वाकई सुनहरी जीत
अब चाहे कुदरत की विसंगति हो या विषम परिस्थितियों की मार, शरीर की कोई भी अपूर्णता व्यक्ति को लाचार बनाती है। हम तमाम आदर्शों की बात करें, लेकिन अपूर्णता से पैदा हुई दुश्वारियां जीवन असहाय बना देती हैं। यह कष्ट शारीरिक भी है और मानसिक भी। समाज का अप्रिय व्यवहार इसे और कष्टदायक बना देता है। जीवन की राह और जटिल हो जाती है जब किसी की आंखों में रोशनी न हो। लेकिन इन तमाम दुश्वारियों के बावजूद कोई ऐसी टीम देश के लिये स्वर्ण पदक ले आये तो उसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा करनी होगी। एक तो नेत्र-ज्योति के बिना दुष्कर दिनचर्या, फिर खेल की तैयारी करना। उसके बाद एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्णपदक ले आना, निस्संदेह प्रशंसनीय और प्रेरणादायक ही कहा जायेगा। ऐसा ही करिश्मा कर दिखाया है भारत की दृष्टिबाधित महिला क्रिकेट टीम ने, जिसने बीते शनिवार को इंटरनेशनल ब्लाइंड स्पोर्ट्स फेडरेशन यानी आईबीएसएफ के विश्व खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया। यह विडंबना ही है कि उनकी इस उपलब्धि की देश में चर्चा कम ही हुई। उन्हें खबरों में कम जगह मिली। हालांकि, राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री ने दृष्टिबाधित महिला क्रिकेट टीम को बधाई देकर प्रोत्साहित किया। टीम ने बारिश से प्रभावित मैच में आस्ट्रेलिया को हराया। निस्संदेह, आस्ट्रेलिया जैसी टीम को नौ विकेट से हराना बड़ी बात है। इंटरनेशनल ब्लाइंड स्पोर्ट्स फेडरेशन के पहले ब्लाइंड क्रिकेट चैंपियनशिप के पहले संस्करण में यह उपलब्धि ऐतिहासिक-प्रेरणादायक है।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले के मैचों में भारतीय महिला टीम का प्रदर्शन उत्साहजनक रहा और उसने इंग्लैंड समेत कई टीमों को हराया। इतना ही नहीं टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने फाइनल समेत आस्ट्रेलियाई टीम को तीन बार हराया। निस्संदेह, यह एक यादगार सफलता है, जिसके मूल में भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ियों की जीवटता और प्रतिभा निहित है। जिस पर प्रत्येक भारतीय गर्व करेगा। वाकई कल्पना करना कठिन है कि कैसे ये दृष्टिबाधित खिलाड़ी अपने खेल का अभ्यास करते होंगे और कैसे खेल को निखारते होंगे। वैसे इस खेल में आंखों की जगह कानों की बड़ी भूमिका होती है। दरअसल, ब्लाइंड क्रिकेट का प्रारूप कुछ इस तरह तैयार किया गया है, जो नेत्रहीन व आंशिक दृष्टिबाधित खिलाड़ियों के हिसाब से हो। खेल के इस प्रारूप में गेंद को मारने के लिये सामान्यत: स्वीप शॉट का इस्तेमाल किया जाता है। इस खेल को वर्ष 1996 से विश्व ब्लाइंड क्रिकेट परिषद द्वारा संचालित किया जाता है। अब तक पांच विश्व ब्लाइंड क्रिकेट विश्वकप आयोजित किये गए हैं। वर्ष 2014 में भारतीय टीम ने पाक को हरा कर चैंपियनशिप जीती थी। बहरहाल, इन खिलाड़ियों की स्वर्णिम उपलब्धि में हर भारतीय के लिये कई संदेश छिपे हैं। पहला संदेश अभिभावकों व समाज के लिये है कि यदि कुदरत किसी को शारीरिक अपूर्णता देती है तो उसमें कई विशिष्ट गुण भी भर देती है। आमतौर पर दृष्टिहीन बच्चों की एकाग्रता और याददाश्त गजब की पायी जाती है क्योंकि वे अपने जीवन लक्ष्य के प्रति एकाग्र रहते हैं। दूसरे, समाज के व्यवहार में दया नहीं, इनका उत्साह व आत्मसम्मान बढ़ाने का भाव होना चाहिए।