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बुंदेलखंड की ‘अयोध्या’ में राजा राम की सरकार

08:39 AM Jul 05, 2024 IST

सोनम लववंशी

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मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक शहर ओरछा बेतवा नदी के तट पर बसा है। भारत के हृदय में बसा ये शहर इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिकता का खजाना है। यह भव्य महलों और नक्काशीदार मंदिरों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। इसे महलों का शहर भी कहा जाता है। ओरछा का शाब्दिक अर्थ है ‘छिपी हुई जगह’ और यह अपने नाम के अनुरूप ही है। यहां के खूबसूरत स्मारक, सुंदर महल और सम्राटों के बीच युद्धों की कहानियों को उजागर करने वाला ओरछा अपने आप में समृद्ध है। ओरछा के महल और मंदिरों की मध्ययुगीन वास्तुकला, पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है।
बुंदेलखंड की ‘अयोध्या’ कही जाने वाली ओरछा नगरी में साल भर पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है। यूं तो बुंदेला राजाओं ने इसे अपनी राजधानी के तौर पर बसाया था। लेकिन, वर्तमान में इसे राजा राम की नगरी के रूप में जाना जाता है। यहां एक तरफ राजशाही दौर में तैयार ऐतिहासिक इमारतें लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, दूसरी तरफ नैसर्गिक सौंदर्य लोगों के मन में बस जाता है।
किंवदंती है कि माता जानकी के साथ साक्षात विराजे भगवान श्रीराम हर दिन अपना दरबार सजाकर भक्तों की सुनवाई करते हैं। यही वजह है कि ओरछा में विराजे श्रीराम को राजा राम के रूप में पूजा जाता है। आज भी ओरछा की चारदीवारी में किसी भी वीवीआईपी को सलामी नहीं दी जाती है। यहां पर श्रीराम राजा सरकार ही चलती है। राम राजा सरकार की चारपहर आरती होती और उन्हें सशस्त्र सलामी भी दी जाती है। अयोध्या ही नहीं ओरछा की धड़कनों में भी राम बसे हैं।

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रामजी का ओरछा आगमन

16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मकुरशाह की महारानी कुंवरी गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा ले आई थी। कहां जाता है कि ओरछा के शासक मकुर शाह कृष्ण भक्त थे। जबकि, उनकी महारानी कुंवरी राम उपासक। इस बात को लेकर दोनों में अक्सर विवाद होता रहता था। एक बार महाराज मकुर शाह ने महारानी से वृंदावन जाने का आग्रह किया तो महारानी ने उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, तब राजा ने उनसे व्यंग्य करके कहा कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं, तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ! इस पर महारानी कुंवरी अयोध्या के लिए रवाना हो गई।
अयोध्या में महारानी कुंवरी ने 21 दिनों तक कठोर तपस्या की। लेकिन, जब उनके आराध्य प्रभु राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी। पौराणिक आख्यान है कि महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम जल में ही प्रकट हो गए। महारानी ने भगवान राम से ओरछा चलने के लिए निवेदन किया। बताते हैं इस पर प्रभु ने ओरछा चलने के लिए तीन शर्तें रखीं। पहली शर्त यह थी कि मैं जिस जगह पर बैठ जाऊंगा वही विराजमान हो जाऊंगा। दूसरी शर्त यह कि ओरछा के राजा के रूप में विराजित होने के बाद किसी और की सत्ता नहीं रहेगी। तीसरी शर्त थी कि उन्हें बाल रूप में पैदल संतों के साथ ले जाना होगा। महारानी ने यह तीनों शर्तों सहर्ष स्वीकार कर ली। कहा जाता है कि तभी से भगवान राम ओरछा के राजा के रूप में विराजमान हो गए। ओरछा में भगवान राम को लेकर एक दोहा आज भी प्रसिद्ध है कि राजाराम सरकार के दो निवास, खास दिवस ओरछा रहता है रैन अयोध्या वास।

राम राजा मंदिर

ओरछा के केंद्र में भव्य राम राजा मंदिर है, जो भक्ति और आस्था का प्रतीक है। 16वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर की अद्भुत विशेषता है। इस मंदिर की वास्तुकला में हिंदू और इस्लामी शैलियों का मिश्रण है, जो बुंदेला शासकों के शासनकाल के दौरान प्रचलित सांस्कृतिक समन्वय को दर्शाती है। यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर के ऊंचे शिखर, जटिल नक्काशीदार खंभे और जीवंत भित्तिचित्र पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

राजा महल

मंदिर की तरह नजर आने वाला यह महल ओरछा के लोगों के लिए गहरा आध्यात्मिक महत्व रखता है। 16वीं शताब्दी में राजा वीर सिंह देव द्वारा निर्मित, यह राजसी महल बुंदेला राजाओं के शाही निवास के रूप प्रसिद्ध था। इसके विशाल परिसर में कई मंदिर शामिल हैं, जो अलग-अलग देवता को समर्पित है। ये महल इंजीनियरिंग के चमत्कार का अद्भुत नमूना है। आज, राजा महल ओरछा के गौरवशाली अतीत के प्रमाण के रूप में खड़ा है।

ओरछा किला

यहां का किला सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। यह बेतवा नदी के तट पर स्थित है। इस किले को 16वीं शताब्दी में बुंदेला रुद्रप्रताप सिंह ने बनवाया था। इस किले में कई संरचनाएं शामिल हैं। कहा जाता है कि इस किले के निर्माण में कई बरस लगे थे। यह किला बुंदेल शासकों के स्मरण के लिए बनाए गए भित्ति चित्रों और छत्री (सेनोटाफ्स) के लिए अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है।

चतुर्भुज मंदिर

बेतवा नदी के सामने एक पहाड़ी पर स्थित चतुर्भुज मंदिर ओरछा की वास्तुकला व प्रतिभा का उत्कृष्ट नमूना है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में राजा मधुकर सिंह ने करवाया था। इस मंदिर का मूल उद्देश्य भगवान राम की मूर्ति स्थापित करना था। लेकिन, जब मूर्ति अपने मूल स्थान से परिवर्तित नहीं हुई। यह चतुर्भुज मंदिर बिना किसी प्रमुख देवता के रह गया। बाद में यहां भगवान विष्णु की मूर्ति को स्थापित किया गया। इस मंदिर की भव्यता, अलंकृत नक्काशी और जटिल डिजाइनों से सुसज्जित इसका विशाल आकार पर्यटकों को मोहित करता है और उन्हें वैभव और भव्यता के बीते युग में ले जाता है।

फूलबाग

फूलबाग का अर्थ है ‘फूलों का बगीचा’ जो एक मंदिर से कहीं अधिक कला, संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक जीवंत चित्रपट है। 18वीं शताब्दी में राजा उदय सिंह द्वारा निर्मित, इस विशाल परिसर में हरे-भरे बगीचों और सजावटी फव्वारे के साथ-साथ विभिन्न हिंदू देवताओं के मंदिर निर्मित हैं। फूलबाग को इसकी वास्तुकला शैली, राजपूत, मुगल और यूरोपीय डिजाइन का मिश्रण एक अलग पहचान देता है। इसकी उत्कृष्ट मूर्तियां, रंगीन भित्तिचित्र और जटिल नक्काशीदार अग्रभाग पुराने कारीगरों की कलात्मक कौशल को प्रदर्शित करते हैं।

लक्ष्मीनारायण मंदिर

मां लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर ओरछा की वास्तुकला विरासत का एक नायाब रत्न है। 17वीं शताब्दी में राजा बीर सिंह देव द्वारा निर्मित, इस मंदिर का विशाल गुंबद इसे अलौकिक सौंदर्य देता है। मंदिर के आंतरिक भाग उत्कृष्ट भित्ति चित्रों से सुसज्जित हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं और शाही दरबार के दृश्यों को दर्शाते हैं। लक्ष्मीनारायण मंदिर में की दिव्यता और यहां का शांत वातावरण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

शीश महल

ओरछा के सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। यह ओरछा के राजा उदय सिंह का महल था। यह महल अपने बहु-व्यंजन प्रणाली के लिए भी जाना जाता है जो पर्यटकों के दिल को प्रसन्न करता है। महल का इंटीरियर सराहनीय है। दीवारों को सुंदर और महंगे आभूषणों के साथ चित्रित और अलंकृत किया गया है। महल के अंदर की कला और शिल्पकला भारत के सांस्कृतिक और कलात्मक मूल्य को दर्शाती है।

कैसे पहुंचें

हवाई मार्ग : ओरछा का नजदीकी हवाईअड्डा खजुराहो में स्थित है, जो यहां से लगभग 163 किमी की दूरी पर स्थित है। खजुराहो हवाईअड्डे से दिल्ली, मुंबई, वाराणसी और बेंगलुरु जैसे शहरों के लिए उड़ानें उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग : रेलमार्ग से ओरछा पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे मुख्यालय झांसी है। झांसी से न केवल मध्य प्रदेश बल्कि देश के अन्य शहरों के लिए भी ट्रेनें उपलब्ध हैं। झांसी से पैसेंजर ट्रेनों के माध्यम से ओरछा पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग : इसके अलावा ओरछा, झांसी-खजुराहो सड़क मार्ग पर स्थित है। खजुराहो और झांसी से ओरछा के लिए नियमित बसें उपलब्ध हैं और साथ ही मध्य प्रदेश के अन्य शहरों से भी परिवहन के अन्य साधन ओरछा के लिए उपलब्ध हैं।

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