Ratan Tata Life: सादगी की मिसाल थे रतन टाटा, कभी नहीं रही दुनिया के अरबपतियों की सूची में आने की इच्छा
नयी दिल्ली, 10 अक्तूबर (भाषा)
Ratan Tata Life: रतन टाटा भारत के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे। वह न केवल व्यापारिक सफलता के लिए बल्कि परोपकार और सादगी के लिए भी पहचाने जाते थे। भले ही उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने 30 से अधिक कंपनियों के साथ वैश्विक विस्तार किया, लेकिन वह कभी भी दुनिया के अरबपतियों की सूची में स्थान पाने की इच्छा नहीं रखते थे। उनके लिए व्यक्तिगत संपत्ति से ज्यादा समाज के प्रति योगदान और जनसेवा महत्वपूर्ण थी। रतन टाटा का 86 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में बुधवार रात को निधन हो गया है।
रतन टाटा का परोपकारी दृष्टिकोण उनकी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा रहा। टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज के विकास के लिए अनगिनत परियोजनाओं को समर्थन दिया। उनकी परोपकारी गतिविधियां 20वीं सदी की शुरुआत से ही सक्रिय रही हैं, जिसमें उन्होंने अपने व्यक्तिगत लाभ से ज्यादा समाज के हित को प्राथमिकता दी। यह उनकी दूरदर्शिता और परोपकारी भावना थी, जिसने उन्हें कॉरपोरेट जगत के अन्य नेताओं से अलग खड़ा किया।
अपनी सफलता के बावजूद, उन्होंने कभी भी भौतिक संपत्ति या व्यक्तिगत लाभ को महत्व नहीं दिया। उनकी कंपनियां छह महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में फैली थीं, लेकिन रतन टाटा ने हमेशा सामान्य और सरल जीवन जीने में विश्वास किया। उनकी शालीनता और ईमानदारी ने उन्हें न केवल उद्योग जगत में बल्कि आम जनता के दिलों में भी एक विशेष स्थान दिलाया।
वास्तुकला में की थी बी.एस.
रतन टाटा 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से वास्तुकला में बी.एस. की डिग्री प्राप्त करने के बाद पारिवारिक कंपनी में शामिल हो गए। उन्होंने शुरुआत में एक कंपनी में काम किया और टाटा समूह के कई व्यवसायों में अनुभव प्राप्त किया, जिसके बाद 1971 में उन्हें (समूह की एक फर्म) ‘नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी' का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया।
व्यापार का किया विस्तार
एक दशक बाद वह टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने और 1991 में अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा समूह के चेयरमैन का पदभार संभाला। जेआरडी टाटा पांच दशक से भी अधिक समय से इस पद पर थे। यह वह वर्ष था जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला और 1868 में कपड़ा और व्यापारिक छोटी फर्म के रूप में शुरुआत करने वाले टाटा समूह ने शीघ्र ही खुद को एक ‘‘वैश्विक महाशक्ति'' में बदल दिया, जिसका परिचालन नमक से लेकर इस्पात, कार से लेकर सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्र और एयरलाइन तक फैला गया था।
कई कंपनियां खरीदी
रतन टाटा दो दशक से अधिक समय तक समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी ‘टाटा संस' के चेयरमैन रहे और इस दौरान समूह ने तेजी से विस्तार करते हुए वर्ष 2000 में लंदन स्थित टेटली टी को 43.13 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा, वर्ष 2004 में दक्षिण कोरिया की देवू मोटर्स के ट्रक-निर्माण परिचालन को 10.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा, एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को 11 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा और फोर्ड मोटर कंपनी से मशहूर ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा।
1970 के दशक में अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की
भारत के सबसे सफल व्यवसायियों में से एक होने के साथ-साथ, वह अपनी परोपकारी गतिविधियों के लिए भी जाने जाते थे। परोपकार में उनकी व्यक्तिगत भागीदारी बहुत पहले ही शुरू हो गई थी। वर्ष 1970 के दशक में, उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जिसने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की नींव रखी।