For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

जीवाश्म ईंधन खपत में कमी ही बढ़ते ताप का समाधान

06:18 AM Jun 20, 2024 IST
जीवाश्म ईंधन खपत में कमी ही बढ़ते ताप का समाधान
Advertisement

ज्ञानेन्द्र रावत

Advertisement

नौतपा को विदा हुए करीब 15 दिन बीत चुके हैं लेकिन देश के उत्तरी राज्य अभी भी भीषण गर्मी से तप रहे हैं। महीनेभर से भी ज्यादा समय से अधिकतम तापमान 40 डिग्री से ऊपर बना है। राजस्थान के जैसलमेर में इस दौरान पारा 55 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया जबकि दिल्ली में पिछले 80 साल का और पंजाब में 46 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुका है। इस बीच दिल्ली पारे की सीमा 52.9 तक पार कर चुकी है।
यही स्थिति कमोबेश देश के सभी उत्तरी राज्यों की है। गर्मी के चलते दिन में बाजारों में सन्नाटा पसरा रहता है। सड़कों पर रेहड़ी पटरी वाले ग्राहकों को तरस गये हैं। बाजार में भी ग्राहक कम हैं। गर्मी की मार से पहाड़ और मैदानी इलाके कोई भी अछूते नहीं। इस बार तो गर्मी ने पहाड़ों पर भी रिकार्ड तोड़ दिया है। दिन के साथ ही रातें भी गर्मी की मार से तप रही हैं। इतिहास में पहली बार हम वैश्विक गर्मी की यह भयावहता देख रहे हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार अगले पांच साल में पहली बार वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने के 66 फीसदी आसार हैं।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार वैश्विक तापमान की सीमा छूने का अर्थ है कि विश्व 19वीं शताब्दी के दूसरे हिस्से के मुकाबले अब 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है। दुनिया में तापमान में हो रही बेतहाशा बढ़ोतरी भयावह खतरे का संकेत है। जलवायु परिवर्तन और अलनीनो ने इसमें अहम भूमिका निभाई है। यह सब कोयला, तेल और गैस के जलाने की सभी सीमाएं पार करने का दुष्परिणाम है। फिर बीते सालों की रिकॉर्ड तोड़ प्राकृतिक घटनाओं को देखते हुए जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने में तत्परता से कारगर कदम उठाने में वैश्विक समुदाय उतना सजग नहीं दिखता जितना होना चाहिए।
अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि तेल और गैस का अत्यधिक मात्रा में उत्सर्जन वह अहम कारण है जिसके चलते उत्सर्जन स्तर यदि 2050 तक यही रहा तो 2100 तक गर्मी अपने घातक स्तर तक पहुंच जायेगी। दुनिया की करीब 81 फीसदी आबादी भीषण गर्मी झेलने को विवश है। अमेरिका में भी यही हाल है जिसने माना है कि गर्मी के भीषण हालात से मरने वाले बीते दशक में दोगुने से भी ज्यादा हो गये हैं। इंसान तो इंसान, पेड़-पौधे भी बढ़ते तापमान के बीच सांस नहीं ले पा रहे हैं।
बोस्टन, कोलंबिया व विश्व मौसम विज्ञान संगठन के वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इस गर्मी भुखमरी, सूखे और जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ेगा। धरती का बढ़ता तापमान और उसकी वजह से पैदा होने वाली हीटवेव हृदय के लिए खतरनाक साबित हो रही है। हर एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के साथ हृदय रोगियों की मौत का खतरा बढ़ता जा रहा है। वजह यह कि अत्यधिक गर्मी से शरीर की थर्मोरेगुलेटरी प्रणाली चरमरा सकती है।
दरअसल, लम्बे समय तक अधिक तापमान में रहने से शरीर का थर्मल सिस्टम फेल हो जाता है। शरीर का तापमान 44 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाये तो मैटाबोलिज्म पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उस स्थिति में ब्रेन डैमेज हो जाता है, मौत का खतरा बढ़ जाता है। ज्यादा पसीना बहने का असर स्किन, किडनी, हृदय और ब्रेन पर पड़ता है। बढ़ता तापमान माइग्रेन के रोगियों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। इससे उन्हें माइग्रेन अटैक का खतरा बढ़ जाता है। तापमान में बढ़ोतरी का असर समय पूर्व जन्म दर में बढ़ोतरी के रूप में होगा। यह खतरा 60 फीसदी तक बढ़ जायेगा। दरअसल, यह खतरा बच्चों में श्वसन संबंधी बीमारियोंं सहित कई हानिकारक स्वास्थ्य प्रभावों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार होगा। तेज गर्मी बच्चों के दिमाग को कमजोर कर रही है।
एक अध्ययन के अनुसार संकेत मिले हैं कि जब बच्चे गर्भावस्था या शुरुआती बचपन के दौरान गर्मी के संपर्क में आते हैं तो उनके दिमाग में माइलिनेशन यानी सफेद पदार्थ का स्तर कम होता है। इससे मस्तिष्क में न्यूरोलॉजिकल तंत्र पर प्रभाव पड़ता है। यानी गर्मी से शरीर का कोई अंग प्रभावित हुए नहीं रहा है। इसके साथ ही गर्मी के बढ़ते प्रभाव से खाद्यान्न आपूर्ति पर संकट बढ़ जायेगा। इससे फसलों की कटाई, फलों का उत्पादन और डेयरी उत्पादन सभी दबाव में हैं। बाढ़, सूखा और तूफान की बढ़ती प्रवृत्ति ने इसमें और इजाफा किया। वाशिंगटन में सेंटर फार स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के खाद्य विशेषज्ञ कैटलिन वैल्श की मानें तो इन मौसमी घटनाओं की वजह से उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के बड़े हिस्से के किसान मुश्किल में हैं। दक्षिणी यूरोप में गर्मी के कारण गायें दूध कम दे रही हैं। इटली में अंगूर, खरबूजा, सब्जियां और गेहूं उत्पादन तक प्रभावित हुआ है। वहीं मछलियों का आवास भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है। इससे उनकी संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। इससे बहुतेरी प्रजातियों के खत्म होने का खतरा बढ़ रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति के अनुसार यदि धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 43 फीसदी तक घटाना होगा। धरती के गर्म होने की रफ्तार अनुमान से कहीं ज्यादा है। आज धरती 1.7 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है। दरअसल, समस्या की असली जड़ जीवाश्म ईंधन है जिससे हमें दूर जाने की बेहद जरूरत है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement