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लोकमंगलकारी शिव स्वरूप का साकार होना

07:06 AM Jul 10, 2023 IST

कुमार कृष्णन
प्रत्येक वर्ष श्रावण के पावन महीने में लगने वाले प्रसिद्ध श्रावणी मेला अवधि में सुलतानगंज की महिमामयी गंगा के तट पर स्थित अजगैबीनाथ धाम से लेकर देवघर के द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ धाम के करीब 110 किमी के विस्तार में मानो शिव का विराट लोक मंगलकारी स्वरूप साकार हो उठता है। समस्त वातावरण कांवड़धारी शिव-भक्तों के जयकारे से गंुजायमान रहता है।
भगवान शंकर, देवों के देव महादेव कहलाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि श्रावण मास में जब समस्त देवी-देवतागण विश्राम करते हैं, वहीं भगवान भूतनाथ गौरा पार्वती के साथ पृथ्वी-लोक पर विराजमान रहकर अपने भक्तों के कष्ट-कलेश हरते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
आस्था है कि श्रावण मास के दिनों में भगवान शंकर बैद्यनाथ धाम और अजगैबीनाथ धाम में साक्षात‌् विद्यमान रहते हैं जहां उनकी अर्चना द्वादश ज्योतिर्लिंग और अजगैबीनाथ महादेव के रूप में होती है। सुलतानगंज में गंगा उत्तरवाहिनी है, जिसका विशेष महात्म्य हैं। भगवान शंकर को गंगा का जल अत्यंत प्रिय है। फिर भला भक्तगण कैसे चूकते। और, चल पड़ी परिपाटी सुलतानगंज से उत्तरवाहिनी गंगा का जल कांवर में लेकर बाबा बैद्यनाथ पर अर्पित करने की।
श्रावण के महीने में सुलतानगंज से देवघर तक के विस्तार में कांवरिया तीर्थयात्रियों के कांवरों में लचकती-मचलती गंगा मानों बहती-सी जाती हैं- जैसे दो-दो गंगा बहती हैं श्रावण में- एक कांवरों में सवार होकर देवघर की ओर, और दूसरी अविरल बहती हुई बंगाल की खाड़ी की ओर। मेले में लगी दुकानों में सुलतानगंज में कांवरों में लगे प्लास्टिक के लाल, पीले, हरे, गुलाबी खिले-खिले फूल अनुपम दृश्य उपस्थित करते हैं, लगता है मानो सावन में वसंत का आगमन हो गया हैं। यदि हम पौराणिक संदर्भ लें तो वह कांवड़-यात्रा आर्य और अनार्य संस्कृतियों के मेल और संगम को दर्शाता है।
देवघर में जल अर्पण करके लौटते समय शिव-भक्त कांवरिये न सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अपने को परिपूर्ण पाते हैं, वरन‌् प्रकृति के सीधे साहचर्य में रहने के कारण वह अपने अंदर एक नयी ऊर्जा और उत्फुल्लता महसूस करता है। भगवान शंकर पर जल का अर्पण हमें शांति और शीतलता का ही तो संदेश देता प्रतीत होता है।
श्रावणी मेले के दिन करीब आते ही शिवभक्तों के मन में बाबा के दर्शन की उमंगें हिलोरे लेने लगती हैं। आषाढ़ पूर्णिमा के अगले दिन से ही यह मेला प्रारंभ हो जाता है। जलाभिषेक के लिए देशभर से शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है। वैसे कुछ वर्ष पहले तक सोमवार को जल चढ़ाने की जो होड़ रहती थी, वह अब उतनी नहीं है। सवा महीने तक चलने वाले इस मेले में अब हर रोज कांवड़ियों की भीड़ लाखों की संख्या पार कर जाती है। इस अर्थ में यह किसी महाकुंभ से कम नहीं है। झारखंड के देवघर में लगने वाले इस मेले का सीधा सरोकार बिहार के सुलतानगंज से है। यहीं गंगा नदी से जल लेने के बाद बोल बम के जयकारे के साथ कांवड़िये नंगे पांव देवघर की यात्रा आरंभ करते हैं।
देवघर स्थित शिवलिंग का अपना खास महत्व है क्योंकि शास्त्रों में इसे मनोकामना लिंग कहा गया है। यह देश के 12 अतिविशिष्ट ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है।

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