़ाकर लाते हैं, यह भी अच्छी यात्रा है। ‘प्रतिवाद’ एक मस्तमौला नायक को सामने लाती है जिसे पुलिस उसके विद्रोही विचारों के लिए जेल भेज देती है।
लेखक जय शंकर पंडित का मानना है कि कहानियां समाज में हो रहे बदलाव, मनुष्य के जीवन, उनके सामाजिक चरित्र, राष्ट्र चरित्र, भाषा संस्कृति और उसमें हो रहे बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों को विमर्श के केंद्र में लाती हैं।
पुस्तक : टिकुलिया गोरखपुर की लेखक : जय शंकर पंडित प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 160 मूल्य : रु. 300.

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