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क्रोध की तार्किकता

12:36 PM Jun 19, 2023 IST
क्रोध की तार्किकता
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गोपाल प्रधान

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हिंदी में निबंध लेखन की कला में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का विशिष्ट योगदान है। मनोविकार संबंधी उनके निबंध ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ में प्रकाशित हुए थे। शुक्ल के निबंधों की विशेषता है कि वे शुरुआत में ही विषय-वस्तु की स्थापना के बतौर कम से कम शब्दों में अपनी बात स्पष्ट करते हैं और तर्क को आगे बढ़ाते हुए भी मुख्य विषय पर ध्यान बराबर बनाए रखते हैं। इसी शैली के अनुरूप सबसे पहले वे क्रोध नामक इस मनोभाव का स्वरूप स्पष्ट करने की कोशिश करते हैं। उनके अनुसार ‘क्रोध दु:ख के चेतन कारण से साक्षात्कार या अनुमान से उत्पन्न होता है।’ किसी भी मनोभाव का आदिम रूप उन्हें बच्चों में दिखाई देता है, उसके बाद उम्र बढ़ने पर मनुष्य के सामाजिक परिचय का जब विस्तार होता है तब उसी मनोभाव के ज्यादा जटिल रूप प्रकट होते हैं। उपयोगी होने के बावजूद क्रोध की अति कभी-कभी धोखा देती है, इसीलिए आचार्य शुक्ल उस पर बुद्धि के अंकुश की बात करते हैं।

इसके बाद वे क्रोध के एक ऐसे इस्तेमाल के बारे में बताते हैं जिसकी पहचान के लिए सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि की जरूरत होती है। ऐसा देखा गया है कि क्रोध में कभी-कभी लोग अपना सिर पटक लेते हैं। क्रोध के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिस पर क्रोध किया जाता है उस पर जो भी प्रभाव पड़े लेकिन जो क्रोध करता है उसे भी तकलीफ होती है। इसीलिए शुक्ल जी कहते हैं कि ‘क्रोध शांति-भंग करने वाला मनोविकार है।’ शायद इसलिए भी ‘धर्म, नीति और शिष्टाचार तीनों में क्रोध के निरोध का उपदेश पाया जाता है।’ वे एक प्रकार के क्रोध का त्याग सही मानने के लिए क्रोध के प्रेरक दो तरह के दु:खों की कल्पना करते हैं- ‘अपना दु:ख और पराया दु:ख।’ क्रोध का ही एक अविकसित रूप उनके अनुसार अमर्ष है। इसकी संक्षिप्त परिभाषा ‘किसी बात का बुरा लगना, उसकी असह्यता का क्षोभयुक्त और आवेगपूर्ण अनुभव होना, अमर्ष कहलाता है।’

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लेख में उनके वक्तव्य की संक्षिप्तता के बावजूद अर्थवहन की क्षमता प्रकट होती है। इससे यह भी पता चलता है कि सभी मनोभाव सामाजिक आचरण में जन्म लेते हैं और उनका उद्देश्य समाज का सुचारु संचालन है। किसी गंभीर धारणा को उदाहरणों के सहारे स्पष्ट करने की शुक्ल जी की शैली भी इससे जाहिर होती है। इस निबंध से पता चलता है कि लेखन में अवसर मिलने पर हास्य व्यंग्य की सृष्टि भी वे करते चलते हैं।

साभार : गोपाल प्रधान डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

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