Rajya Sabha: खड़गे बोले- संविधान खतरे में है और इसकी रक्षा के लिए सबको चौकस रहना होगा
नयी दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा)
Debate on Constitution: देश में अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं पर अत्याचारों का सिलसिला जारी रहने का दावा करते हुए कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि संविधान खतरे में है और इसकी रक्षा के लिए सबको चौकस रहना होगा। राज्यसभा में 'भारतीय संविधान के 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा' पर चर्चा में हिस्सा ले रहे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि जब संविधान को स्वीकार किया गया तो ‘‘हमें इसके तहत ही चलना चाहिए। एक दूसरे की खामियां निकाले जाने पर कई बातें निकलेंगी।''
उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस वाले चाहते हैं कि संविधान मनु स्मृति जैसा हो। उन्होंने आरोप लगाया कि ‘‘जो लोग भारत के राष्ट्रीय ध्वज से, हमारे अशोक चक्र से, हमारे संविधान से नफरत करते हैं, वह लोग आज हमें संविधान का पाठ पढ़ा रहे हैं।'' खड़गे ने कहा कि लोकतंत्र में संसद सत्ता पक्ष और विपक्ष के साथ चलती है। उन्होंने कहा कि आज अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं पर अत्याचारों का सिलसिला थमा नहीं है। ‘‘अपनी सरकारों के राज्यों की स्थिति देखिए।''
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा पहली बार 26 जनवरी 2002 को अदालत के आदेश के बाद आरएसएस के मुख्यालय पर तिरंगा फहराया गया। उन्होंने दावा किया कि संविधान पर खतरा बना हुआ है ‘‘इसलिए हमें चौकस रहना होगा।'' उन्होंने कहा कि संविधान सत्ता का नैतिक मार्गदर्शक है और उसका अनुसरण करना चाहिए।
खड़गे ने कहा ‘‘जिन लोगों ने देश के लिए आवाज ही नहीं उठाई, देश के लिए लड़ा ही नहीं, वह लोग क्या जानेंगे कि आजादी क्या होती है। उन्होंने सवाल किया कि इस सरकार ने पिछले 11 साल में ऐसा कौन सा काम किया है जिससे देश का लोकतंत्र और संविधान मजबूत हुआ है। खड़गे ने कहा कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम, मनरेगा और शिक्षा का अधिकार अधिनियम कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार ले कर आई और आज भी गरीबों के लिए यह कानून मददगार हैं। ‘‘यहां तक कि कोविड काल में मनरेगा मजदूरों का सबसे बड़ा सहारा था।''
उन्होंने कहा कि काला धन विदेश से वापस ला कर एक एक व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपये देने का वादा, हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा, किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा, क्या झूठ नहीं था ? उन्होंने कहा, ‘‘झूठ आप बोलते हैं, आरोप हम पर लगाते हैं।''
विकास, राष्ट्रवाद को संविधान की प्रस्तावना के नजरिए से देखा जाना चाहिए : उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि विकास, राष्ट्रवाद, सुरक्षा, लोगों का कल्याण और सकारात्मक सरकारी योजनाओं को सिर्फ संविधान की प्रस्तावना के नजरिए से देखा जाना चाहिए। सातवें रक्षा संपदा दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में उन्होंने मंच पर अपनी स्थिति का भी उल्लेख किया, जहां उनके दाहिनी ओर रक्षा संपदा के महानिदेशक और बाईं ओर पूर्व सैनिक कल्याण विभाग के सचिव बैठे थे।
उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं यहां (मंच पर) मध्य में सीट पर बैठा तो मुझे राज्यसभा के सभापति के रूप में अपनी स्थिति की याद आई। जब मैं (राज्यसभा में) कुर्सी पर बैठता हूं तो मेरे दाईं ओर सत्ता पक्ष और बाईं ओर विपक्ष के सदस्य होते हैं।'' यहां, दाईं ओर रक्षा संपदा के महानिदेशक हैं, ‘‘मुझे भरोसा है कि मुझे उनसे कोई समस्या नहीं है''।
उपराष्ट्रपति ने विपक्ष के स्पष्ट संदर्भ में कहा, ‘‘सौभाग्य से, मेरे बाईं ओर'' पूर्व सैनिक कल्याण विभाग के सचिव हैं जो ‘‘रचनात्मक, मार्गदर्शक, प्रेरक, हमेशा मददगार'' रहे हैं। धनखड़ ने कहा, ‘‘मैं आज संसद के उच्च सदन में यह संदेश लेकर जा रहा हूं जहां हम संविधान पर बहस कर रहे हैं। हम 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को अपनाने की 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं।'' उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस कार्यक्रम में आकर वह वास्तव में उन लोगों के ‘‘ऋणी'' हैं, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनका दिन ‘‘आशा और आशावाद'' के साथ शुरू हो।
उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे राष्ट्र में हैं जो उम्मीद और संभावनाओं से भरा है। एक ऐसा राष्ट्र जिसमें संभावनाएं हैं। एक ऐसा राष्ट्र जो विकास की ओर अग्रसर है, एक ऐसा राष्ट्र जिसे अब रोका नहीं जा सकता। शासन के हर पहलू में यह उन्नति देखी गई है, चाहे वह समुद्र हो, जमीन हो, आकाश हो या अंतरिक्ष हो।''
धनखड़ ने कहा, ‘‘मैं कहूंगा कि ‘यही समय, सही समय है', हालांकि लोग इसमें राजनीति भी देख सकते हैं। मैं आप सभी से अपील करना चाहता हूं कि विकास, राष्ट्रवाद, सुरक्षा, आम लोगों का कल्याण, सकारात्मक सरकारी योजनाएं, इन सभी को सिर्फ एक ही नजरिए से देखा जाना चाहिए और वो है हमारे संविधान की प्रस्तावना के नजरिए से।'' उपराष्ट्रपति ने कहा कि समाज को इसकी सराहना करनी चाहिए।
उन्होंने चंद्रयान-3 मिशन की सफलता का हवाला देते हुए कहा, ‘‘अगर हम नहीं करेंगे तो और कौन देश पर गर्व करेगा। लेकिन, कभी-कभी कैसी विडंबना होती है कि कुछ लोग अलग ही रास्ता अपनाते हैं और मैं कहूंगा कि वे ऐसा अज्ञानता के कारण करते हैं। लेकिन, एक बात तो तय है कि हमारी प्रगति की गति निरंतर बढ़ रही है।'' अपने संबोधन में धनखड़ ने यह भी सुझाव दिया कि रक्षा सम्पदाओं को पारंपरिक परिसंपत्ति से आगे बढ़कर ‘‘विकसित'' होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इन्हें ‘‘आत्मनिर्भर तंत्र'' के रूप में विकसित करना होगा और सैन्य तत्परता, सामुदायिक कल्याण, पोषण सुरक्षा को बढ़ाना होगा। उन्होंने हर्बल उद्यानों का विचार भी सुझाया और कहा, ‘‘इन क्षेत्रों को स्वास्थ्य केन्द्रों में परिवर्तित करने के लिए इससे बेहतर कोई अवसर नहीं हो सकता।'' उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘‘2047 तक विकसित भारत' की दिशा में सटीक भूमि प्रबंधन और उत्पादन के लिहाज से उनका रचनात्मक उपयोग सर्वोपरि है।''
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इसलिए मैं आपसे अपील करता हूं कि आप अपने भूमि बैंक का अधिकतम उपयोग करें, जो समग्र और अभिनव होना चाहिए।'' अपने संबोधन में धनखड़ ने जलवायु परिवर्तन पर भी बात की। उन्होंने कहा कि ‘एक पेड़ मां के नाम' अभियान एक ‘जन आंदोलन' बन गया है। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) जैसी एजेंसियों के साथ सहयोग बढ़ाने का भी सुझाव दिया, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह ‘‘एक वैश्विक मानक स्थापित कर सकता है।''
रक्षा संपदा से संबंधित विवाद समाधान पर उन्होंने कहा, ‘‘जिस तरह बीमारी में इलाज से अधिक हमें रोकथाम और एहतियात का ध्यान रखना चाहिए, उसी तरह विवाद के लिए भी हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसे बाहरी हस्तक्षेप के बिना सुलझाया जाए।''
‘एक परिवार के हित' में संविधान संशोधन करती रही कांग्रेस की सरकारें: सीतारमण
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को अभिव्यक्ति की आजादी से लेकर शाह बानो प्रकरण और आपातकाल से जुड़े विभिन्न संविधान संशोधनों का उल्लेख करते हुए कांग्रेस पर ‘एक परिवार के हित' में संविधान में संशोधन करते रहने का आरोप लगाया। ‘भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा' विषय पर राज्यसभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए सीतारमण ने कहा कि इन संविधान संशोधनों के दौरान कांग्रेस की तत्कालीन सरकारों ने ना तो प्रक्रिया का पालन किया और ना ही संविधान की भावना का कोई सम्मान किया।
उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के नाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने का रिकॉर्ड है। उन्होंने कहा, ‘‘मजरूह सुल्तानपुरी और बलराज साहनी दोनों को 1949 में जेल में डाल दिया गया था। 1949 में मिल मजदूरों के लिए आयोजित बैठकों में से एक में मजरूह सुल्तानपुरी ने एक कविता सुनाई थी जो जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ थी। और इसलिए उन्हें जेल जाना पड़ा।''
सीतारमण ने कहा कि सुल्तानपुरी ने माफी मांगने से इनकार कर दिया था और उन्हें जेल भेज दिया गया। उन्होंने कहा, ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का कांग्रेस का रिकॉर्ड यहीं तक सीमित नहीं था। वर्ष 1975 में माइकल एडवर्ड्स ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू पर एक राजनीतिक जीवनी लिखी थी। इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उन्होंने ‘किस्सा कुर्सी का' नामक एक फिल्म को भी सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित कर दिया क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उनके बेटे और तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री पर सवाल उठाया गया था।''
सीतारमण ने कहा कि 1950 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से वामपंथी पत्रिका ‘क्रॉस रोड्स' और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की पत्रिका ‘ऑर्गनाइजर' के पक्ष में सुनाए गए एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि इसके जवाब में तत्कालीन अंतरिम सरकार संविधान संशोधन किया जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाते थे।
उन्होंने कहा, ‘‘कई उच्च न्यायालयों ने भी हमारे नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखा, लेकिन अंतरिम सरकार ने जवाब में सोचा कि पहले संशोधन की आवश्यकता है। यह कांग्रेस द्वारा लाया गया था।'' उन्होंने इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण मामले से संबंधित संवैधानिक संशोधनों का भी उल्लेख किया और कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा, ‘‘ये संशोधन लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए नहीं बल्कि सत्ता में बैठे लोगों के हित में लाए गए थे।'' उन्होंने कहा, ‘‘कल्पना कीजिए कि किसी व्यक्ति के लिए अपनी कुर्सी बचाने के लिए, अदालत के फैसले से पहले ही एक संशोधन किया गया था।''
शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के 1986 के एक फैसले का उल्लेख करते हुए सीतारमण ने कहा कि तत्कालीन सरकार ने इसे पलटते हुए मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता के अधिकार से वंचित कर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी पार्टी ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया जबकि कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने संविधान संशोधन करके मुस्लिम महिलाओं को अधिकारों से वंचित किया।'' इससे पहले, वित्त मंत्री ने 15 महिलाओं सहित संविधान सभा के 389 सदस्यों को श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने बहुत ही चुनौतीपूर्ण माहौल में भारत का संविधान तैयार किया था।
सीतारमण ने कहा कि भारत का संविधान ‘‘समय की कसौटी पर खरा उतरा है। आज हम भारत के लोकतंत्र के विकास पर बेहद गर्व महसूस कर रहे हैं।'' उन्होंने कहा कि देश के संविधान के 75 साल पूरे हो रहे हैं और ‘‘यह समय भारत के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने का है, जो इस पवित्र दस्तावेज में निहित भावना को बनाए रखेगा।'' भारत और उसके संविधान को अपनी अलग पहचान बताते हुए सीतारमण ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 50 से अधिक देश स्वतंत्र हुए और उन्होंने अपना संविधान लिखा। उन्होंने कहा , ‘‘लेकिन कई देशों ने अपने संविधानों को बदला है, कई ने न केवल उनमें संशोधन किया है, बल्कि सचमुच अपने संविधान की पूरी विशेषता को बदल दिया है। लेकिन हमारा संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है।''
उन्होंने कहा कि भारत के संविधान में समय समय पर संशोधन किए गए हैं। उन्होंने कहा ‘‘संशोधन समय की मांग थी।'' उच्च सदन में सोमवार और मंगलवार को 'भारतीय संविधान के 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा' पर राज्यसभा में चर्चा नियत है। सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि समय की कोई कमी नहीं होगी और जितने भी वक्ता बोलने के इच्छुक होंगे, उन्हें चर्चा की अवधि बढ़ाकर समायोजित किया जाएगा।